Saturday, August 12, 2017

अनजाने दोस्त

-वीर विनोद छाबरा 
हमारे एक अस्सी वर्षीय मित्र को खराब लगा जब एक सोसाइटी ने एक हमारे ८२ वर्षीय मित्र को न सिर्फ वयोवृद्ध घोषित किया गया बल्कि इसी नाते बाक़ायदा सम्मानित भी कर दिया। उन्हें बहुत खराब भी लगा। हम होते तो हमें भी बेहद बुरा लगता। भाड़ में सम्मान /
मित्र कहते हैं जब तक चलने और सोचने की शक्ति है। विचारों से भी प्रगतिशील हूं, तब तक मैं वयोवृद्ध कहलाना पसंद नहीं चाहूंगा । इस सम्मान को ससस्मान वापस करना चाहता हूं। 
मैं ठीक उनकी ही तरह के विचार रखता हूं। हालांकि बस में नहीं चल सकता। लेकिन मौका मिला तो चल भी सकता हूं।
लेकिन इंसल्ट पसंद नहीं करता। गुस्सा आता है। कैसी पीढ़ी? सीनियर का सम्मान नहीं करती। कल एक नेशनल बैंक की ब्रांच में खड़ा था। शायद उस समय सबसे सीनियर मैं ही था। किसी ने बैठने के लिए सीट ऑफर नहीं की। काउंटर पर बैठी एक लड़की, जो अपने व्यवहार से ऑफिसर रैंक की थी। क्योंकि उस समय वो सबसे ज्यादा एक्टिव और हेल्पफुल थी। उसने मुझसे कहा - अंकल आप जाएँ, आपका काम हो जाएगा। शाम तक आपके अकाउंट के पैसा पहुँच चाहेगा। बाहर मौसम बहुत ख़राब हो रहा है।
मैंने कहा - थैंक्यू मेडम, मौसम तो ख़राब हो चुका है। मेरे पास कार है, थोड़ा भीग ही जाऊंगा। कोई ग़म नहीं। आप नहीं जानती कि यह काम कितना ज़रूरी है। मेरे सामने बेटी के अकाउंट में पैसा ट्रांसफर हो जाएगा तो इत्मीनान हो ज्यादा हो। मैं उम्र के उस पड़ाव पर हूं कि कब क्या हो जाए, कुछ पता नहीं?
हमारी बात सुन रहा एक जवान उठा। सर, आप बैठें कृपया।
हमने ना-नुकुर की।
उसने हमें ज़बरदस्ती बैठा दिय। दस मिनट हुए थे, हमें बैठे हुए कि बैंक वाली मैडम ने सूचित किया कि पैसा अकाउंट में ट्रांसफर हो गया।
हमें चैन मिला। ऊपर वाले तेरा लाख लाख शुक्रिया। सही समय पर पैसा मेरी बेटी आकउंट में ट्रांसफर हो गया। हम कम्प्यूटर युग को इसीलिए बहुत शुक्रिया कहते हैं। हफ़्तों का काम चुटकियों में होता है। अन्यथा एक टेबुल से दूसरी टेबुल पर फाइल उठा कर रखने में चपरासी हफ्ता भर ले लिया करता है। 


काम हो जाने के बाद मुझे बाद मुझे वहां से चले जाने चाहिए था। लेकिन मैं बैठा। बारिश मूसलाधार शुरू हो रही थी। कार थोड़ा दूर थी वहां से। इतनी दूर थी कि मैं बुरी तरह भीग सकता था।
मैं दूसरों को नसीहत दिया करता हूं बारिश के दिनों में कार में छाता ज़रूर हैंडी रखें, कब काम आ जाए पता नहीं। आज हमें अपनी नसीहत हमें याद रही थी। मैं बैंक वाली मैडम को बता रहा। भाषण देना आसान है, अमल करना बहुत मुश्किल। खैर हमें एक फायदा हुआ। बैंक की तरफ से फ्री में चाय मिल गयी।
बारिश हल्की हो। मैंने मुंशी पुलिया तक ऑफर दिया। दो तो वहीं के थे। एक मैडम थोड़ा आगे सेक्टर 14 की थीं। उनके साथ एक शरारती पोता था। कार में जाने की ज़िद्द कर रहा था।
मैंने कहा - नो प्रॉब्लम। मैं वहां तक चला जाऊंगा।
मुझसे पहले उछल कर आगे बैठ गया - पहले मैं बैठूंगा।
मुझे बारिश कभी अच्छी नहीं लगी। लेकिन कल की दोपहर बहुत अच्छी लगी। काश बारिश रोज़ाना हो और उसी वक्त मुझे ज़रूरी काम से निकलना पड़े। जाते समय और लौटते समय किसी को लिफ्ट का ऑफर दूं और कोई शरारती बच्चा आगे बैठने की ज़िद्द करे। एक नन्हा मित्र मिले और घर का ठीक ठीक एड्रेस भी पूछे - बाबा दुबारा कब इधर से निकलना होगा?
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१२ जुलाई २०१७


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