Thursday, July 20, 2017

अब न पिताजी लौटेंगे न अब्बा

- वीर विनोद छाबड़ा
एक ज़माना था जब हिंदू बच्चे अपने पिता को पिताजी कह कर पुकारते थे और मुस्लिम बच्चे अब्बा।
हमें याद है एक बच्चे के पिता को स्कूल बुलाया गया। बच्चे ने अपने पिता का परिचय टीचर से कराया - सर, यह मेरे फादर हैं।
टीचर ने बच्चे को डांट दिया - घर में पिताजी को फादर पुकारते हो क्या?
कुछ दिन हुए हमारे एक मित्र हमारा परिचय एक बड़े लेखक से कराया - यह....के लड़के हैं।
हमने कहा - जी, मैं ....का बेटा हूं।
हमारे मित्र थोड़ा लज्जित हुए।
हमारे समय में पिताजी, लालाजी, बोजी, बाबूजी, दार जी, अब्बा, अब्बू आदि संबोधन हुआ करते थे। लेकिन अब सब खत्म हो गया है। क्या हिंदू, क्या मुस्लिम और क्या सिख और क्या ईसाई । और क्या अमीर और क्या ग़रीब। शहर ही नहीं दूरस्थ ग्रामीण हिस्सों में मम्मी राज करती है। मां जाने कहां खो गयी। यहां वहां जहां तहां मम्मी ही मम्मी है। इसी तरह बाकी रिश्तों का भी अंग्रेज़ीकरण हो चुका है।
मम्मी बड़े गर्व से मिंटू और मिंटी को सिखा रही होती है कि जब कोई घर में आये तो चूहे को रैट, बिल्ली को कैट और शेर को लायन कहना। बेज़ान आईटम भी नहीं छूटे हैं। कुर्सी को चेयर और मेज़ को टेबुल बोलना सीखो बेटा मिंटू। 
कुत्ता भी डॉग्गी हो गया है। हिंदी में कोई कमांड नहीं लेता। अंग्रेजी में सिट कहने पर ही बैठता है और साइलेंट कहने पर भौंकना बंद कर देता। बेचारा कुत्ता यूं  भी गुलामों की ज़िन्दगी जीता है। और अब उसे अंग्रेज़ी सिखा कर एक कदम और आगे बड़ा दिया है। तभी वो दुम हिलाते हुए बड़े फ़ख्र से साथ चलता है।  
अखबार वाला और रिक्शेवाला भी कबसे भैया से अंकल हो चुका है। महिला शिक्षक अब बहनजी नहीं मैडम कहलवाना पसंद करती हैं। महोदय शब्द सिर्फ सरकारी चिट्ठियों में टाइप होता है। आमने-सामने तो अफ़सर सर की उपाधि से विभूषित होते हैं।

देश में आजकल घर वापसी का माहौल अभी तक ठंडा नहीं हुआ है। हम तो रिश्तों की भी घर वापसी की उम्मीद लगाये बैठे हैं। लेकिन बताया गया है कि उम्मीद छोड़ दो कि पिताजी और अब्बा लौटेंगे? क्योंकि अब डीएनए में मम्मी-पापा घुस चुके हैं और उन्हें बाहर निकालना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। ठीक है, नए ज़माने के साथ चलना चाहिए, अन्यथा पुरानी व्यवस्था की दुहाई देने वाले हम सर्कुलेशन से बाहर हो जाएंगे। 
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20 July 2017
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D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
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2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’देश के प्रथम नागरिक संग ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. और भी ...अंग्रेज़ी की तो गालियाँ भी रिफ़ाइंड लगती है एकदम मुँहचढ़ी हो जाती हैं.

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