Wednesday, March 29, 2017

हिट गीत-संगीत का पर्याय थे जॉय मुख़र्जी

- वीर विनोद छाबड़ा
Joy Mukherjee
कुछ सितारों को हम उनकी अदाकारी के लिए नहीं, चेहरों के लिए याद करते हैं और वो भी तब जब उन पर फिल्माया कोई गाना सुनाई देता है। जॉय मुख़र्जी ऐसे सितारों की सूची में टॉप पर है। वो सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक शशधर मुख़र्जी के बेटे थे। अशोक कुमार, किशोर और अनूप कुमार उनके मामा थे। यानी फ़िल्म जॉय के खून में थी। मगर वो निर्माण में रूचि रखते थे। पैसों की कमी से जूझ रहे शशधर उन दिनों कम बजट की 'लव इन शिमला' की रूप-रेखा तैयार कर चुके थे। नायिका के लिए साधना और बाकी तमाम आर्टिस्ट साईन हो चुके थे। बस हीरो बाकी था। लेखक आग़ा जानी कश्मीरी संग माथापच्ची चल रही थी कि उधर से जॉय गुज़रे। ऊंचा कद और हैंडसम चेहरा। आग़ा ने कहा - हीरो तो आपके घर में ही है।
और इस तरह जॉय हीरो बन गए हीरो। १९३८ की हिट हॉलीवुड फिल्म 'जेन स्टेप्स आउट' पर आधरित 'लव इन शिमला' (१९६०) खूब चली थी। इस म्यूज़िकल फिल्म में कुल ११ गाने थे और सब हिट। दिल थाम चले हम आज किधर...गाल गुलाबी किसके हैं...दर पे आये हैं तेरे... आज भी यदा-कदा सुनाई देते हैं। जॉय-साधना की जोड़ी एक बार फिर 'एक मुसाफिर एक हसीना' में रिपीट हुई। यह भी गानों के कारण चली। बड़ा शुक्रिया बड़ी मेहरबानी...आप यूं हमसे मिलते रहे...मैं प्यार का राही हूं...आज भी खूब सुनाई देते हैं और जॉय के मुस्कुराते चेहरे और चमकती आंखों की याद दिलाते हैं। जॉय का एक्टिंग सफ़र महज़ २५ साल का रहा। इस दौरान उन्होंने ३३ फ़िल्में कीं जिनमें १९ फ़िल्में हिट हुईं और इनमें भी वो १८ में सोलो हीरो रहे।
Joy with Sadhana
उनकी फिल्मों का गीत-संगीत इतना हिट होता था कि उन्हें भारत का एल्विस प्रेसली कहा जाता था। कंधे पर टंगे गिटार वाली उनकी तस्वीर उन दिनों उनकी पहचान थी। आशा पारेख के साथ उनकी तीन म्यूज़िकल हिट आयीं - फिर वही दिल लाया हूं, ज़िद्दी और लव इन टोकियो। बंदापरवर थाम लो ज़िगर...आंखों से जो उतरी है दिल में...लाखों हैं निगाह में...आजा रे आ ज़रा आ...
मज़े की बात है कि १९६७ में जब जॉय का जब बतौर हीरो टा-टा कर रहे थे तो उसी समय राजेश खन्ना का आशा पारेख के साथ कैरियर उदय हो रहा था। जॉय ने उन्हें बधाई दी थी - दोस्त, कभी परेशानी में हो हमें याद करना। कुछ साल बाद, १९७७ में राजेश खन्ना की नैया भंवर में थी। तब जॉय मुख़र्जी ने उन्हें सस्पेंस थ्रिलर 'छैला बाबू' देकर डूबने से बचा लिया। यह एक सरप्राईज़ सुपर हिट थी। राजेश की नैया फिर चल पड़ी थी। तब राजेश ने जॉय से वादा किया था कि वो इस अहसान का बदला ज़रूर चुकाएंगे। १९८५ में 'इंसाफ मैं करूंगा' में राजेश ने विलेन के लिए जॉय का नाम सुझाया था। यह फिल्म हिट हुई और साथ में जॉय का किरदार भी। संयोग से जॉय की एक्टिंग के सफर यहीं ख़त्म हो गया। और इसके साथ ही फिल्म इतिहास में उनकी गिनती उन एक्टर्स में दर्ज हो गयी जिनकी पहली और आखिरी फिल्म हिट थीं।

जॉय की जोड़ी सायरा बानो के साथ भी खासी पसंद की गयी। दूर की आवाज़, शागिर्द, ये ज़िंदगी कितनी हसीन है और साज़ और सनम, सबने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया। जॉय ने 'छैला बाबू' के अलावा 'हमसाया' का भी निर्माण-निर्देशन किया था, लेकिन यह देशभक्ति की फिल्म उन्हें कुछ नहीं दे पायी सिवाय हिट गीत-संगीत के - मेरी आवाज़ भी सुन मेरे फ़साने पे न जा...
१९८९ में 'उम्मीद' टीवी सीरियल भी जॉय के डूबते सूरज को नहीं बचा पाया। वो गुज़रे वक़्त की अपनी हिट फिल्मों - इशारा, शागिर्द, दिल और मोहब्बत, एक बार मुस्कुरा दो आदि को याद करते रहे और उनके गीत-संगीत को गुनगुनाते रहे - छोड़ो कल की बातें...दिल बेक़रार सा क्यों है...बड़े मियां दीवाने ऐसे न बनो... दुनिया पागल है या फिर मैं दीवाना...हम छोड़ चले हैं महफ़िल को...

जॉय मुख़र्जी को बहुत अफ़सोस रहा कि 'लव इन बॉम्बे' में उन्होंने जमा पूंजी और जान लगा दी लेकिन ये फिल्म झमेले में फंस गयी। उन पर धोखा-धड़ी का इल्ज़ाम लगा। कोर्ट-कचेहरी हुई। वो बेदाग निकले। लेकिन फिल्म रिलीज़ नहीं कर सके। ये रोशनी में तब आयी जब ९ मार्च २०१२ को उनकी मृत्यु हुई। पत्नी नीलम ने एक कोल्ड स्टोरेज से इसे खोज निकाला और ४२ साल इसे रोशनी देखनी नसीब हुई। फिल्म नहीं ही चलनी थी। बल्कि और पैसा लग गया। लेकिन जॉय के परिवार को यह संतोष रहा कि जॉय की अंतिम इच्छा पूर्ण हुई। 
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