Tuesday, March 14, 2017

कैसे जीते हैं यहां के लोग?

-वीर विनोद छाबड़ा
नए बॉस आये थे। हम उन दिनों हम एक छोटे-मोटे अफ़सर थे। औपचारिकतावश हम उनसे मिलने गए। अपना परिचय दिया। 
वो प्राण स्टाईल में बोले - अच्छा तो आप हैं मिस्टर फलां।
हमें अचरज हुआ और ख़ुशी भी कि बॉस हमें पहले से ही जानते हैं। हमने बाअदब से जवाब दिया - जी सर। 
बॉस इस जवाब से खुश नहीं हुए। सिगरेट सुलगाते हुए बोले - सुना है आप यहां समानांतर सरकार चलाते हैं।
हम समझ गया कि किसी ने इन्हें हमारे बारे में कुछ ऐसा 'फीड' कर दिया है, जिसके हिसाब से हम कोई शातिर खिलाड़ी हैं। इनसे निपटना थोड़ा मुश्किल होगा। ख़ैर तब तक हम भी पच्चीस साल नौकरी कर चुके थे। ऐसे ऐसे बहुत देखे थे। हेडक्वार्टर पर पैदा हुए थे, अतः तमाम सूरमाओं की जन्मपत्री भली-भांति कंठस्थ थी। निपट लेंगे इनसे भी। हमें मालूम था कि इन नए बॉस की बहुत ऊपर तक पहुंच रही है, किसी की भी सरकार रही हो। अब तक जहां-जहां भी तैनात रहे, मतलब वाले को करीब रखा और ईमानदार को कोई बेकार सा काम पकड़ा कर ढक्कन बना दिया। विभाग को जम कर चूसा। मौज मस्ती की। मन भर गया तो जुगाड़ लगा कर दूसरी जगह निकल लिए। उनका फंडा ये रहा है कि खूब घूस खाओ, घूस लेते पकडे जाओ तो घूस देकर छूट जाओ।
बहरहाल हमने और बॉस ने एक-दूसरे को अर्थपूर्ण नज़रों से देखा। बॉस ने हमारी आंखों में क्या पढ़ा, ये तो मालूम नहीं।
लेकिन हमने बॉस की ताकत के मद्देनज़र उनकी आंखों में अपने बारे में जो कुछ पढ़ा उसका सार यह था - हमारे हिसाब से चलो तो ठीक। वरना किसी गट्टर में ऐसा फिंकवा दूंगा कि सात पुश्तें नहीं ढूंढ पाएंगी।
हम तो ऐसी स्थितियों से निपटने के लिये हमेशा से ही तैयार रहे हैं। चूंकि हमारी पोस्ट ट्रांसफरेबुल नहीं थी, इसलिये हम जानते थे कि इस पंद्रह मज़िला ऑफिस के इस कमरे से उस कमरे या इस फ्लोर से उस फ्लोर तक ही ट्रांसफर होगा।
बॉस के कमरे में ज्यादा देर तक रुकना नहीं चाहिए। अन्यथा उसे ब्रेन-वेव आनी शुरू हो जाती हैं। ठीक है सर, कोई काम हो तो बुला लीजियेगा। हम ज्यादातर सीट पर ही मिलते हैं। यह कह कर हम चल दिये।
बॉस ने आर्डर दिया। नहीं बैठिये। अभी बात कहां हुई है?
हम थोड़ा अचकचा कर बैठ गये।
बॉस अचानक फिलॉसफर हो गए - देखिये, ईमानदार आदमी की अनेक किस्में होती हैं - 
१) जो डरपोक होते हैं।
२) जिनमें चतुराई नहीं होती।
३) जो बेवक़ूफ़ होते हैं। 
४) जिनका ज़मीर वाकई गवारा नही करता। 
५) वो जो जैसे दिखते हैं वैसे होते नहीं। अकेले ही सब डकार जाते हैं और
६)  वो जो काम नहीं करते, सिर्फ़ लहरें गिन कर कमाते हैं।
हमने गहरी सांस ली।  बॉस तो पहले से ही सब जान चुके हैं। कुछ-कुछ अंतर्यामी भी लगे।
अचानक बॉस एक कड़क पुलिस ऑफ़िसर के अंदाज़ आ गए। अच्छा होगा अगर हम-आप मिल कर चलें। नहीं तो आप जानते होंगे कि हमारी पहुंच कितनी ऊपर है। आपको पोस्ट सहित कहीं भी फिकवा सकता हूं। यहां तक कि प्रदेश से बाहर भी।

हम समझ गये कि अगर इस आदमी की सोच के अनुरूप नहीं चले तो कोई फ़र्ज़ी केस बना कर नुकसान पहुंचा सकता है। हमें एक अदद घरवाली और दो बच्चों का भी ख्याल आया। अतः हमीं ने पहल की। हम सीधे सेक्रेटरी साहब से मिले। वो भले आदमी थे।
उसी शाम हम दूसरे सेक्शन में ट्रांसफर कर दिये गये। चलो पिंड छूटा। 
पंद्रह दिन बाद उस नए बॉस ने जुगाड़ लगा कर मनपसंद क्रीमी जगह ट्रांसफर ले लिया। जहां मलाईदर दूध देने वाली कई भैंसे और गाय थीं।
जाने से पहले उन्होंने हमें औपचारिकतावश मिलने के लिये बुलाया। बहुत फ्रैंक होकर मिले - यार सोचा था हेडक्वार्टर में मौजां ही मौजां हैं। लेकिन यहां तो सब उल्टा मिला। इस रेगिस्तान में कैसे जीते हैं यहां के लोग?
उसके बाद वो बॉस जब-जब लखनऊ आये। हमसे ज़रूर मिले। सिगरेट का धुआं उगलते हुए अपनी वीर गाथायें सुनाते रहे और हम सुनते रहे।

अब तो मुद्दत हो गयी है उन्हें रिटायर हुए। हम भी रिटायर हो चुके हैं। पिछले दस साल से मुलाक़ात नहीं हुई है। सुना है अमेरिका में किसी मल्टीनेशनल कंपनी के सलाहकार हैं।  
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