Saturday, March 11, 2017

अंधा बांटे रेवड़ी, मुड़-मुड़ अपने को दे!

-वीर विनोद छाबड़ा
सत्तर अस्सी का दशक। हम एक स्वायत्तशासी सरकारी विभाग में काम करते थे। अंग्रेज़ी का बोलबाला था वहां। हिंदी का प्रयोग सिर्फ़ सरकार को उत्तर देने के लिए ही किया जाता था।वहां वेतन और अन्य सुविधायें राज्य सरकार के उच्चतम कार्यालय से भी बढ़ कर थीं। 

हमारे एक सीनियर सहकर्मी का हिंदी में हाथ तंग था। अतः इसके लिए हमारा सहारा लेते थे। हम ख़ुशी ख़ुशी उनकी सहायता करते थे। मातृ भाषा की सेवा ही तो हो रही है। यों भी हम इस सिद्धांत में यकीन करते थे कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
हमारे बॉस का भी हिंदी में हाथ तंग था। बड़ा कष्ट होता था उन्हें हिंदी पढ़ने और लिखने में। खुद को अंग्रेज़ की औलाद समझते थे। तंगदिली में तो वो हिटलर के भी पिताश्री थे। पेशाब भी आया हो तो बता कर नहीं, बल्कि पूछ कर जाओ। बहुधा वो रोक लेते थे। एक गया हुआ है, वो लौट कर आ जाए तब जाना। कई बार तब रोके रखना मुश्किल हो जाता था। बाक़ायदा रजिस्टर पर 'जावत' और 'आवत' दर्ज होती थी। कितना समय लगा, यह भी। अक्सर डांटते थे, पेशाब करने में दो मिनट से ज्यादा नहीं लगा करते। तुमने पांच मिनट लगा दिए। तीन मिनट कहां लगा दिए? हमें याद है कि स्कूल के दिनों में छड़ी मास्टर भी इतना ज़ुल्म नहीं करते थे।
एक बार हम पेशाब के लिए कह कर गए। संयोग से वहां पाखाना भी आ गया। पेंट उतारनी पड़ी और फिर चढ़ानी भी। देर हो गयी। जवाब-तलब हो गया। बड़ा गुस्सा आया। कह दिया कि आपने तो हिटलर और मुसोलनी को भी पीछे छोड़ दिया। बदज़ुबानी के लिए हमें चेतावनी जारी कर दी गयी। साथ में यह भी लिख दिया गया कि आयंदा ऐसी हरकत दोबारा की तो 'निंदा प्रविष्टि' दी जायेगी। यानी अगले तीन साल तक कोई प्रमोशन नहीं होगा।
हमने यूनियन में शिकायत की। वहां भी भाई-बिरादरी वाला मामला आ गया। महामंत्री जी बॉस के कज़िन थे। हमारी आवाज़ दबा दी गयी।
हमारे हृदय को ज़बरदस्त आघात लगा। हमने तय कर लिया कि कुछ तो करना ही होगा। या बॉस नहीं या हम नहीं।
हमें एक उपाय सूझा। बॉस का ज्ञान हिंदी में कम है। क्यों न अंग्रेज़ी के बजाये में काम किया जाए। अगले ही क्षण हमने अंग्रेज़ी की बजाये हिंदी में नोट लिख दिया। एक फाईल में नहीं, कई फाईलों में।
बॉस को तो काटो खून नहीं। लिख दिया - स्पीक प्लीज़। 
हमने स्पीक करके उनको प्लीज़ करने का प्रयास किया। लेकिन बॉस ज्यादा ही दुखी हो गए। उन्होंने ऊपर तक मामला पहुंचा दिया।
हमें बुलाया गया। पूछा गया - जब अंग्रेज़ी आती है तो हिंदी में क्यों लिखा? परेशान करने के लिए?
हमारा एक ही जवाब था - हिंदी हमारी मातृ भाषा है, राज भाषा भी। कोई नियम या कानून नहीं जो हमें हिंदी में काम करने से रोक सके। किसी माई के लाल में यह दम है तो फाईल पर लिख दे कि हिंदी में नहीं अंग्रेज़ी में लिखा करें।
हाथ कांप गए बड़े बड़ों के। हम खुश हुए। मूछों पर ताव दे कर वापस आये। मगर पंद्रह मिनट भी न बीते होंगे कि हमारे लिए स्थानांतरण का फ़रमान आ गया।
तीन महीने बाद एक समारोह हुआ। उसमें हिंदी में काम करने वालों को पुरुस्कृत किया गया। सम्मानित होने वालों में हमारे अंग्रेज़ी प्रेमी सहकर्मी मित्र और उन बॉस का नाम भी था।
हमें तो गायब होना ही था। अंधा बांटे रेवड़ी, मुड़-मुड़ अपने को दे।
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11-03-2017 mob 7505663626
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Lucknow - 226017

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