Friday, November 18, 2016

घरवाली-बाहरवाली!

-वीर विनोद छाबड़ा
यह जोक बनाने वालों का भी क्या दिमाग़ होता है। लगता है कोई फैक्टरी है, जहां ये सब तैयार किये जाते हैं। अनुमान है कि एक पति विभाग होगा जहां पत्नी-पीड़ित पत्नियों से रीयल लाइफ में पिटने के बाद पत्नियों को निशाना बनाते होंगे। ऐसा ही एक विभाग पत्नियों का भी होगा। अलावा इसके कई अन्य विभाग भी।

मैं कई साल से लतीफ़े पढता आ रहा हूं। मेरा तजुर्बा है कि लतीफ़े कभी मरते नहीं। पुराने हो जाने पर कोई न कोई उस पर नए का मुलम्मा चढ़ा कर पेश कर देता है। फिर पीढ़ियां भी तो बदलती रहती हैं। सुबह सुबह लतीफा पढ़ लो तो सारा दिन खुश्गवार गुज़रता है। पाठक भाई-बहनें लोग दूसरों से शेयर करके उनको भी खुश कर देते हैं।
बहरहाल, बरसों पहले सुना/पढ़ा एक लतीफ़ा फिर मेरी निगाह से गुज़रा। लतीफा सुनाने को भी फ़न होता है और लिखने का भी। हमारा कुछ कुछ किस्सागोई का अंदाज़ है। मुलाइज़ा फरमायें।
एक शानदार होटल। अब शानदार है तो एयरकंडीशन तो होगा ही। वेटर भी सुटेड-बूटेड होंगे। कई बार तो वो कस्टमर्स से भी महंगी ड्रेस में होते हैं और ज्यादा स्मार्ट भी।
अंग्रेज़ी भी बढ़िया। अंग्रेज़ी से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले अंग्रेज़ी से आर्डर देना शुरू करते हैं तो दो पल के बाद ही हिंदी में उतर आते हैं।
धोती-कुरता वाले भी यहां जब पतलून पहन कर आते हैं तो वेटर उनकी चाल से तुरंत पहचान लेता है।
वेटर सबकी खबर रखता है। कौन घरवाली के संग आया है और कौन बाहर वाली के साथ।
एक हाई-फाई रेस्तरां में ऐसे ही तमाम भद्रपुरुष घरवाली और बाहरवाली के आया करते थे। एक चालाक भद्रपुरुष अपनी सेक्रेटरी के साथ आते थे। अपने व्यवहार से किसी वेटर को भनक तक नहीं लगने दी कि उनकी पार्टनर घरवाली नहीं बाहरवाली है। एक खास वेटर पेश्तर से पहले सर्विस देता। बदले में बढ़िया टिप मिलती। कौन किसके साथ है, उसकी बलां से?
एक दिन उस भद्रपुरुष ने वेटर को पांच सौ रूपए टिप दी।
वेटर की तो लाटरी लग गई। गलगला गया वो। थूक निगलते बोला - सर, अब आपको फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं। वो कोने वाली टेबुल देख रहे हैं। जहां थोड़ा-थोड़ा अंधेरा पसरा हुआ है। समझ लीजिये आपके लिए हमेशा बुक रहेगी। जब न आना हो तो बस एक मिसकॉल दे दें।
भद्रपुरुष वेटर को अलग एक कोने में घसीट कर ले गए और फुसफुसाते हुए बोले - मूर्ख, तुझे ये टिप इसलिए दी है कि कल मैं अपनी पत्नी के साथ आऊंगा।
वेटर बोला - तो यह भाभी जी नहीं हैं क्या?

भद्रपुरुष ने डांटा  - अबे तुझे इससे क्या मतलब? तू बस इतना करना कि कल मैं पत्नी के साथ आऊं तो कहना कि कोई टेबुल खाली नहीं है। फिर मैं उसे किसी सस्ते मद्दे वाले रामभरोसे शुद्ध शाकाहारी भोजनालय में भोजन करा दूंगा। यह रख पांच सौ और। समझा।
वेटर ने हां में सर हिला दिया।
दूसरे दिन वो भद्रपुरुष अपनी पत्नी के साथ आये।
संयोग से उनका ख़ास वेटर अस्वस्थ होने के कारण छुट्टी पर था। उसकी जगह एक पुराने घाघ वेटर ने स्वागत किया, जिसको उस भद्रपुरुष से कभी अच्छी टिप नहीं मिली थी - आइये, आइये सर। वो कोने वाली टेबुल आपके लिए खाली है। जहां आप रोज़ अपनी सेक्रेटरी के साथ आते हैं।
उसके बाद क्या हुआ होगा। आप समझ सकते हैं। सैंडिल और.

कुछ लोगों के सर पर बाल इस कारण से भी सफ़ेद हैं। 
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