Tuesday, November 15, 2016

इसे कहते हैं सुप्रभात!

-वीर विनोद छाबड़ा
आज सुबह-सुबह अपने ठीक समय पर नाश्ते का ऐलान हुआ।
हम नेस्ती के मारे बिस्तर से उठे और झटपट कुल्ला कर टेबल पर आ बैठे।
हम चौंके - यह क्या है?
मेमसाब ने चिहुंक कर कहा - खा कर देखो।
हम सशंकित हुए। आज फिर कोई एक्सपेरिमेंट है क्या? हालांकि अब तक जितने भी एक्सपेरिमेंट हुए उनकी परिणति अंततः सुखद ही रही है।
हमारी घ्राण शक्ति शुरू से ही कमजोर रही है। सूंघ कर पता लगाना हमारे लिए सदैव कष्टप्रद रहा है कि फलां आइटम क्या है।
तिस पर दिक्कत यह थी कि प्रश्नगत आइटम का आकार-प्रकार भी विचित्र था। अतः देख कर अनुमान लगाने के फ्रंट पर हम पूर्णतया फेल हो गए।
अब एक ही चारा था कि चख कर बताया जाए कि क्या है। हमारी यह शक्ति कमोबेश अच्छी है।
उधर मेमसाब की आतुर निगाहें व्यग्रता से प्रतीक्षारत थीं कि हम चखें और उन्हें पास करें। यों भविष्य को उज्जवल रखने के दृष्टिगत फेल करने का तो सवाल ही उत्पन्न नहीं होता था। भूत में हमने एकाध दफ़े न चाहते हुए हुए भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है।
बहरहाल, हमने डरते-डरते एक पीस उठाया। जुबान पर टच होते ही हम ख़ुशी से उछल से उछल पड़े - अरे यह तो जलेबी है। सौ फ़ीसदी। जबकि आकार-प्रकार से कुछ गुलगुले टाइप के आइटम का आभास हो रहा था।
सोचता हूं, जलेबी के इस विचित्र आकार का पेटेंट करा लूं।
कुछ भी हो मज़ा आ गया। बाज़ार की जलेबी से हर मामले में लाख गुना बेहतर। टेस्ट में भी, साफ-सफाई और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी। भागदौड़ से भी बचे। जेब भी नहीं हलकी हुई। वाह! इसे कहते हैं सुप्रभात। 
बस कमी यह रही कि आत्मा तृप्त नहीं हुई। भरपूर जलेबी नहीं मिल पाई। बाजार का हलवाई होता तो जितनी चाहते खा लेते।

चलिए, अभी तो आग़ाज़ है। पूरी उम्मीद है कि प्रथम प्रयास में प्राप्त असीम सफलता से प्रफुल्लित मेमसाब अगली बार मात्रा ज्यादा रखेंगी।
प्रतिदिन के भविष्यफल पर कभी यकीन नही किया मैंने। लेकिन जलेबी के साथ सुखद व आश्चर्यजनक सुप्रभात से अविभूत हम समाचारपत्र में भविष्यफल देखने पर मजबूर हुए।
लिखा था - गृह कलह से दिन भर दिल उचाट रहेगा। खर्च ज्यादा और आमदनी कम।
लेकिन फिलहाल यहां तो दिन की शुरुआत अच्छी है। आगे-आगे देखिये होता है क्या?

मगर हमने ठान रखी है, कुछ भी हो जाए सुबह की मिठास हम दिन भर कायम रखेंगे, मुंह बंद रख कर।
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11-15-2016 mob 7505663626
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