Thursday, November 10, 2016

यहां धुआं धुआं सा क्यों है मेरे भाई?

-वीर विनोद छाबड़ा
आज सुबह की ही तो बात है। बंदे के पड़ोसी सियाजी ने घर का ढेर सारा कूड़ा-करकट अपने घर के द्वारे पर जला दिया।

इस कूड़े में उनके लाॅन आंगन की सूखी घास, रद्दी काग़ज, प्लास्टिक का टूटा-फूटा सामान, घिसा-फटा साईकिल का टायर, टूटे-फूटे फर्नीचर के अवशेष, चमड़े और रबड़ के फटे जूते शामिल थे।
बंदा सियाजी को पहले भी कई मरतबे मना कर चुका था कि कूड़ा घर के सामने जलाया करें। सफाईवाले से उठवाया करें। मगर सियाजी इस कान से सुन उस कान से बाहर कर देते थे। मनमानी करना शान समझते थे। दुनिया को हमेशा जूते की नोक पर रखने की धमकी भी दिया करते थे। हालांकि इसका जवाब बंदे की बड़बोली और आतंकी स्वभाव पत्नी दिया करती थी।
मगर खासी जूतम-पैजार के बाद भी नतीजा कुछ नही निकलता था। थक हार कर बंदा अपने खिड़की-दरवाज़े बंद रखता था। लेकिन आज गलती से खिड़की-दरवाजे खुले रह गए।


और वही हुआ जो पहले भी कई बार हो चुका था और जिसका डर अक्सर लगा रहता है। सियाजी द्वारा जलाये कूड़े का बदबूदार रसायनज्ञी धूंआ खुली खिड़की के रास्ते से बंदे के घर भर में फैल गया। चूंकि बंदा अस्थमा के अलावा अन्य नाना प्रकार की व्याधियों से पीड़ित है, अतः उसे बेतरह खांसी के साथ-साथ सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी। बदन भी बुरी कांपने लगा। इन्हेलर, नेबुलाईज़र और डाक्टर की प्रेस्क्राईब्ड दवाएं भी कारगर सिद्ध नहीं हो पायी।
ऐसे में उनकी आतंकी पत्नी को टेलर मेड पिच मिल गयी। उसने सियाजी के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। और चुनींदा असंसदीय शब्दों के बाणों से उनको बेतरह बींध दिया। आस पास के सियाजी सताए लोग भी मोर्चे में शामिल हो गए।
आज सियाजी बैकफुट पर हैं। एक भी बाण का जवाब नही दे पाये। शायद ये बाणबाजी सियाजी की पिटायी में कनवर्ट होती कि इस बीच बंदे की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गयी।
पत्नी ने झगड़े पर क्रमशः लगाया और अन्य पड़ोसियों की मदद से उन्हें सबसे नज़दीकी अस्पताल ले गयी। वहां बंदे को आक्सीजन देने के साथ-साथ तमाम ज़रूरी इंजेक्शन दिए गए। काफी मशक्क़त के बाद बामुश्किल उसकी जिंदगी को पटरी पर लाया जा सका था।

इस दौरान शर्मिंदा सियाजी अपनी गाड़ी परिवार सहित बंदे की खिदमत में जुटे रहे। वो बार-बार कान पकड़ कर बंदे की पत्नी से माफ़ी मांग रहे थे - आइंदा ऐसा नहीं होगा।
तभी बंदे को होश गया। अभी उनकी आंखों के सामने हल्का सा धुंधलका है। वो पूछते हैं - यहां धुआं धुआं सा क्यों है भाई?
सियाजी बंदे का हाथ थामते हैं - नहीं दोस्त धुआं तो अब छंट गया है।

सियाजी ये भी वादा करते हैं कि इस बार दीवाली पर वो बारूदी धुआं छोड़ने वाले पटाखे भी नहीं छोड़ेंगे। वो ये भी वादा करते हैं कि वो दूसरों से भी कहेंगे कि घर के सामने कूड़ा जलाने में कोई शान नहीं है। बल्कि इसके धुएं से किसी सांस रोगी की ज़िंदगी खतरे में पड़ सकती है। 
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