Wednesday, September 21, 2016

कॉमेडियन की ट्रेजेडी

- वीर विनोद छाबड़ा
कॉमेडी कलाकारों की भीड़ में एक अदाकार ऐसा भी हुआ है कि दर्शक सीन में उसकी एंट्री से पहले ही चौकन्ने और सावधान हो गये, और फिर बेतरह हंसे भी। इस कॉमेडियन का नाम था राधा किश्न। हुआ यों कि १९४७ में एक फिल्म आयी थी - शहनाई। इसमें राधा किश्न के किरदार का नाम था लालाजी। सेठ के मुंशी। हर समस्या के हल का निदान उनकी जेब में था। सेठ जी को जब-तब इनकी ज़रूरत रहती। वो जब-तब उन्हें आवाज़ देते थे - लालाजी। अब चाहिए तो यह था कि लालाजी सीन में दाखिल हों और पूछें - कहिए जनाब, क्यों याद किया? मगर होता यह कि नेपथ्य से आवाज़ आती थी- जी, आया जी। और इसके कुछ क्षणों बाद लाला जी सशरीर प्रकट होते। तब तक दर्शक उनके इंतजार में हंस चुके होते थे। उनको सशरीर देखकर एक बार फिर हंसते, इस प्रत्याशा में कि अब लाला जी कोई चुटीला डायलाग बोलेंगे। उनकी यह स्टाईल बहुत पापुलर हुई।
राधा किश्न के चापलूस कॉमिक विलेन के किरदार में भी खूब पसंद किया गया। वो होंटों को दांतों तले दबा कर बोलते थे। बरसों बाद अनुपम खेर ने बेटा और चालबाज़ फिल्मों में इस स्टाईल को रिपीट करके उनकी याद ताज़ा करायी। उनका जन्म १३ जून १९१५ को हुआ था। वो अपनी शर्तों पर काम करते थे। परफेक्शन के फेर में उन्होंने किरदार को बार-बार रिहर्स करने में टाईम बहुत खर्च किया। इस कारण १९३६ से १९६२ के तक लंबे कैरीयर में महज़ ३९ फिल्में ही कर सके। उनकी पहली फिल्म करोड़पति (१९३६) थी। कई बरस बाद १९६१ में इसी नाम से पुनः फिल्म बनी। इसमें उन्होंने संवाद भी लिखे थे। वो बहुत अच्छे लेखक भी थे। करोड़पति के अलावा नई दिल्ली (१९५६) का स्क्रीनप्ले भी उन्होंने लिखा।  
Radha Kishen
राधा किश्न चूंकि खुद एक अच्छे संजीदा लेखक थे, इसलिये उन्हें मालूम था कि किस किस्म के किरदार को सीन के मुताबिक किस अंदाज़ में क्या बोलना चाहिए और सीन की गंभीरता से बोझिल माहौल को कैसे कम करके हंसी का फौव्वारा चालू किया जाये। 'नया दौर' में वो कॉमिक विलेन थे। ढेर तालियां भी बटोरी। तब दिलीप कुमार व्यक्तिगत रूप से उनके सामने नतमस्तक हुए थे।
उनके संवादों में व्यंग्यात्मक पीड़ा के साथ-साथ चुटीलापन भी होता था। टाइमिंग और हाज़िर जवाबी में उनका कोई सानी नहीं था जो स्तरीय हास्य के सृजन की प्रथम शर्त होती है। एक फिल्म में वो अपनी नकचढ़ी पत्नी से कहते हैं - लात तुम मारती हो और गधा मुझे कहती हो।
दो बांके (१९५९) में राधा किश्न की बहन किसी के साथ भाग गयी। पत्नी परेशान थी कि शाम पति जब घर वापस आयेगा तो उसे किस मुंह से बतायेगी। इधर बहन के भागने की खबर पाकर राधा किश्न भागे भागे घर आये। ऐसे सीरीयस माहौल में भी राधा किश्न ने ठहाका लगवा ही दिया। दरवाजे पर परेशान हाल खड़ी पत्नी से राधा किश्न बोले- अब तुम यहां क्यों खड़ी हो? किसी के साथ भागने का तुम्हारा भी तो इरादा नहीं है?

राधा किश्न अभिनीत कुछ अन्य प्रमुख फिल्में हैं - बैजू बावरा, वचन, एक ही रास्ता, दुश्मन, परवरिश, लाजवंती, स्कूल मास्टर, फैशनेबुल वाईफ, छोटी बहन, सिंगापुर, श्रीमान सत्यवादी, एक के बाद एक, साधना, बनारसी ठग और देवानंद की शराबी जो उनकी मृत्यु के पश्चात १९६४ में रिलीज़ हुई थी। वो सरल व निश्छल स्वभाव और हंसोड़ तबियत के मालिक थे। जहां भी बैठते थे, माहौल को हंसी ठहाकों और चुटकी लेने की प्रवृति से सहज व खुशनुमा बना देते थे। वो जीवंत व्यक्ति थे, खुशियों से भरपूर। परंतु उनकी मृत्यु उनके इस व्यक्तित्व व स्वभाव के विपरीत ट्रैजिक हालात में हुई थी।

'अमर रहे ये प्यार' विभाजन के कारण तबाह मुल्क और छिन्न-भिन्न हुई सामाजिक समरसता की ओर इशारा करता थी। राधा किश्न ने अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर सारी पूँजी लगा दी थी और बाजार से काफ़ी कर्ज भी लिया। लेकिन फिल्म सेंसर के झमेले में फंस गयी। करीब साल भर के विलंब के बाद रिलीज़ हुई तो फ्लाप हो गयी। इस बीच कर्ज पर ब्याज बहुत ज्यादा हो गया। तबाह हो गए राधा किश्न। बहुत भीतर तक आहत भी। जिंदगी को खुद पर बोझ समझने लगे वो। एक ऊंची ईमारत से छलांग लगा कर इहलीला समाप्त कर ली। और इसी के साथ असमय बिदा हो गया राधा किश्न नाम का एक सबसे जुदा-जुदा सा दिखने वाला नेचुरल आर्टिस्ट।
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Published in Navodaya Times dated 21 September 2016
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1 comment:

  1. राधा कृष्ण पुराणी पीढ़ी के एक अत्यंत प्रभावशाली हास्य कलाकार थे।उनके बारे में विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद।उनका ऐसा दुखद अंत हुआ।कष्ट हुआ।विनम्र श्रदांजलि

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