Friday, September 16, 2016

ड्रेस कोड, बोले तो फील गुड

- वीर विनोद छाबड़ा
हम सैद्धांतिक रूप से प्रबल समर्थक रहे हैं कि स्कूल हो या कॉलेज या ऑफिस, ऊपर से नीचे तक सबके लिये बढ़िया कंबीनेशन वाली और अच्छी गुणवत्ता वाली ड्रेस होनी चाहिए। जूता भी टॉप क़्वालिटी का हो। सब एक पंगत में बैठ कर रोटी खायें। सद्भाव, भाईचारे और अनुशासन की भावना उत्पन्न होती है। काम करने में भी मन लगता है। पहचान भी बनती है।
लेकिन पर उपदेश कुशल बहुतेरे। हमें क्या मालूम था कि ये रिटायरमेंट से कोई साल भर पहले हमें ड्रेस पहना दी जायेगी।
और त्रासदी यह कि ड्रेस कोड के आदेश भी हमारे हस्ताक्षर से निर्गत हुए।
बहुत नाराज़ हुए लोग। मुंह वाली बंदूक-लाठी लेकर लोग निकल पड़े। स्वतंत्र जीवन में यह कैसा सरकारी खलल? मौलिक अधिकारों का हनन। कल को कहा जायेगा वही बोलो, जो हम चाहें और वही लिखो, जो हम चाहें। खाने-पीने का मीनू भी हम ही तय करेंगे।
और फिर यह कैसा वाहियात कंबीनेशन? स्काई ब्लू शर्ट और कोकाकोला पैंट। महिलाओं के लिए इसी रंग का साड़ी-ब्लाउज़। फील गुड की जगह फील बेड की फीलींग हो रही है। मीटिंग में इस रंग के चयन का बहुत ही विरोध हुआ था। लेकिन आकाओं के सौंदर्यबोध के समक्ष हमारी एक न चली।
महिलाओं ने सबसे ज्यादा विरोध किया। पुरुषों ने भी इसे वाहियात बताया। लेकिन विरोध कर रहे बाज़ पुरुष चाहते थे कि चूंकि साड़ी का कपड़ा बहुत पतला है अतः महिलाओं को कोकोकोला रंग का पेटीकोट भी दिया जाये।

हमारे तो घर में भी बहुत विरोध का स्वर उठा। कैसे लोग हैं तुम्हारे ऑफिस में? कंबीनेशन की भी तमीज़ नहीं। बिलकुल घटिया चवॉइस। और कपड़ा भी कितना घटिया क़्वालिटी का है? भिखारी हैं, सब के सब। इससे अच्छा तो ख़ाकी ड्रेस रख देते। घिसने के बाद झोला बन जाए। छी: छी:। घर से पहन कर नहीं निकलना। देख कर हसेंगे लोग। वहीं ऑफिस में जाकर पहनना।
और पहली ही धुलाई में रंग उतर गया। निचोड़ने से कईयों के कपड़े फट भी गए। सरकारी मिल से ख़रीद का यही हाल होता है। कुछ ही महीने में ही दम तोड़ गया ड्रेस कोड। तोड़ने वालों में सबसे आगे इसे लागू करने वाले ही थे।
रिटायर होने के बाद ड्रेस हमने सफ़ाई कर्मी को दी। उसने लेने से मना कर दिया। इतना घटिया कपड़ा। हम तो नहीं पहनते। 
---
16-09-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

No comments:

Post a Comment