-वीर विनोद छाबड़ा
फिल्मी दुनिया भी एक अजीब
गड़बड़झाला है। करिश्मा ही तो है कि मोहन सहगल की ‘सावन भादों’(१९७०) वाली थुलथुली और भोंदू लड़की, जिसे नाक तक पोंछने
की तमीज नहीं थी, किवदंती बन गई। निर्देशक
की नायिका है। उसे मालूम है कि किस गहराई और ऊंचाई के स्तर पर कब और कैसे परफार्म करना
है। शून्य से शिखर तक की यात्रा अकेले और अपने बूते की। जब जब राह भटकी तो पुनः खुद
को खोज लिया। पुरुष बन कर पुरुषों वाले काम पुरुष से बेहतर ढंग से किया। वो हालीवुड
की लीजेंड ग्रेटा गोर्बा है। हालीवुड की मर्लिन मुनरो सेक्स है तो वो बालीवुड की चमत्कार
है। ऐसी बातें कहीं हो रही हों तो यक़ीनन ६३ साल की होने आई रेखा की बात हो रही होती
है, जो ४५ साल का लंबा फिल्मी सफर तय कर चुकी है।
रेखा तमिल फिल्मों के मशहूर
अभिनेता जैमिनी गणेशन और तेलगु फिल्मों के अभिनेत्री पुष्पावली की पुत्री है। मां और
पिता विधिवत शादीशुदा नहीं थे। जब वो जन्मी तो पिता ने अपनाने से इंकार कर दिया। वो
दिन थे संखियों संग खेलने कूदने के, पटोले बनाने के और पढ़ने
के, सुनहरे सपने देखने। लेकिन परिवार को आर्थिक संकट से उबारने के
लिए उसने कैसे-कैसे नर्क से गुज़र कर फिल्मों में काम किया। जब वो लोकप्रियता की ऊंचाईयों
पर पहुंची तो पिता ने उसकी ज़िंदगी में ‘वापसी’की कोशिश की। लेकिन रेखा ने इंकार कर दिया। उसकी ज़िंदगी के इस
हिस्से से प्रभावित होकर ‘जीवनधारा’(१९८३) बनी। अपनी ही ज़िंदगी को परदे पर इतनी खूबसूरती से जीया
कि वो बेस्ट एक्ट्रेस के फिल्मफेयर एवार्ड के लिये नामांकित हुई।
पहली हिंदी फिल्म थी विश्वजीत
के 'अंजाना सफ़र', जो काफ़ी झमेलों के बाद
'दो शिकारी' शीर्षक से रिलीज़ हुई और
फ्लॉप हो गई। यह भी एक दिलचस्प बात है कि यह विश्वजीत ही थे जिन्होंने भानुरेखा को
रेखा नाम दिया।
बहरहाल, अगली फ़िल्म ‘सावन भादों’थी। तब महज़ सोलह साल की थी वो। उसे दक्षिण से आया सेक्स बम करार
दिया गया। उस दौर की अनेक फिल्में उसके साधारण अभिनेत्री होने की गवाह हैं।
दुलाल गुहा की ‘दो अंजाने’(१९७६) में वो अमिताभ बच्चन की लालची पत्नी थी। इसी फिल्म से
उसने एक अच्छी अभिनेत्री होने की झलक दिखायी। ‘मुकद्दर का सिंकंदर’और ‘घर’ने इस तथ्य को अग्रतर पुख्ता किया। इसके बाद रेखा ने पीछे मुड़
कर नहीं देखा। एक से बढ़ कर एक ईनामी भूमिकाओं में वो दिखने लगीं। डायरेक्टर उनकी अभिनय
की गहराई के मुताबिक किरदार लिखवाने
लगे। ‘खूबसूरत’ने उसे सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर एवार्ड दिलाया। अगला
एवार्ड ‘खून भरी मांग’के लिये मिला। यह उस वक्त मिला जब माना जा रहा था कि रेखा का
जादू अब उतार पर है। फिल्मफेयर का एक और अवार्ड रेखा को 'खिलाडियों का खिलाड़ी' के लिए मिला। लेकिन
यह इंटरनेशनल नूराकुश्ती का गैंग चला रही खुंखार लेडी की नकारात्मक भूमिका के लिये
मिला।
मुज़फ्फर अली १९८१ में जब
‘उमराव जान’की तवायफ़ तलाश
रहे थे तो उन्हें किसी ने सुझाव दिया कि ‘मुकद्दर का सिकंदर’और ‘सुहाग’की रेखा को देखें। और रेखा उमराव की 'जान' बन गयी। इसके लिये
सर्वश्रेष्ठ नायिका का राष्ट्रीय पुरुस्कार मिला। एक इतिहासकार का कथन था कि रेखा को
देख कर दावे से कह सकता हूं कि इतिहास में दर्ज उमराव जान ऐसी ही रही होगी।
परदे की दुनिया से बाहर
रेखा कई लव अफेयर्स के कारण चर्चित रही। आखिर में अमिताभ बच्चन से उसके रिश्तों को
लेकर गॉसिप की दुनिया ने खूब चटखारे लिए। इन दोनों ने कई फिल्में साथ-साथ की। सब हिट
रहीं। इनकी कमेस्ट्री देख कर लगता था कि एक दूजे के लिए बने हैं। बताते हैं कि जया
बच्चन से मिली फटकार के बाद रेखा मान गयी कि वो किसी का घर उजाड़ कर और किसी पत्नी का
दिल तोड़ कर कदापि घर नहीं बसायेगी। इस किस्से की गिनती फिल्म इंडस्ट्री की टाप दस प्रेम
कथाओं में होती है। इस विवादित और चर्चित अफ़साने का दि एंड भी खासा चर्चित और ड्रामाई
रहा। यशचोपड़ा ने ‘सिलसिला’बना कर रेखा-अमिताभ-जया के प्रेम त्रिकोण को एक खूबसूरत मोड़
देकर दफ़न कर दिया। इसके बाद रेखा ने १९९० में दिल्ली के व्यवसायी मुकेश अग्रवाल से
शादी करके सारी अफवाहों पर पूर्ण विराम लगा दिया। मगर कोई साल भर बाद मुकेश ने व्यापार
में घाटे के कारण आत्महत्या कर ली। रेखा फिर तन्हा हो गयी।
भारत सरकार ने रेखा को
पदमश्री दी। और २०१२ में राज्यसभा की सदस्य बनाया। रेखा ने लगभग १५० फिल्में की हैं।
लेकिन ये यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है। ‘मदर इंडिया’की राधा और ‘साहब बीवी और गुलाम’की छोटी बहु जैसे कालजई किरदार तो अभी देखने बाकी हैं।
रेखा की उम्र बढी है, लेकिन फिटनेस की
एक जीवंत मिसाल हैं। आज की पीढ़ी पूछती है वो क्या खाती हैं? कहां है वो चक्की? क्या पीती हैं? कौन सा योगासन
करती हैं? वो जिम किस मोहल्ले में है, जिसमें वो जाती
हैं।
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Published in Navodaya Times dated 06 July 2016
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छाबड़ा साहब ने फिर एक शानदार आर्टिकल लिखकर हमारी वाह वाही पाई है। बहुत ही शानदार लिखा है।
ReplyDeleteछाबड़ा साहब ने फिर एक शानदार आर्टिकल लिखकर हमारी वाह वाही पाई है। बहुत ही शानदार लिखा है।
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