Monday, July 18, 2016

शाहजहांपुर पीछे छूट गया


-वीर विनोद छाबड़ा
चाय...चाय...चाय। आंख खुली। ट्रेन खड़ी है। स्टेशन का नाम शाहजहांपुर है। बंदा अतीत में गुम हो गया...
बंदा दिल्ली से लौट रहे हैं। बलां की गर्मी है और ऊपर से लखनऊ मेल में तिल रखने की जगह नहीं है। रिजर्वेशन है नहीं और टीटी महोदय हाथ खड़े कर दिए। ब्लैक भी फुल्ल है। जनरल में किसी तरह घुस गए। फिर बंदे ने कुछ नहीं किया। भीड़ ही उसे ठेलती रही। हड्डियों चूरमा बन गईं। जैसे-तैसे बाथरूम के पास पैर टिकाने जगह मिली। मुरादाबाद आते-आते भीड़ थोड़ी छंटी। सांस वापस आई। वहीं फर्श पर बैठने को जगह मिल गई।
खुली खिड़कियों से आती पहियों की गड़गड़ाहट और ट्रेन के वेग से कटती हवा की आवाज़। कोई एक-दूसरे तक को नही सुन पा रहे है। सामने नव-ब्याहता दुल्हा-दुल्हन बैठे हैं। पोषाक से कस्बाई पृष्ठभूमि की घोषणा हो रही है। दुल्हन गज़ भर घूंघट में है। दुल्हन का सिर घूंघट के भीतर तेज-तेज हिल रहा है। ट्रेन की रफ़्तार से मानो मुकाबला कर रही है। वो ऊंचा-ऊंचा कुछ बोल भी रही है। क्या कह रही है? शोर में कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। असहाय दुल्हा हाथों के इशारे से शांति की अपील कर रहा है। परंतु वो दूल्हे को कंधे पर हाथ नहीं रखने दे रही, करेंट मार रही है। उसकी नाराज़गी का कारण शायद इतनी भीड़ में सफ़र करना है या फिर उसकी मर्ज़ी के विरूद्ध ससुराल जाने की विवशता।
बंदा दुल्हा-दुल्हन की रूठा-रुठौअल का ये नज़ारा देख मंद-मंद मुस्कुरा रहा है। बढ़िया टाइम पास है। सिर्फ बंदा ही नहीं दर्जन भर दूसरी आंखें भी उन पर टिकी हैं। और वो दोनों बेचारे जाने-अनजाने टैक्स-फ्री एंटरटेनमेंट की सामग्री बने हैं। तरस आता है।
अचानक बंदे की निगाह सामने लिखी इबारत की ओर गई। लिखा था - सावधान!  ट्रेन में ज्वंलनशील पदार्थ लेकर चलना सख्त मना है। और दुल्हा-दुल्हन ठीक उसी के नीचे बैठे हैं। बंदे को ज़ोर की हंसी आई। कुछ और लोग भी हंसने लगे। दुल्हे को यों तो अहसास था कि वो सबके निशाने पर है। लेकिन सबको इस तरह हंसते देख चौकन्ना हो गया। दुल्हन भी कुछ सनक गयी। उसके सिर का जोर-जोर से हिलना-डुलना बंद हो गया। दुल्हा समझ गया कि ऊपर कुछ लिखा है। उसने खड़े होकर पढ़ा और फिर वो भी जोर-जोर से हंसने लगा। फिर उसने दुल्हन के कान में कुछ कहा। दुल्हन का सिर फिर जोर-जोर से हिलने लगा। दूल्हे ने ईशारे से बताया कि दुल्हन हंस रही है।

तभी ट्रेन रुकी। बरेली है। चाय, चाय, चाय। आवाज़ सुन कर च्यास लग आई। बंदे ने सबको चाय पिलाई, दूल्हा-दुल्हन को भी। लगा हम सब एक परिवार हैं। 
कुछ ही देर में ट्रेन चल दी। ट्रेन के हिचकोले लेती दुल्हन अपने दुल्हा के कंधे पर सिर कर रख कर जाने कब सो गयी। बंदे की भी आंख लग गयी।
चाय, चाय, चाय। बंदे की नींद खुली। सवेरा होने को था। हरदोई है। सहसा निगाह सामने गयी। वो दुल्हा-दुल्हन वहां नहीं थे। जाने किस स्टेशन पर उतर गए? बगल में बैठे मुसाफ़िर ने बंदे के चेहरे पर लिखा प्रश्न पढ़ लिया। बोला - ज्वलनशील पदार्थ पीछे शाहजहांपुर उतर गया।
...ट्रेन चल दी। बंदा वर्तमान में लौटा। पीछे छूट गया शाहजहांपुर। 
---
Published in Prabhat Khabar dated 18 July 2016
---
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
mob 7505663626

No comments:

Post a Comment