Friday, July 15, 2016

जो कल नहीं था आज है।

- वीर विनोद छाबड़ा
कई साल पहले की बात है। हम कॉलेज में थे। एक बार दोस्तों के बीच बहस हो गई। भूत-प्रेत नहीं होते हैं। महज़ वहम है दिमाग का। हम और हमारा एक दोस्त सरदार दलजीत सिंह उर्फ तोती एक ही ख्याल के थे। तोती यूं भी बहुत बहादुर था। उसका तो एक हाथ भी नहीं था, लेकिन पेड़ पर चढ़ जाया करता था। उसका दावा था कि वो कई बार कब्रिस्तान जा चुका है। कोई नहीं मिला उसे।

हमने सोचा कि चल कर आजमाया जाए। हम लोग छुपते-छुपाते एक मुस्लिम कब्रिस्तान पहुंचे। चांदनी रात थी। गर्मी के दिन थे। सायें सायें हल्की हवा भी चल रही थी। सूखे पत्ते पैरों तले दब कर खड़खड़ा रहे थे। डर भी लग रहा था कि अगर कहीं कोई मिल गया तो? हम करीब घंटा भर टहलते रहे। कोई कब्र से बाहर नहीं निकला। हौंसला बढ़ा। अगले दिन फिर पहुंचे। वही पहले दिन जैसा माहौल। कुछ भी नहीं मिला।
कुछ दिन बाद हम क्रिश्चियन के कब्रिस्तान पहुंचे। हैरत की बात कि वहां एक बंदा हमें मिल गया। एक कब्र के ऊपर बैठा था। गोरा-चिट्टा और सूट-बूट के साथ टाई बांधे। हमारे पैरो तले से ज़मीन खिसक गई। थर थर कांपने लगे। लेकिन उसने हमें देख लिया। आवाज़ दी। जेंटलमैन कौन हो तुम लोग?
तब तक हम पसीना पसीना हो चुके थे। हमारे मुंह से तो आवाज़ ही नहीं निकली। तोती ने कांपते और लड़खड़ाते स्वर में पूछा - आप कौन हैं?
उसने कहा - तुम लोगों जैसा ही हूं। अभी चार दिन पहले ही आया हूं। अभी अंदर रहने  हैबिट नहीं पड़ी है। बहुत गर्मी लग रही थी। हवा खाने बाहर आया हूं।
यह सुनते ही हम दोनों के मुंह से चीख निकल गई - भागो! हम लोग सरपट भागे। बीच में एक बार पलट कर देखा भी। वो आदमी गायब हो चुका था।

हम दोनों कई दिन तक सकते में रहे। दोस्तों ने खूब मज़ाक उड़ाया। कहते थे, भूत नहीं होते हैं।

कुछ दिन बाद पोल खुली कि ये दोस्तों की शरारत थी। हमारा कॉन्फिडेंस वापस आ गया। भूत-प्रेत कुछ भी नहीं है। भूत-प्रेत से ग्रस्त कहलाए कई घरों में भी गए। कई साल गुज़र चुके हैं। तोती को रब ने बुला लिया है। और ज़माना भी बदल चुका है। जो चीज़ें कल नहीं होती थीं, आज हैं। किसने मोबाईल की कल्पना की थी। हम आज भी किसी कब्रिस्तान के सामने से रात के वक्त गुज़रते हैं तो सर्दी में भी पसीने निकल आते हैं। 
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