Tuesday, June 21, 2016

कर भला, हो भला

- वीर विनोद छाबड़ा
कृष्ण एक दिन अर्जुन को समझा रहे थे - जो आदमी किसी दुखी की मदद करता है वो वास्तव में सीधे भगवान की मदद कर रहा होता है।
अर्जुन ने पूछा - वो कैसे प्रभु?
तभी अर्जुन से एक भिखारी टकराया। वो बहुत ग़रीब था और कई दिन से भूखा भी। अर्जुन को उस पर तरस आ गया। अर्जुन ने उसे सोने की सौ मुद्राएं दे दीं।
भिखारी बहुत खुश हुआ। लेकिन उसकी ख़ुशी क्षणिक रही। एक लुटेरे ने उससे वो मुद्राएं छीन लीं।
भिखारी ने सोचा कि उसके भाग्य में भीख मांगने ही लिखा है। वो फिर से भीख मांगने लगा।
अगले दिन अर्जुन का फिर उधर से गुज़रना हुआ। देखा उस भिखारी की स्थिति जस की तस है। वो अभी भी भीख मांग रहा है।
अर्जुन ने इसका कारण पूछा तो उस भिखारी ने सब सच बता दिया।
अर्जुन को तरस आ गया। उन्होंने उसको एक मणिक दिया - यह बहुत कीमती है। तुम्हारे सब दुःख दूर हो जाएंगे।
भिखारी ने माणिक को एक घड़े में छुपा दिया।
इधर थोड़ी देर बाद भिखारी की पत्नी को ख्याल आया कि पानी ख़त्म हो गया है। चल कर नदी से पानी ले आऊं।
भिखारी की पत्नी ने वही घड़ा उठाया जिसमें माणिक छुपा कर रखा गया था। उसने जैसे ही नदी में घड़ा डुबोया, माणिक बह गया।
भिखारी, भिखारी ही रह गया।
अर्जुन दो दिन बाद उधर से फिर गुज़रे। देखा वो भिखारी अभी भिक्षा स्थल पर ही है। उन्हें बहुत निराशा हुई। इस आदमी के भाग्य में सुख है ही नहीं।
लेकिन इस बार कृष्ण को तरस आया। उन्होंने ने उस भिखारी को दो पैसे दिए।
भिखारी खुश हुआ। उन पैसों से खाने-पीने की वस्तुओं का बंदोबस्त करने चल दिया।
रास्ते में भिखारी ने देखा कि एक मछुआरे के जाल में एक मछली तड़प रही है। भिखारी को यह दुखदायी दृश्य बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने उन दो पैसों से मछली को छुड़ा लिया और वापस नदी में डालने चल दिया।
भिखारी मछली को नदी में डालने ही जा रहा था कि मछली ने कुछ उगला। वो टन्न से ज़मीन पर गिरा।

भिखारी ने देखा तो चकित रह गया। यह वही मणिक था। वो ख़ुशी से चीख उठा - मिला, मिला, मिला
संयोग से भिखारी से सोने की मुद्राएं छीनने वाला लुटेरा भी उसी वक्त उधर से गुज़रा। भिखारी को यों चिल्लाता देख उसने समझा कि भिखारी ने उसे पहचान लिया है। अब वो निश्चित ही पकड़ा जाएगा। उसने सोने की वो मुद्रायें वहीं फेंकी और भाग खड़ा हुआ।
इस प्रकार भिखारी को मुद्रायें और मणिक दोनों ही मिल गये।
अर्जुन ने कृष्ण से कहा - वाह प्रभु! आपके दो पैसों ने तो कमाल ही कर दिया।
कृष्ण बोले - नहीं पार्थ, यह कमाल मेरा नहीं है। भिखारी से मछली का दुःख देखा नहीं गया। उसने उन दो पैसों से उसे दुःख से छुटकारा दिलाया। परोपकार में धन लगाया। अपनी भूख की परवाह नहीं की। ईश्वर दुखियारों की मदद करने वालों की मदद करता है।
नोट - बरसों पहले बड़े-बुज़ुर्गों के श्रीमुख से मैंने यह कथा सुनी थी। अब ऐसी उद्देश्यपरक कथायें नहीं सुनाई जाती। इस कथा का उद्देश्य दीन-दुखियों के मदद करना है। आइये,  हम इसे आगे बढ़ाएं।
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