Friday, May 13, 2016

मुश्किल में इंसान की मदद।

वीर विनोद छाबड़ा
अपना शहर लखनऊ। गंगा-जमुनी तहज़ीब और इल्म-ओ-अदब का मरकज़ है। यहां लोग बहुत फुर्सत में होते हैं। रास्ता पूछिए तो घर तक छोड़ कर आते हैं। कलम की ज़रूरत पड़े तो किसी भी पान-बीड़ी सिगरेट की दुकान पर टंगी दिख जाएगी। सब ब्रांडेड कलम, तरह तरह की। और प्यास लगे तो भी दिक्कत नहीं है। नामी कंपनियों की ब्रांडेड वाटर बॉटल भी पान-बीड़ी की दुकानों में उपलब्ध हैं। 

खाने के सामान की तो इफ़रात है। कदम कदम पर ढाबे हैं। च्यास बुझाने का भी इंतज़ाम है। अवैध कब्ज़ा है तो क्या हुआ। सस्ते-मद्दे में दे रहा है। ई कोई वैट है और न कोई सरचार्ज। पंद्रह-बीस में पेट भर जाएगा। रेस्तरां में चले जायेतो ढाई-तीन सौ का बिल बन जाएगा। टेस्ट भी ढाबे जैसा चटपटा नहीं मिलेगा। लेकिन इस शहर की त्रासदी यह है कि अगर राह चलते मूत्र विसर्जन की ज़रूरत महसूस हो तो कोई माकूल जगह नहीं मिलेगी। शुगर और बढ़ी हुई प्रोस्ट्रेट ग्रंथी वालों सहित कई लोगों को तो नाक़ाबिले बर्दाश्त प्रेशर बनता है। रामभरोसे ही रहना पड़ता है। सुलभ शौचालय हैं तो लेकिन बहुत दूर-दूर।
ऐसे में करे तो क्या? कब तक रोके? किसी के घर का द्वार तो खटखटाने पर लेने के देने की पूर्ण संभावना है। कुछ सुनने को भी मिल सकता है। अमां घर से करके क्यों नहीं चले थे? थैली या खाली बोतल लेकर चला करो।
आदमी को अंततः बेशर्म बनना पड़ता है। मज़बूत दिल वाले किसी दीवार से लग लेते हैं। भीड़ भरे बाज़ार में तो कई गलियां हैं इस काम के लिए। आसपास का माहौल बदबू से हर समय गंधाता रहता है। वहां रहने वाले परेशान रहते हैं। बदबू से एलर्जी रखने वालों के लिए तो बहुत ही मुश्किल पैदा हो जाती है। दीवारों की नींव भी कमजोर हो जाती हैं।
मगर दीवार का सहारा या बदबूदार गलियां भी सबके बस की बात नहीं। इस मामले में हमने बड़े बड़े दिल वालों को भी कमजोर पाया है। कहते हैं - यार दिन दहाड़े बहुत शर्म महसूस होती है। कुछ लोगों को तो बड़ी जोर से लगी होने के बावजूद उतरती ही नहीं।

लेकिन दिल वाले तो दिलवाले ही हैं। चाहे दीवार पर यह लिखा हो - देखो, देखो गधा मूत  रहा है।
हमें एक साहब कारगर उपाय बता रहे थे - भाई साहब, मैंने तो तमाम सरकारी दफ्तरों का जुगराफिया छान रखा है। कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, कोई रोक-टोक नहीं है। कई रेस्त्रां और शॉपिंग माल भी हैं अपनी लिस्ट में। इसलिए मुझे तो कोई दिक्कत नहीं।
इस शहर में अगर कोई बंदा बहदवास सा इधर से उधर टूलता मिले तो समझ जाइये कि उसकी वज़ह एक ही होती है। कोशिश करें कि उसकी मदद हो जाये। कभी आप भी इसका शिकार हो सकते हैं।
मूत्र को अधिक देर तक रोकना शरीर के लिए हानिकारक है।
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13-05-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016  

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