Monday, March 7, 2016

भरपेट खा ही लिए होते!

-वीर विनोद छाबड़ा
सुबह छह का वक़्त। बंदे को पड़ोसी पड़ोसी खैराती लाल के घर से बुलावा आया। खैराती पेट पकड़ कर उकड़ू बैठे थे। ऊपर से उनकी मेमसाब पीठ पर सवार। पार्टी में गए रहे। बहुत समझाये, माने नहीं। बारिश हो गई। मस्ती चढ़ी रही। डम-डम डिगा-डिगा करने लगे। नतीजा देख लो। नाक बंद। गला बंद। कान भी बंद। दिमाग ठप्प। सांस में दिक्कत। पेट गड़बड़। बुखार भी है। कोई कल-पुर्ज़ा ठीक चलता नहीं दिखता। और खाओ फ्री की....

बंदे ने पाया कि मामला गंभीर है। खैराती की मेमसाब की बड़बड़ पर क्रमशः लगाई और जैसे-तैसे खैराती को टांग कर नज़दीकी निजी अस्पातल पहुंचाया।
डॉक्टर ने पहले हज़ार रूपये जमा कराये। फिर विधिवत सर से पांव तक खैराती को घूरा। हर अंग की जांच-पड़ताल की। क्षितिज में कुछ टटोला। गंभीर हुए। खैराती की पीठ पर हाथ रखा। हूं...तो कल पार्टी में क्या उड़ाया?
उधर खैराती के चेहरे पर बेचारगी टपक पड़ी। सब उगल दिया। कसम से कुछ भी नहीं। खाना तो एकदम बकवास रहा। बस एक ठो टिक्की खाकर छुट्टी कर दी। फिर गोलगप्पे दिख गए। दो-चार से ज्यादा नहीं खाये। चाट-पकौड़ी तो सिर्फ टेस्ट भर का लिया। कटलेट में तो चार-पांच पीस में ही डकार आ गया। डोसा तो आधा छोड़ दिया। सांभर तो बिलकुल पानी ही पानी। हां, चाऊमिन अच्छी थी। लेकिन बची ही नहीं। चम्मच भर ही हिस्से में आई।
डॉक्टर ने याद दिलाया - मट्टन, चिकेन और बिरयानी?
खैराती की आंखें चमक उठीं - कहां खा पाये? बताया न कि भूख ही मर चुकी थी। बस दो पीस मट्टन और चिकेन लेग पीस। एक कबाब पराठा। चम्मच भर बिरयानी के। वो भी किसी ने ज़बरदस्ती डाल दी।
डॉक्टर साब ने एक गहरी सांस ली - कुछ और बाकी रहा?
खैराती को जैसे कुछ याद आया। हां, वो थोड़ा गाजर का हलवा। चमचम। एक गुलाब जामुन। कुल्फ़ी। आइसक्रीम। और चलते चलते केसरिया दूध और एक ठो इमरती रबड़ी के साथ। बस इतना ही। मतलब ये कुल मिला कर खाया कुछ नहीं। बस स्वाद ही चखते रहे। सरसों का साग और मक्के की रोटी, छोले-बठूरे, मंचूरियन, दही-बड़ा वगैरह आइटम तो छूट ही गए।
डॉक्टर ने खैराती की आंखों में झांका - और ड्रिंक वगैरह?
खैराती ने मुंह बिचका लिया। कंजूसों की पार्टी थी। हिस्से में छोटे-छोटे दो पेग ही आये। हमने चालाकी से तीसरा मार लिए। मगर ठंडक इतनी ज्यादा थी कि पता ही नहीं चला। फिर वापसी पर बरसात। ऐसे में दो छोटे-छोटे और तो बनते ही थे। बढ़िया नींद आई। बस सवेरे ही सब उल्टा-पुल्टी हुई।
डॉक्टर साब मुस्कुराये - पार्टी में तो तूने कुछ नहीं खाया। अब दवा खा पेट भर के। 
डॉक्टर ने दो इंजेक्शन ठुकवाए। दर्जन भर गोलियां, सिरप, इनहेलर और खून के टेस्ट लिखे। खाने में मूंग की पतली दाल और गर्म-गर्म लौकी। और साथ में ताकीद भी दी कि दवा नहीं खायी तो अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा।
खैराती लाल बड़बड़ा उठे। क्या ज़माना आ गया है। नहीं कुछ खाया तब भी ये सज़ा।
घर पहुंचे तो मेमसाब चढ़ बैठीं। तबीयत ही ख़राब करनी थी तो कम से कम भरपेट खा तो लेते। जित्ते का लिफाफा दिए और खाये नहीं, उत्ते से ज्यादे तो डॉक्टर को दे आये।
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Published in Prabhat Khabar 07 March 2016
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