Thursday, March 24, 2016

लो छब्बीसवीं चढ़ गयी।

- वीर विनोद छाबड़ा
यार, इस होली पर ज्यादा नहीं पीनी है। पक्का कर लो बस एक या दो पैग। ज्यादा से ज्यादा तीन पैग।

मित्रों हमें याद है वो होली। हम सुबह घर से यही इरादा कर करके निकले थे। दोपहर चढ़े घर लौटे थे तो याद नहीं था कितनी पी है और किस किस के घर पी है। लेकिन अच्छी बात यह थी कि अपना घर याद था और अपने पैरों पर चढ़ कर घर लौटे थे।
सीधे गुसलखाने में घुसे। पायजामा उतार रहे थे। संभल न पाये। गिर पड़े। जोर से आवाज़ हुई। यहाँ एक लतीफा हुआ।
पत्नी ने पूछा - क्या हुआ?
हमने कहा - पायजामा गिरा है।
वो बोली - इतनी आवाज़ क्यों हुई।
हमने बताया - पायजामे में हम भी थे।
शुक्र हुआ कोई चोट-शोट नहीं लगी। भोजन भी नहीं कर पाये। बस सो गए। सोते ही रहे। रात देर में उठे। खुद पर बहुत क्षोभ हुआ, ग्लानि हुई। यह भी कोई बात हुई कि याद ही रहा कि नहीं किस-किस के घर पी और कितनी पी? बस और नहीं बस और नहीं। तय कर लिया। अब से नहीं पीयेंगे। चाहे होली हो या दीवाली। ख़ुशी हो या ग़म। नहीं पीयेंगे तो बस नहीं पीयेंगे।
और हम जीत गए। वो दिन है और आज का। पच्चीस होलियां गुज़र गयीं। आज छब्बीसवीं लग गयी।

क़सम से, हमने नाशुक्री को छुआ तक नहीं। दोस्तों ने छोड़ने पर सिल्वर जुबली मनाने पर बहुत जोर दिया। लेकिन हम न माने। न जाने कितने दोस्तों को लील गयी यह।
इस बीच हमने कई दोस्तों से वादा किया था कि तुम्हारे बेटे की शादी पर दो घूंट ज़रूर मारेंगे। लेकिन हम हर बार ऐन मौके पर मुकरते रहे। दोस्त कहते रहे वादा तेरा वादा, झूठा तेरा वादा।
लेकिन जबसे हम फेस बुक पर आये हैं इसे छोड़ने का जश्न मनाते आ रहे हैं। यह तीसरी बार है। अगर ज़िंदगी रही तो चौथी वर्षगांठ मनायेंगे और पांचवीं भी। और पच्चीसवीं भी। उस दिन हम दो घूंट ज़रूर होंठों से लगाएंगे।
इल्तज़ा है कि बस ऊपर वाला इतनी ज़िंदगी तो दे।
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24-03-2016 mob 7505663626
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Lucknow - 226016

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