Friday, March 18, 2016

दोष में भी अच्छाई।

-वीर विनोद छाबड़ा
आज हर शख्स दूसरों में दोष ढूंढ़ता फिर रहा है। और इसका कहीं अंत ही नहीं दिख रहा। मुझे कक्षा पांच में पढ़ी एक कथा याद आ रही है।

दो बाल्टियां थीं। सगी बहनें। वो ऐसे कि दोनों लोहे की एक ही मजबूत चद्दर से बनीं थीं। इनका इस्तेमाल एक गरीब मज़दूर किया करता था। उसके गांव में स्वच्छ पानी नहीं था। वो रोज़ दूर सड़क पार से पानी भर कर लाता। उसे ऐसा दिन में चार-पांच बार करना पड़ता।
एक दिन क्या हुआ कि एक बाल्टी में छोटा सा छेद हो गया। घर तक पहुंचते-पहुंचते आधा बाल्टी पानी बच रहता। इस पर दूसरी वाली बाल्टी ने ताना मारा  - तू तो छेद वाली बाल्टी है। तू आधा पानी तो अपने छेद से गिरा देती। मैं अच्छी वाली बाल्टी हूं। इस तरह मैं मालिक को बहुत सुख देती हूं।
ऐसा क्रम कई महीनो चला। छेद वाली अच्छी वाली के ताने सुनने के कारण कुढ़ते-कुढ़ते काली हो गयी।
एक दिन किसान ने दोनों के बात सुन ली। उसने दोनों की अदला बदली कर दी। अर्थात अच्छी वाली को दायीं तरफ और छेद वाली को बायीं ओर कर दिया।
दायीं तरफ वाली दायें तरफ का दृश्य देख कर दंग रह गयी। हरियाली और रंग-बिरंगे फूलों के पौधों की लंबी कतार।
और उधर बायीं तरफ सूखा! यह कैसे संभव है?

मज़दूर ने बताया छेद से पानी गिरने के कारण यूं ही बह जाता था। इसका सदुपयोग करने के लिए मैंने क्यारी बना दी और मंदिर में चढ़ाये जाने वाले फूलों के पौधे रोप दिए। इन फूलों को बेच कर मुझे अच्छी आमदनी हो जाती है। 
तब अच्छी वाली बाल्टी का अहंकार टूट गया। उसने छेद वाली बाल्टी से कहा - मुझे माफ़ कर दो बहन। दोष तुझमें नहीं मुझमें है।
छेद वाली बाल्टी ने कहा - नहीं नहीं बहन। तू भी तो अच्छी है। तेरे ही कारण तो परिवार के सभी प्राणियों को प्यास बुझाने के लिए भरपूर स्वच्छ पानी मिलता है।

अच्छी वाली बोली - बहन किसी ने ठीक ही कहा है, दोष में भी अच्छाई होती है। 
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