Friday, March 11, 2016

ज़ख्म का दर्द अभी गया नहीं।

- वीर विनोद छाबड़ा
आज शाम मुंशी पुलिया पर एक पुराने और सीनियर मित्र मिले। पुरानी यादों में खो गए।


मुझे याद आया बहुत खूबसूरत और हंसमुख पर्सनाल्टी हुआ करती थी उनकी। उनके बेटे ने कोई कुकर्म किया था। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हुई। बेटा फरार हो गया। बदले में पुलिस उन्हें पकड़ कर ली गयी। और ज़बरदस्त ठुकाई कर दी।
उन्होंने पुलिस से कहा - जिसने ऐसी ज़लील हरकत की है उसे दबोचो। मुझे क्यों मार रहे हो? मेरा क्या कसूर है?
इंस्पेक्टर बोला - तूने ऐसा लड़का पैदा ही क्यों किया?
उन्होंने कहा - इसमें मेरी क्या गलती भाई? ये तो ईश्वर देन है।
मगर पुलिस ने उनकी एक न सुनी और थाने में रात भर बैठाये रखा। तरह तरह की यातनायें देते रहे। अगले दिन जैसे-तैसे छूटे। कुछ दिन बाद उनका बेटा खुद ही थाने पहुंच गया। यह उनका इकलौता बेटा था। मामला रफा-दफा हुआ। कुछ लोग कहते हैं मामला फ़र्ज़ी था। सच क्या था यह तो वही लोग जानें।
बहरहाल, इससे नुकसान यह हुआ कि हमारे सीनियर मित्र की बहुत बदनामी हुई। वो सरकारी नौकर थे और अच्छी पोस्ट पर तैनात भी थे। जीवन बीमा और गाड़ियों की इंश्योरेंस का काम भी पार्ट टाईम करते थे। उनके ऑफिस के लोग, मित्र और अड़ोसी-पड़ोसी आदि इसका लाभ उठाया करते थे। लेकिन बदनामी के दृष्टिगत उन्होंने यह सेवा बंद कर दी और अपनी बाकी की तीन-चार साल की नौकरी में ख़ामोशी अख्तियार कर ली।
रिटायर होने के बाद वो लगभग गायब ही हो गए। शहर के कोने में मकान बनवा कर रहने लगे। एक गुमनाम सी ज़िंदगी अपना ली। अब यह बात अलबत्ता दूसरी है कि शहर उनके मकान से आगे निकल गया है।
बेटा मुद्दत हुई उनको छोड़ कर चला गया है। कोई जान-पहचान का बंदा मिलता है तो नज़रें फेर लेते हैं।

उस दिन हमें मिले तो बहुत मुश्किल से उन्हें पहचाना। चेहरे पर झुर्रियां बहुत ज्यादा आ गयीं हैं। चेहरा मुर्झा कर कुछ छोटा भी हो गया है।
अतीत के बारे में न हमने कुछ पूछा और न वो कुछ बोले। वो ज्यादा बात करना नहीं चाहते थे। बस इतना ही बोले - जी रहे हैं किसी तरह।
लेकिन उनके झुर्रीदार और मुरझाये चेहरे पर छायी उदासी बता रही थी कि पुराने ज़ख़्म का दर्द अभी गया नहीं। रह रह कर उससे टीस उठती है। हमें याद आया कि एक बार उन्होंने अपना दर्द शेयर करते हुए कहा था - बे-औलाद रहते तो ज्यादा बेहतर होता।
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12-03-2016 mob 7505663626
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Lucknow - 226016

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