Wednesday, February 24, 2016

जानी तुम फिल्मों में क्यों नहीं जाती?

-वीर विनोद छाबड़ा 
समय १९७८ का सूर्यास्त और १९७९ के सूर्योदय के मध्य का काल।
एक पांच सितारा होटल का दूर-दूर तक फैला लॉन। खासी भीड़ है वहां। ज़बरदस्त लेट नाईट फ़िल्मी पार्टी है। तमाम नामी फ़िल्मी सितारे और उससे जुडी तमाम हस्तियां मौजूद हैं।
राजकपूर साहब की 'सत्यम शिवम सुंदरम' के कारण ज़ीनत अमान खासी चर्चा में है। उस दिन तो खास-ओ-आम से घिरी हुई है। ज़ीनत बेबी को पता चलता है  कि पार्टी में उनके हरदिल अज़ीज़ 'जानी' राजकुमार भी मौजूद हैं। उसका मन उनसे मिलने को मचल उठता है। हालांकि भीड़ बहुत है। लेकिन जहां चाह, वहां राह। ज़ीनत ने राजकुमार को तलाश कर ही लिया।
ज़ीनत ने बहुत देर तक राजकुमार की शख्सियत, उनकी स्टाइल और एक्टिंग की तारीफ़ की।
राजकुमार बेहद खुश हैं। क्यों न हों? सामने एक हसीना है जो उनकी तारीफ़ करते हुए थक नहीं रही है।
रात काफी ढल चुकी है। राजकुमार साहब ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मफलर गले में डाला और बोले - जानी हमारा तो वक़्त हो चला है। अब हम चलते हैं।
ज़ीनत का मन नहीं है राजकुमार को छोड़ने का - आपसे अभी और भी ढेर बातें करनी हैं। दोबारा जल्दी मिलेंगे।
राजकुमार बेहद खुश हुए- ज़रूर। ज़रूर। बेबी, हम ज़रूर मिलेंगे।

टाटा, बॉय बॉय हुआ।
राजकुमार चलने को हुए कि अचानक पलटे। मानो कुछ याद आया हो। और ज़ीनत को बड़े ध्यान से ऊपर से नीचे तक देखा - बेबी, तुम हो तो बेहद खूबसूरत। चेहरा-मोहरा और कद-काठी  भी ठीक है। आवाज़ और एक्सप्रेशन भी शानदार है। और नाम हां.क्या बताया था?.…जो भी हो। जानी, तुम फिल्मों में काम क्यों नहीं करती?
ज़ीनत अमान को लगा किसी ने कानों में गर्म-गर्म शीशा डाल दिया हो। तमाम छोटे-बड़े फ़िल्मी रिसालों और अख़बारों के कवर की मलिका को राजकुमार नहीं पहचानते? उस ज़ीनत को नहीं पहचानते जिसकी विदेशी फ़िल्मी मीडिया में भी खासी चर्चा है? तमाम छोटे-बड़े हीरो उसके साथ टीम बनाने की शिद्दत से चाह रखते हैं। हैरत है! नहीं, नामुमकिन। यह शरारत है जानी की। 
ज़ीनत बेबी के गुस्से से नथुने फड़फड़ाने लगे। कान गर्म हो गए। मुंह से झाग निकलने लगी।

बहरहाल, ज़ीनत बेबी की बाकी पार्टी तो बरबाद हो ही गयी। सबसे पहले तो उन्होंने दिल में सजी राजकुमार की तस्वीर के पुरज़े-पुरज़े किये। घर पहुंच कर बचा हुआ  गुस्सा फर्नीचर और क्रॉकरी पर गुस्सा उतारा। फिर ज़ार ज़ार रोयी। कान पकड़ कर क़सम खायी कि राजकुमार नाम के शख्स को आइंदा ख़्वाब में भी देखना गवारा नहीं करेगी।
अगले दिन चश्मदीदों ने ये चटखारे ही नहीं लिए बल्कि खूब बढ़ा-चढ़ा कर दूसरों को भी यह वाक्या सुनाया और फैलाया। 
मगर राजकुमार को करीब से जानने वालों को कतई हैरानी नहीं हुई। किसी को अर्श से फर्श पर उतारने का जानी का ये अपना खास अंदाज़ है।
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नवोदय टाइम्स दिनांक ०६ फरवरी २०१६ में प्रकाशित। 
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