Thursday, January 28, 2016

मैं न भूलूंगा!

- वीर विनोद छाबड़ा
आज ही का तो दिन था जब पंद्रह साल पहले मैंने मां को खोया था। लगता है, जैसे कल की ही बात है।
मां। धरती पर सबसे अधिक प्रयोग किये जाने वाला शब्द।

होश संभालने पर सबसे पहले देखा चेहरा मां का ही याद आता है।
स्कूल छोड़ने भी मां ही गयी। और लेने भी। याद है काली मिर्च वाले पराठे के साथ आम या नीबू के आचार की एक फांक रख कर रुमाल में बांधा और फिर भीतर से कलई की हुई पीतल की डिब्बिया में बंद कर के बस्ते में ठूंस दिया।
पिताजी नौकरी के सिलसिले में अक्सर बाहर रहे। घर-बाहर और हम भाई बहनों को मां ने ही संभाला। तबियत ख़राब होने पर डॉक्टर से दवा भी मां लाती। रात-रात भर सिरहाने बैठ कर पंखा भी मां ही झलती।
याद आता है आलमबाग की चंदर नगर मार्किट के दुमंजिले पर घर। वेजिटेबल ग्राउंड की रामलीला रात दो-ढाई बजे तक चलती थी। लौट कर घर आता था तो सीढ़ियों में घुप्प अंधकार। कोई लुटेरा या भूत, कुछ भी हो सकता है। नीचे से मैं आवाज़ देता - माताजी।
दूसरी बार आवाज़ देने की कभी ज़रूरत नहीं पड़ी। अरे, मां तो जग ही रही है। अंधेरे की अभ्यस्त मां, बच्चों के लिए न उसे चोर-लुटेरे से डर लगा और न भूत-प्रेत से। 'मैं आई' कहते हुए दौड़ी चली आई।
कॉपी-किताब चाहिए या कैंडी आइसक्रीम चूसनी है या फिर सिनेमा देखना है। मां ही काम आई। राम जाने कहां-कहां और कैसे-कैसे बचत करके पैसे छुपा कर रखा करती। सब हम भाई-बहनों के लिए।
गलती करने पर पिताजी के कुफ़्र से हमेशा मां ने ही बचाया।
स्वतंत्र भारत में लेख छपा। सात रूपए मिले थे। पहली कमाई। मां के चरणों में ही रखी थी। मां ने सिर्फ़ चवन्नी ली थी।
शादी के बाद जब मैंने मां के चरणों में अपना वेतन रखा था मां ने भारी मन से कहा था - अब मुझे इसकी ज़रूरत नहीं। इसे और तुझे संभालने वाली आ गयी है। पांच साल पहले रिटायर हुआ था तो मां की बहुत याद आई थी। काश ज़िंदा होती तो आख़िरी कमाई भी उसी के क़दमों पर रखता।
माँ की यादों की बड़ी लंबी फ़ेहरिस्त है। बताने बैठूं तो कई महाग्रंथ तैयार हो जायें।
मां अब नहीं है। ज़िंदगी के अंतिम छह साल तक खूब सेवा कराई मां ने। फालिज़ गिरने से पहले मां का वज़न सौ किलो से ऊपर था। धीरे-धीरे इतनी दुबली हो गयी कि मैं गोद में उठा लेता था। बहुत कष्ट सहे उसने। जिसने भी देखा उसने मुझे यही सलाह दी - भगवान से प्रार्थना कर कि मां को मुक्ति दे।

लेकिन मैं जब भी भगवान की मूर्ति के सामने खड़ा हुआ तो मुंह से यही निकला - भगवान अगर आप हो तो मुझे इतनी ताकत दे कि मां की खूब सेवा करूं। टूटने न पाऊं। मां चंगी हो जाए। लेकिन उसने मां को ही उठा लिया।
सच कह रहा हूं, पूरे दिल से - मेरे जीवन में मां की जगह कोई नहीं ले पाया।
आज भी जब कभी तकलीफ में होता हूं तो पिता से पहले मां को ही याद करता हूं। मां शब्द ही शक्ति का स्त्रोत है।
दुनिया भर का ऐशो-आराम और धन-दौलत एक तरफ और परली तरफ सिर्फ मां। इनमें से किसी एक को चुनना हो तो मैं मां को चुनूंगा, सिर्फ़ मां को।
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२८-०१-२०१६ mob 7505663626
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