Friday, January 22, 2016

चोर चोरी से जाए, हेरा-फेरी से नहीं।

- वीर विनोद छाबड़ा
आज सुबह हमने अख़बार में हेडलाईन पढ़ी कि बारात में नाचे और ट्रैफ़िक जाम हुआ तो सौ रुपया प्रति बाराती फ़ाईन देना होगा।
हमें याद आ गयी अपनी किशोरावस्था। बारात में बाजा बज रहा हो तो बाराती क्या, सड़क चलते हुओं के भी पैर थिरकने लगते थे। बस मौका चाहिए होता था। हमें याद है कि दोस्तों संग कई बार डांस किया, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन कर।

मोहल्ले में पड़ोसी हमें सख़्त नापसंद करते थे, लेकिन दो कारणों के लिए हम उनकी आंख के तारे थे। बुलावे के साथ ख़ासतौर पर बुलावा आता था- भई, बिल्लू तुम्हें तो ज़रूर आना है। लड़की की शादी में बर्तन मांजने के लिए और लड़के की शादी में डांस करने के लिए। दोनों ही काम मुफ़्त में। और हमने बरसों ख़ुशी ख़ुशी अपनी ड्यूटी अंजाम दी। पड़ोसी भी खुश। और तो और दूसरे मोहल्लों में रहने वाले उनके रिश्तेदार और पड़ोसी भी हमारे मुरीद रहे।
हम इंटर में थे तब जब हमें एक पड़ोसी के साले की शादी में नाचने के लिए गाज़ियाबाद से खासतौर पर बुलावा आया। और हम गए भी। पड़ोसी चूंकि रेलवे में थे इसलिए आना-जाना फ्री हो गया। वापसी पर एक शर्ट और ग्यारह रूपए मिले थे। हमें याद है, जम के नाचे थे। भयंकर सर्दी में भी हम पसीना-पसीना हो गए थे। कोट-स्वेटर सब उतारना पड़ा था। सैकड़ों रूपए हम पर न्यौछावर होकर बैंड-बाजे वालों की जेब में चले गये। हम जान-बूझ कर हाथ खोल कर नाच रहे थे ताकि एक-आध रुपया हम भी लपक लें।
बैंड-बाजे वाला तो हमें किनारे ले जाकर कान में कहा भी - हमारे लिए डांस करो, चार सौ रूपए महीना और बारात के सीज़न में खाना-पीना मुफ्त। सूट-बूट और जूता भी फ्री।
१९६८ में यह बढ़िया रक़म थी। लेकिन हम बिदक गए थे - अमां हटो भी। नचनिया बनना है क्या?
ऐसे ही हमारे एक दोस्त भी हुआ करते थे। हम खूब डांस किये साथ-साथ। लखनऊ की कोई भी कच्ची-पक्की सड़क नहीं छोड़ी, जहां पर हमने भांगड़ा, नागिन और ट्विस्ट न किया हो। तक़ीला पर पागल हो जाया करते थे। रॉक एंड रोल पर भी हमारी अच्छी पकड़ हुआ करती थी।
लेकिन एक दिन सब एक झटके में ख़तम हो गया। किसी की नज़र लग गयी। हुआ यह कि हमारे दोस्त की शादी हो गयी। वो घोड़ी से उतर कर खूब नाचा। बड़े-बुज़ुर्ग बहुत नाराज़ हुए। ख़ानदान की नाक बीच सड़क पर कट गयी। लेकिन मित्र ने किसी की परवाह नहीं की। किसी बुज़ुर्ग ने उसे श्राप भी दे डाला। तेरी टांग टूट जाए। पाख़ाना करने को भी किसी का सहारा ले। हालांकि ऐसा कुछ न हुआ। लेकिन जो हुआ वो बहुत ही बुरा हुआ।

सुहागरात पर मित्र की पत्नी ने उसे साफ़ साफ़ कह दिया कि उसे कतई पसंद नहीं कि उसका पति सड़क पर भालू-बंदर की तरह नाचे। उसे नचनिया की पत्नी कहलाना पसंद नहीं। मित्र ने कान पकड़ लिए।
हमारी हुस्नलाल-भगतराम की जोड़ी टूट गयी। हम डर भी गए। नचनिया का ठप्पा लग गया तो हो सकता है कि हमारी शादी ही न हो।
बरसों गुज़र चुके हैं। मिलते रहते हैं मित्र अक़्सर। अभी कुछ दिन पहले मिले थे एक पार्टी में। डिस्को पर चल रहा था - मुन्नी बदनाम हुई...
सिक्सटी फ़ाईव प्लस के बावजूद मित्र के पांव थिरक रहे थे। हम दोनों ही बढ़ चले डिस्को को ओर, कुछ चुस्की ली जाए। तभी मित्र की पत्नी सामने आ गयी - चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से नहीं।
मित्र ने तुरंत ही रास्ता बदल लिया।
यह तो शुक्र था कि उस दिन हमारी मेमसाब साथ में नहीं थीं, वरना हमें भी सुनना पड़ता - बुढ़ापा आ गया है। कुछ तो शर्म करो।
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