Wednesday, January 13, 2016

आंखें ही आंखें!

-वीर विनोद छाबड़ा
एक भक्त की अथक प्रार्थना से ब्रह्मांड में उथल पुथल हुई। देव मंत्रीमंडल में हाहाकार मच गया। इंद्र से गुहार लगाई गई - यह व्यक्ति निकृष्ट है। इसे कोई वरदान मिला तो अनर्थ हो जाएगा। इसे किसी तरह टालिए।

इंद्र बोले - घबराने की ज़रूरत नहीं। मैंने भविष्य देख लिया है। कुछ नहीं होगा।
प्रभु प्रगट हुए और उस भक्त को तीन नारियल दिए - तुम्हारी मुंहमांगी तीन इच्छाएं पूर्ण होंगी। जो भी मांगना हो पहले एक नारियल नीचे गिराना और फिर वर मांगना। और ध्यान रहे कि सोच-समझ कर मांगना। दोबारा मैं प्रगट नहीं होऊंगा। चाहे तू कितनी ही भक्ति क्यों न कर ले। यह कह कर प्रभु अंतर्ध्यान हो गए।
भक्त ख़ुशी से पागल हो गया। उछलता-कूदता घर पहुंचा।
घर में प्रवेश करते ही बेटे से टक्कर हो गई। एक नारीयल नीचे गिर गया। भक्त गुस्से से चिल्लाया - अबे, आंखें नहीं हैं क्या।
भक्त के इतना कहते ही बेटे की आंखें गायब हो गयीं।
भक्त तो मानो आसमान से गिरा और ख़ुजूर में अटका। उसकी स्त्री ने रोना-कलपना शुरू कर दिया। एक ही एक तो बेटा है।
भक्त को ध्यान आया कि अभी दो शेष हैं। उसने तुरंत दूसरा नारियल नीचे गिराया और कहा - मेरे बेटे के चेहरे पर आंखें लग जाएं।
अगले ही पल भक्त के बेटे के चेहरे जगह-जगह कई जोड़ी आंखें लग गयी।
उसका चेहरा बड़ा वीभत्स दिखने लगा। यह देखकर उसकी स्त्री का रोना-धोना और भी तेज हो गया। भक्त को तो बेहद दुःख हुआ। अपने वाणी पर संयम न रख कर क्या मांग लिया।

अब उसके पास एक ही नारियल शेष था। उसने बेटे की ओर देखा और बहुत सोच-समझ कर बोला - प्रभु मेरे बेटे का चेहरा पहले की तरह सामान्य कर दो। यह कह कर भक्त ने तीसरा नारियल ज़मीन पर गिरा दिया। अगले ही पल बेटे का चेहरा पहले के समान सामान्य हो गया। भक्त और उसकी स्त्री को महान संतोष हुआ।
अब भक्त के पास कोई वर नहीं था। लेकिन उसे ख़ुशी इस बात की थी उसे पता चल चुका था कि बिना वरदान के भी चाहत और वाणी में सामंजस्य और नियंत्रण हो तो वो दुनिया जीत सकता है।
नोट - बहुत प्रचलित है उक्त लोक-कथा। लेकिन मैंने इसलिए पुनः उद्धृत की है ताकि सनद रहे और आजकल के हालात का मिलान भी इससे करके देखें।
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