Friday, December 11, 2015

दिलीप और राजकुमार - एक यादगार तस्वीर।

- वीर विनोद छाबड़ा
दिलीप कुमार और राजकुमार, एक उत्तर तो दूसरा दक्षिण ध्रुव। दो फुटबॉल साइज़ ईगो वाले आर्टिस्ट। क्या कभी एक प्लेटफॉर्म पर आएंगे? क्या इनकी अदाकारी के जौहर आमने-सामने देखना नसीब में होगा? एक दौर था जब फिल्मों में ज़रा सा भी दख़ल रखने वाले इस तरह के सवाल फ़िल्मी रिसालों के सवाल-जवाब कॉलम में पूछा करते थे। बेचारे संपादक यह लिख कर खामोश हो जाया करते थे - इस जन्म में तो नामुमकिन।

खुद बड़े कद वाले प्रोड्यूसर-डॉयरेक्टर के लिए दो बड़ों को आमने-सामने खड़ा करना एक चैलेंज रहा। सुभाष घई को मालूम था कि पर्दे की दुनिया से दूर यह दोनों आर्टिस्ट एक दूसरे की बहुत क़द्र करते हैं। दिलीप के साथ सुभाष 'विधाता' और 'कर्मा' बना चुके थे। उन्होंने दिलीप कुमार को मना लिया। और फिर कुछ दिन बाद राजकुमार को भी। सुना है कि इसके लिए उन्होंने दिलीप कुमार से राजकुमार को फ़ोन कराया था। दोनों ने सलाह कर शर्त यह रखी थी कि आमने-सामने टकराने वाले सीन ऐसे न हों लोग कहें कि इसने उसकी छुट्टी कर दी है। फ़िल्मी रिसाले भी अंगीठी के नीचे पंखा झल कर खूब हवा दिया करते थे। 
इससे पहले दोनों ने 'पैगाम' (१९५९) की थी। हालांकि उम्र में दिलीप कुमार से छोटे थे राजकुमार, लेकिन रोल बड़े भाई का किया था। उस ज़माने में राजकुमार का कद भी दिलीप कुमार के मुक़ाबले बहुत छोटा था। एक स्ट्रगलिंग एक्टर थे। एचएस रवैल ने 'संघर्ष' में कोशिश की थी दोनों को साथ लाने की, पर बात नहीं बनी। तब संजीव कुमार को लिया गया।
लेकिन 'पैगाम' के ३२ साल बाद सुभाष घई 'सौदागर' में कामयाब हुए। किसी को यकीन नहीं आया। शुरू में तो कोरी अफ़वाह माना गया। मगर सुभाष घई बड़े उलट-फेर करने में माहिर हो चुके थे। लोगों को यक़ीन करना पड़ा। तब ये उस समय का सबसे बड़ा और सनसनीखेज़ Casting Coup था। ज्यादातर लोगों का ख़याल था कि फुटबाल साइज़ ईगो वाले साथ आ तो गए हैं मगर फ़िल्म पूरी होने की गारंटी नहीं है। दिलीप कुमार से तो फिर भी सहयोग की उम्मीद थी, मगर जॉनी राजकुमार से नहीं। दरअसल, राजकुमार उस दौर के सबसे बड़े ईगो वाले आर्टिस्ट थे। ना मालूम कब किस बात पर और किससे नाराज़ हो कर फ़िल्म छोड़ कर चल दें? मगर, सारे अंदेशे ग़लत साबित हुए। हालांकि, सुभाष को कई सीन अलग-अलग शूट करके मिक्स भी करने पड़े। बहरहाल, फ़िल्म बनी और बड़ी सुपर हिट भले नहीं रही, मगर एक यादगार तस्वीर तो बनी।

ज़िंदगी के आखिरी दो साल राजकुमार ने बहुत तकलीफ़ में गुज़ारे। उन्हें कैंसर हो गया था। उनके अभिन्न मित्र दिलीप कुमार को जब राजकुमार की बीमारी के बारे में ख़बर हुई तो उन्होंने फ़ोन पर ख़ैरियत ली। राजकुमार कैंसर जैसी बीमारी के आख़िरी स्टेज पर थे। मगर उन्होंने फिर भी अपनी यूनिक स्टाईल नहीं छोड़ी - यूसुफ, हमें सर्दी-ज़ुकाम थोड़े ही होगा। जॉनी, हमें कैंसर हुआ है, कैंसर।
इसके कुछ ही दिनों बाद राजकुमार साहब इंतकाल फ़रमा गए।
दिलीप कुमार साहब आजकल याददाश्त भूलने की बीमारी से पीड़ित हैं। कामना है उनकी उम्र लंबी हो।
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