Saturday, September 5, 2015

नौकरानी पुराण।

-वीर विनोद छाबड़ा
मेमसाब ने तल्ख़ होकर पुकारा -सुनिये।
लगा कोई आफ़त आई है। मैंने जानबूझ कर अनसुना किया। मेमसाब पैर पटखते मेरे कमरे में आ गयीं। मैंने गहरी नींद से जागने का अभिनय
किया। मेमसाब ने शिकायत की -सुनाई नहीं देता क्या?
अरे बाबा सुन तो रहा हूं? जो कहना हो कहो।
मेमसाब कुछ याद करते हुए बोलीं -क्या कह रही थी मैं?
मैंने चुटकी ली -मैं क्या जानूं?
देखा, मैं भूल गयी। इसीलिए कहती हूं एकबार में सुन लिया करो।
मेमसाब ने खीजते हुए कमरे से एग्ज़िट मारती सी दिखती हैं। मैं मन ही मन खुश हुआ कि चलो बलां टली। लेकिन यह ख़ुशी क्षणिक साबित हुई।
कमरे से बाहर कदम रखते ही मेमसाब को याद आ गया। वो लौट आती हैं -हां तो मैं कह रही थी।
मैंने कहा -किससे कह रही थी और क्या कह रही थी?
मेमसाब भन्नाती हैं -अरे बाबा चुप रहिये। नहीं तो मैं फिर भूल जाऊंगी।
मैंने सरेंडर कर दिया -हां चुप हो गया। अब बोलो।
मेमसाब सांस खींची  -हां तो मैं कह रही थी कि आप कुछ कहते क्यों नहीं?
मैं आश्चर्यचकित हुआ  -अरे भाई किससे?
मेमसाब ने घोर आश्चर्य व्यक्त किया -कहां रहते हैं आप? अरे मैं सुबह से परेशान हूं? आप का क्या? खाने को मिल जाता है। फिर सुबह से शाम तक
लैपटॉप और सोना। तीसरा कोई काम नहीं है।
मैंने खीजते हुए कहा -बात लंबी मत खींचो। मुद्दे पर आओ। नहीं तो फिर भूल जाओगी।
मेमसाब को गलती का आभास हुआ। फौरन ट्रैक पर लौटीं - मैं कह रही थी कि आप नौकरानी को कुछ कहते क्यों नहीं?
मुझे आश्चर्य हुआ -क्या कहूं और क्यों कहूं? किया क्या है उसने?
मेमसाब गुस्से में आ गयीं -तभी कहती हूं जरा घर की ओर ध्यान दिया करो। मालूम है आज भी माहरानी नहीं आई है? पिछले चार दिन से नहीं आ रही है। अभी अभी मोबाइल आया है कि तबियत ठीक नहीं है। कल आऊंगी।
मैंने कहा -तो ठीक है। तबियत ठीक नहीं होगी। कल आ जाएगी।
मेमसाब झुंझुला गयीं -यह सब बहाने हैं। मुझे सब मालूम है, उसके घर मेहमान आये हैं। मौज मस्ती हो रही है। आप कुछ कहते नहीं। उसी का नतीजा है।
मैंने कहा -अरे बाबा मैं क्या कहूं उससे?
मेमसाब ने शिकायत की -कित्ती बार कहा कि उसे डांटो कि यह क्या तरीका है। रोज़ टाइम से आओ। काम करो और जाओ। बस पैसा ज़रूर टाइम पर चाहिये।
मैंने समझाने की कोशिश की- मेरे डांटने से वो टाइम पर आया करेगी? बीमार होना बंद करे देगी?
मेमसाब ने कहा -हां। आदमियों की डांट का असर जल्दी होता है।
मैंने वार किया- तुम पर मेरी डांट का होता है असर क्या?
मेमसाब ने बचाव किया - मेरी बात और है।

मैं कुतर्क करने के मूड में आ गया - मान लो मैंने उसे डांटा और वो अपने पति को बुला लायी। बात तो बढ़ेगी न। और मान लो उसने नौकरी छोड़ दी। यूं भी हमारे घर की रेपुटेशन इतनी ख़राब है कि यही बड़ी मुश्किल से मिली है। दूसरी नौकरानी कहां से लाओगी? और सुनो। मालूम है इन काम वाली बाईयों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कई महिला संघठन भी बन गए हैं। रोज़ सुनने में आता है कि फलां महिला समिति ने उल्टा-सीधा आरोप लगा कर फलां मालिक-मालकिन की ठुकाई कर दी। पुलिस में मारपीट और बकाया वसूली का केस अलग दाखिल कर दिया। अब यह फैसला तुम कर लो कि तुम्हें वीरपति चाहिए या वीरगति प्राप्त पति।

मेमसाब हमारे कुतर्क का सामना नहीं कर सकीं -आपसे तो बात करना ही बेकार है। मैं ही कुछ करती हूं। 
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