Thursday, September 3, 2015

दोस्त दोस्त न रहा!

-वीर विनोद छाबड़ा
छुट्टी का दिन। हम चीनू के घर पहुंचे। जान छिड़कने वाला मित्र। साईकिल लिये बाहर ही मिल गया। कहीं जाने की तैयारी में था।
कहीं जा रहे हो?
बहुत ज़रूरी काम है। फिर कभी आना।
कुछ टरकाऊ अंदाज़ था उसका। हम सोच में डूब गए। दो मिनट बैठाया भी नहीं। पानी भी न पूछा। दरवाज़े से ही चलता कर  दिया। तनिक दुख हुआ। फिर दिल को समझाया। होता है कभी-कभी। कोई मजबूरी होगी। बाद में तो बता ही देगा।
चीनू साईकिल लेकर निकल लिया। हमने भी साईकिल घुमा दी। एक पेड़ के नीचे खड़े होकर सिगरेट को धुआं किया। सोचा मिंटू के घर चलते हैं। लेकिन वहां ताला मिला। अब क्या करूं? घर लौटूं?
अचानक ख्याल आया सहपाठिनी के घर चलते हैं। बहुत दिन से गया नहीं। कई बार कह भी चुकी है। हमने उधर मोड़ दिया हैंडिल।
दीवार के साथ सटी साईकिल देख कर हम चौंके। कुछ जानी-पहचानी सी लग रही है। कुछ आगे सोचते कि अचानक सहपाठिनी ने दरवाज़ा खोल दिया।
चौंक पड़ी हमें देख कर। ख़ुशी से ताली बजाई। अरे तुम! आओ, आओ। तुम भी आओ।
हमारा दिमाग कलाबाजियां खाने लगा। तुम भी आओ? मतलब क्या है?
वो कहे जा रही है। तुम्हारे जीजा जी अभी-अभी बाहर निकलें हैं। चिंटू थोड़ा चिड़चिड़ा हो गया है। दांत निकाल रहा है न। 
लेकिन हमारे दिमाग में वो 'साईकिल' और 'तुम भी आओ' घूम रहा था। लेकिन अभी आगे बड़ा सरप्राईज़ बाकी था।
हमने कमरे में जैसे ही प्रवेश किया कि बिजली सी गिरी। आंखों के सामने अंधेरा छा गया। तेज़ चक्कर आया। हम पछाड़ खा कर मूर्छित होने को ही थे कि 
किसी ने थाम लिया।
चीनू था वो।
तुम यहां कैसे? तबियत हुई एक घुमा कर लगाऊं। तो यह है ज़रूरी काम? बड़ी जल्दी थी। सीने में ज्वाला धधक रही थी। दोस्त दोस्त न रहा। सच-सच बता देता यार। मैं जान दे देता।
वो सर झुकाये बैठा था।
हम दोनों के मध्य संवादहीनता की स्थिति थी।  सन्नाटा पसरा था।
तभी सहपाठिनी जी चिंटू को गोद में लिये कमरे में आयीं। लो तुम लोगों के
तीसरे भाई भी आ गये। हमने हैरान होकर गर्दन उठाई।
एक और सरप्राईज़!
सामने मिंटू खड़ा है। हमें लगातार घूरता हुआ। इधर से गुज़र रहा था। तुम दोनों की साईकिलें खड़ी देखीं। सो तफ़तीश करने चला आया।
हम कुछ पल एक-दूसरे को हैरां-परेशां देखते रहे। कुछ समझ नहीं आ रहा था। तीनों ही चोर थे। एक दूसरे की चोरी पकड़ी गयी। अब तो एक ही तरीका था।
हम तीनों ही एक साथ खिलखिला कर ज़ोर से हंस पड़े।
सहपाठिनी जी असलियत से अंजान हम तीनों को भौंचक्का देख रही थीं। भई, माज़रा क्या है? मैं भी तो जानूं?
हम हंसते ही रहे। आप चाय पिलाईये।
उसने चिंटू को चीनू की गोद में डाल दिया।
थोड़ी देर में वो चाय ले आई। अभी तुम लोगों के जीजा जी भी आते होंगे।
हम तीनों को अचानक ज़रूरी काम याद आ गया। जल्दी से चाय पीकर सटक लिए। और एक सिनेमा हाल में जाकर पसर गए। फ़िल्म सीरियस थी। लेकिन हम तीनों हंसते ही रहे। 
४३ साल गुज़र चुके हैं। सहपाठिनी जी रिटायर हो चुकी हैं और उनके पति भी। और वो गोदी वाला चिंटू आईपीएस है। एसएसपी होने वाला है। पुलिस ऑफ़िसर कॉलोनी में रहती हैं। मिलती हैं कभी-कभी। आया करो। चीनू और तोती को भी साथ लाना।
हम कन्नी काट जाते हैं। हां हां, ज़रूर। डर लगता है। कहीं वो चीनू और मिंटू पहले से मौजूद न हों। और फिर पुलिस वालों कर घर घुसते हुए डर लगता है। 
नोट - आधी हक़ीक़त आधा फसाना।
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03-09-2015 Mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

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