Friday, September 25, 2015

दिल दिया है, जां भी देंगे…

-वीर विनोद छाबड़ा
जिसकी लाठी उसकी भैंस। समरथ को नहीं कोई दोष गुसाईं। अपने मुल्क में भी खूब चलता है।
उसको कोई प्रमाण नहीं देना। वो जो चाहे करे। सड़क के बीच में मूर्ति रख कर पूजा करे तो सड़क रास्ता बदल देती है। अगर रास्ता नही बदला तो मजबूर कर दी जाती है।
धर्म के नाम पर वो रात-रात भर भोंपू बजाएं। फ़िल्मी धुनों पर भगवान का नाम लेते हुए चीखें-चिल्लायें। सबकी नींदें हराम करे।
सब माफ़। किसी की हिम्मत नहीं ऐतराज़ करने की। उनसे ये बहस करनी फ़िज़ूल है कि दूसरे धर्मों में तो ऐसा नहीं होता।
कहां है? तेरी सहिष्णुता जो तेरी पहली खासियत है, तेरी पहचान है।  
बात आस्था की है। उनकी ख़ुशी की है। सुनना पड़ता है कि जिसे बर्दाश्त नहीं, वो कानों में रुई ठूंस लें। अगर ये भी मंज़ूर नहीं तो कहीं और जाकर रहो। और अगर दूसरे धर्म के हो तो मुल्क छोड़ दो। और अगर दूसरे धर्म कि तरफदारी कर रहे हो तुम भी वही बन जाओ और रातों रात मुल्क़ छोड़ कर भाग जाओ। और उनसे भी बड़े ग़द्दार कहलाओ। 
उनसे ये सवाल करना बेमानी है कि अरे भई, क्यूं छोडूं ये मुल्क? जितना तेरे बाप का है, उतना मेरे भी बाप का है। कहीं बाहर से आया नहीं। जो तेरी नस्ल है वो मेरी भी। मेरा धर्म, तेरा धर्म अलग है, तो क्या हुआ? चल डीएनए करा। शर्त लगा ले। दोनों का मूल इसी धरती का मिलेगा। वन हंड्रेड परसेंट।
फिर उसे हर कदम पर इम्तिहान क्यूं देना है कि मुल्क उसके लिए पहले है और धर्म बाद में।
इस कवायद के उस्ताद से किसी ने नहीं पूछा कि तेरे लिए पहले मुल्क है या धर्म।
तू रिश्वत खाए, जरायम की दुनिया में बादशाही करे, सब माफ़। दूसरा करे तो एंटी नेशनल। बाकी धर्म वालों से कोई न पूछे। वो तेरे सगे लगे हैं न।
कर भई, तू जो चाहे कर, तेरी मर्ज़ी। तू अपना धर्म निभा, हम अपना करेंगे। तू जिसको चाहता है वोट दे। मैं जिसे चाहूं वोट दूं। इसमें क्या बिगड़ता है तेरा?
देखना मुल्क के लिए मर मिटने का मौका आएगा तो सबसे आगे हमें ही पाओगे। अतीत में झांको तो यही पाओगे। हमारे ऊपर रहने की हमारी कुर्बानियों की कहानियों/किस्सों की टीआरपी सबसे ज्यादा है। हमें ही मिसाल बना कर पेश किया जाता है। चाहे अख़बार हो या रेडियो या टीवी या सिनेमा का पर्दा। और चाहे चौपाल हो। 
जितना चाहो, जलो-भूनो। अपना ही खून जला रहे हो। हमारा क्या? चीखो जितनी हिम्मत हो। हम नहीं जाने वाले यहां से। यहीं पैदा हुए यहीं दफ़न होंगे।

ईद भी मनाएंगे और तुम्हारे साथ होली भी खेलेंगे। दीवाली पर दीया भी जलाएंगे। गुरूद्वारे में मत्था टेक कर लंगर भी छकेंगे। क्रिसमिस का केक भी खायंगे।

जंतर मंतर हो या रामलीला मैदान। नौकरियां बढ़ाने के लिए अनशन भी करेंगे। नारे भी लगाएंगे तुम्हारे सुर में सुर मिला कर। मिले तेरे सुर में मेरा सुर। तब बनेगी बात।
और कंधे से कंधा मिला कर भ्रष्टचार की मुख़ालफ़त भी करेंगे।
यहीं का नमक खाया है। इसी का हक़ अदा करेंगे। जीना यहां, मरना यहां यहां, इसके सिवा जाना कहां। दिल दिया है, जां भी देंगे।
अगर किसी को मिर्ची लगे तो मैं क्या करूं?
नोट - मेरी एक पुरानी पोस्ट है। मुझे लगा इसकी महत्वता कम नहीं हुई अभी। आज के माहौल में इसे पुनः पढ़े जाने की ज़रूरत है।

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