Thursday, September 24, 2015

वक़्त वक़्त की बात है।

-वीर विनोद छाबड़ा
चार दिन पहले की बात है। दिमागी कसरत के लिए एक वीडियो म्यूज़िक चैनल खोले बैठा था मैं। ब्लैक एंड वाइट युग के गाने चल रहे थे। एक से बढ़ कर टॉप क्लॉस। तभी पर्दे पर दिखे राजेश खन्ना और आशा पारेख। आ जा पिया तोहे प्यार दूं गोरी बइयां तोपे वार दूं.मजरूह का गाना और
Rajesh Khanna & Asha Parekh
राहुलदेव बर्मन का संगीत। फ़िल्म थी - बहारों के सपने। १९६७ में रिलीज़।
उस दौर में कोई नहीं पूछता था राजेश खन्ना को। यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स टैलेंट हंट की खोज थे वो।
राजेश को सबसे पहले साईन किया था जीपी सिप्पी ने 'राज़' के लिये। नायिका बबिता थी। दोनों ही बिलकुल फ्रेश। राजेश से पांच-छह साल छोटी थी बबिता। लेकिन फ़िल्म लेट हो गयी। 
नासिर हुसैन एक क्विकी बनाना चाहते थे। बजट कम रखने के लिए ब्लैक एंड व्हाईट में बनाने का फैसला लिया। नाम रखा - बहारों के सपने। अब नए-नए हीरो राजेश के पास तो डेट ही डेट थीं।
लेकिन नायिका आशा पारेख पसड़ गयीं। मैं इतनी सीनियर। उम्र में भी दो महीने बड़ी। इस नए-नए लौंडे की हीरोइन बनूं! मार्किट वैल्यू गिर जायेगी। कितना असहज महसूस होगा? सवाल ही नहीं पैदा होता।
उन दिनों सबसे महंगी हीरोइन होती थी आशा। तीन लाख प्रति फ़िल्म। आज के तीन करोड़ से भी ज्यादा।
लेकिन नासिर हुसैन ने आशा को मना लिया। लड़का बहुत टैलेंटेड है। हज़ारों में से चुना गया है। यों समझो लाखों में एक।
वैसे नासिर हुसैन कहें और आशा न माने, ये हो ही नहीं सकता था। अब यह बात दूसरी है कि आगे चल कर राजेश खन्ना हो गए सुपर स्टार। राजेश आगे-आगे और आशा पीछे-पीछे। आशा संग तीन और फ़िल्में बनीं- कटी पतंग और आन मिलो सजना। धर्म और कानून में राजेश खन्ना की दोहरी भूमिका थी। बाप और बेटे की। और आशा पारेख राजेश की पत्नी और मां भी।
यह ऐसा शुरुआती दौर था जब राजेश खन्ना को ऐसी नायिकाएं मिली जो उम्र में उससे बड़ी थीं। इंद्राणी मुख़र्जी (आख़िरी ख़त), वहीदा रहमान (ख़ामोशी), नंदा (दि ट्रेन, इत्तिफ़ाक़ और जोरू का गुलाम)  बड़ी उम्र थीं। और तनूजा (हाथी मेरे साथी), मुमताज़ (सच्चा झूठा) और शर्मीला टैगोर (आराधना) उम्र में छोटी मगर प्रोफेशन में बहुत सीनियर। नाक-भौं सिकोड़ी जाती थी। लेकिन राजेश ने कभी असहज महसूस नहीं किया और किया भी तो ज़ाहिर नहीं होने दिया।
और फिर 'आराधना' (१९६९)  की रिलीज़ के बाद तो तख्ता ही पलट गया। सुपर स्टार बन गए राजेश खन्ना। जो भी उनके साथ काम करती, उसके कैरियर को पंख लग जाते। उन दिनों राजेश को लोग घमंडी भी कहने लगे थे।
साधना (दिल दौलत और दुनिया) और माला सिन्हा (मर्यादा) जैसी बड़ी उम्र नायिकाएं अपने कैरियर की डूबती नैया को बचाने के लिये राजेश की हीरोइन बनने के लिए तड़पने लगीं। आशा पारेख और नंदा तो उनके साथ काम कर ही रहीं थी। लेकिन राजेश खन्ना ने इंकार नहीं किया। बल्कि ख़ुशी ज़ाहिर की। अब किसी का वक़्त ही ख़राब हो तो कोई क्या कर सकता है। उनके कैरियर नहीं बचे। लेकिन यह बात कोई कम है क्या कि राजेश खन्ना, दि सुपर स्टार के साथ काम करने का मौका मिला।
वक्त वक्त की बात है। फिर वो भी एक दौर आया जब राजेश खन्ना का कैरियर डूब गया। लेकिन उनकी हस्ती ख़ारिज नहीं कर सका कोई। उनसे पहले सुपर स्टार का तमगा कोई नहीं छीन सका। हर जेंडर के, हर मज़हब, हर जाति और हर वर्ग के बच्चे से लेकर बूढ़े तक ने उनसे बेहद मुहब्बत की।
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