Friday, September 18, 2015

गणेश जी के चरणों में लोटते-पोटते मूषक जी।

-वीर विनोद छाबड़ा 
गणेश जी के वाहन मूषक के संबंध में जितनी कथाएं प्रचलित हैं, उतनी किसी अन्य देवी-देवता के वाहन के संबंध नहीं।
यह भी एक विचारणीय प्रश्न है कि गणपति पुत्र गजमुख ने वाचाल मूषक को ही अपनी सवारी क्यों चुना? दंतकथाओं की मानें तो मूषक मूलतः एक
आवारा गंधर्व कौंच था। पतिव्रता नारी को अपमानित करने के दंड स्वरूप उसे गणेश जी की सवारी मूषक बनने का श्राप मिला। 
इस संबंध में अग्रेतर एक दिलचस्प दंतकथा प्रचलित है। मूषक जी स्वभाव से बेहद चंचल थे। कभी एक जगह टिक कर न रहना उनके चित्त में रहा। शरारतें करना और दूसरों को नुकसान पहुंचाना उनका नित्य का शगल था।
कभी शंकर जी का आसान कुतर देते तो कभी मां भगवती के वस्त्रों में छेद कर आते। खाने-पीने के सामान में से भी हाथ साफ़ कर देते। कुबेर का ख़जाना भी न छोड़ा उन्होंने। सोने और चांदी के भंडारों को जब-तब आपस में मिला आते। हीरे-जवाहरात के आभूषणों को भी खींच कर संदूक के नीचे डाल देते। और कुबेर ढूंढ़ते रह जाते।
अन्य कई देवी-देवताओं को भी शिकायत थी कि मूषक जी महाराज आये दिन उनके महल में घुसपैठ करते हैं। गणेश जी से उनकी कई बार शिकायत भी की गयी।
 प्रारंभ में गणेश जी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन पानी जब सर से ऊपर निकल गया तो उन्होंने मूषक जी की ज़बरदस्त क्लास ली। मगर मूषक जी न माने।
जो बार-बार समझाने पर भी न माने, उसे एक दिन दंड तो भुगतना ही पड़ता है।
कुबेर के खजाने में उथल-पुथल मचाने के आरोप में एक दिन फंस ही गए मूषक जी । कुबेर जी ने उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया। वो चोरी-चुपके चांदी की पाजेब इधर से उधर कर रहे थे। उन्हें चांदी के पिंजड़े में बंद कर लिया गया। महीने भर का राशन पानी भी रख दिया उसमें। और उसके ऊपर सोने का ढेर लगा दिया। सांस लेने के लिए एक पतली सी नली को पिजड़े से जोड़ दिया जो महल के बाहर खुलती थी। 
इधर गणेशजी परेशान कि उनकी सवारी कहां गायब हो गयी? आकाश-पाताल एक कर डाला। मूषक जी नहीं मिले। गणेश जी को कहीं भी जाना होता तो अपनी सवारी न होने के कारण पैदल आते-जाते या दूसरों का सहारा लेते।
एक दिन गणेश जी कुबेर जी महल के पास से गुज़र रहे थे। मूषक जी को अपने स्वामी की गंध मिली। उन्होंने चूं चूं करना शुरू किया।
गणेश जी को यह आवाज़ जानी-पहचानी लगी। इधर-उधर बड़े ध्यान से देखा। सांस लेने वाली नली से आवाज़ आ रही थी। अरे, यह तो अपने मूषक जी हैं।
 
गणेश जी ने फ़ौरन कुबेर जी का द्वार खटखटाया और येन-केन-प्रकारेण मूषक जी को आज़ाद करवाया। लेकिन उन्होंने इसके साथ मूषकजी को सज़ा भी दी। आयंदा से तुम हमेशा मेरे पैरों के पास, मेरी निगरानी में रहोगे।
वो दिन है और आज का। चित्रों में मूषक जी को सदैव गणेश जी के चरणों के पास देखा जाता है।
लेकिन आज तो कलयुग है। मूषक जी जहां मौका पाते हैं कुछ न कुछ कुतर जाते हैं चाहे वो गेहूं का बोरा हो या महंगी बनारसी साड़ी। मानव जाति भले ही गणेश जी को पूजती है लेकिन उनके वाहन को नहीं। बिल्ली से तो उनका छत्तीस का आंकड़ा है। 
---
१८-०९-२०१५
Above posted in 2290dee.blogspot.in dated 18 September 2015

Also in IndiVine Blogger dated 18 September 2015        

No comments:

Post a Comment