Thursday, September 17, 2015

यहां पहरा कानून का नहीं सद्भाव का है।

-वीर विनोद छाबड़ा
लखनऊ में इंदिरा नगर के मुंशी पुलिया का इलाका है। मैं यहीं रहता हूं।
चौराहे के पास गोश्त की ढेर दुकानें हैं। मंडी समझ लीजिये। पका हुआ तरह-तरह का गोश्त और चिकन बेचने वाले ढाबे, चलती-फिरती दुकानें तो बेशुमार हैं।
बेचने वाले नब्बे फ़ीसदी मुस्लिम हैं। लेकिन ज्यादातर दुकानों का शटर
मंगल को गिरा रहता है। नवरात्र के दिनों में भी और होली-दीवाली छोड़ कर अन्य बड़े हिन्दू त्यौहारों पर भी।
सावन के दिनों में भी अनेक दुकानें बंद रहती हैं।
बंद रखने के लिए कोई कानून नहीं है। स्वेच्छा, भाई-चारे, सद्भाव और सांप्रदायिक एकता के तहत ही सब होता है। 
एक साहब ने फ़रमाया कि मजबूरी है उनकी। खाने वाले ही सब हिंदू हैं। हिंदू त्यौहार के दिनों में गोश्त नहीं खाता।  
हमने कहा तो फिर यह कहना ग़लत है कि मुसलमान ही गोश्त खाता है।
हम कई मुस्लिम मित्रों से ईद मिलने जाते हैं। जो गोश्त नहीं खाते, उन्हें वेजीटेरियन सर्व किया जाता है।
बहरहाल, मेरे कहने का मक़सद यह है कि ज़ोर-ज़बरदस्ती या कानून बनाने से बेहतर है, आपसी सद्भाव और भाई-चारे से समझ बनाना। और यह कोई मुश्किल काम नहीं है।
मुंशी पुलिया पर मस्जिद भी है और मंदिर भी। व्यापारियों के मंडल हैं। इसमें हिंदू भी है और मुस्लिम भी। उनकी और से रोज़ा इफ़्तारी भी होती है और रात भर चलने वाले जागरण भी। यह आपसी सद्भाव ही तो है, समझ है। एकता का प्रतीक भी।
सब एक-दूसरे पर निर्भर हैं। मिठाई की दुकान हो या गैराज। यहां हिंदू भी हैं और मुस्लिम भी।
त्यौहार किसी का भी हो। कारीग़र और कामगार कई-कई दिनों तक ग़ायब रहते हैं।
परेशानी तो सभी को होती है।
और यह स्थिति मुंशीपुलिया की ही नहीं तमाम शहर की है।

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17-09-2015 Mob 7505662636
D-2290 Indira Nagar
Lucknow -226016

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