Wednesday, August 26, 2015

किस्म-किस्म के कुत्ता टहलाऊ!

-वीर विनोद छाबड़ा
सुबह-सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकलता हूं। ज़ंजीर से बंधे कुत्तों को टहलाते किस्म-किस्म के टहलाऊ नज़र आते हैं।
१) वो जिनके लिए कुत्ता स्टेटस सिंबल है।
२) वो जो अपनी सेहत के साथ-साथ कुत्ते की भी सेहत का ख्याल रखना ज़रूरी समझते हैं।
३) वो जो कुत्ते के बहाने खुद भी टहलते हैं।
४) वो जो कुत्ते के मालिक नहीं हैं, नौकर हैं। महज़ कुत्ता टहलाने, उसे टाईम-टाईम पर पॉटी और सू-सू कराने और दिन भर उसकी देख-रेख के लिये रखे गए हैं। बड़े लोग बड़ी बातें। 
५) वो जो अपनी मौजूदगी की दहशत फैलाने की ग़रज़ से आगे पीछे दो-तीन मुश्टंडे किस्म के कुत्ते लेकर निकलते हैं।
६) वो जो कुत्ते को उसकी इच्छा के विरुद्ध लगभग घसीटते हैं।
७) वो जिन्हें कुत्ता उनकी इच्छा के विरुद्ध घसीटता है। 

८) वो जिनके हाथ में डंडा दिखता है। इसका इस्तेमाल वो अपनी फीमेल डॉगी के पीछे लगे दर्जन भर आवारा कुत्तों को भगाने के लिए करते हैं।
हमने कभी-कभी कुत्ते को लेकर बवाल होते भी देखे हैं। मुद्दे हमेशा कॉमन रहे हैंआपके कुत्ते ने मेरे पप्पू को काट लिया.तो आप अपना पप्पू संभाल कर रखा करेंवाह, ये तो चोरी और सीनाजोरी वाली बात हुई.कुत्ता पाला है तो कुत्ते को तमीज़ सिखाओ और साथ में खुद भी कुत्ता पालने की तमीज़ सीखो।
बाज़ वक़्त बात बढ़ते-बढ़ते मारपीट और थाना-कचेहरी तक पहुंच जाती है। मोहल्ला सुधार-समिति  बीच-बचाव करके मामला शांत कराने का प्रयास करती है। इतिहास भी पढ़ा है हमने। दो बड़े परिवारों के कुत्ते आपस में भिड़े। बात इतनी बढ़ी कि कुत्ते पीछे हो गए। इंसान इंसान का दुश्मन बन गया। खून-खराबा हुआ। कई पीढ़ियों से चली आ रही है यह दुश्मनी। लहू बह रहा है कुत्तों का। तेरा कुत्ता मेरे कुत्ते से ज्यादा सफ़ेद क्यों भला?  
बहरहाल हम खसक लेते हैं। कुत्तों की लड़ाई है। हमारा क्या इंटरेस्ट? हम कोई कुत्ता पालक या कुत्ता प्रेमी तो हैं नहीं। 
लेकिन एक बार फंस ही गए।
हुआ यों कि एक कुत्ता टहलाऊ साहब को सामने से आता देख कर उनके मित्र को मज़ाक सूझी - अरे भई, सुबह-सुबह ये गधे को कहां टहला रहे हो?
कुत्ता टहलाऊ सख़्त नाराज़ हुए  - अजीब अहमक क़िस्म के शख्स हैं आप! आंखें हैं या बटन। आपको ये गधा दिखाई देता है?
उनके मित्र माफ़ी मांग कर इतनी जल्दी फाईल बंद करने वालों में नहीं थे - अरे भई, मैं आपसे नहीं कुत्ते से मुख़ातिब हूं।
बस फिर क्या था। कुत्ता टहलाऊ साहब बिगड़ गए। मल्लयुद्ध की स्थिति आ गयी। यकीनन, मज़ाक बड़ा भद्दा था। वो भी सुबह-सुबह। राम, राम। कोई भी होता बिगड़ जाता।
अब वो दोनों ही मेरे पड़ोसी थे और अच्छे मित्र भी। दुःख सुख में अक़्सर काम आये। मध्यस्था तो करनी ही थी। समझाने-बुझाने पर बिना कुत्ते वाले मित्र ने कुत्ते वाले मित्र से माफ़ी मांगी। सीज़ फायर हो गया।
लेकिन कुत्ते वाले मित्र के मन में कसक रह गई कि अगला माफ़ी बेमन से मांगी है। उन्हें रह-रह कर टीस उठती। न चाय हुई, न पानी। दोनों के मुहं फूले रहे। बात दोनों की पत्नियों तक भी पहुंच गयी। सीधे-सीधे वॉर की जगह, एक नया फ्रंट खुल गया। छुट-पुट गोलाबारी होती रहती। सीज़ फायर का उल्लंघन।
किसी बड़े महायुद्ध की आशंका के दृष्टिगत और एक आदर्श व ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते हमीं ने पहल की। दोनों को सपत्नीक चाय पर बुलाया। शांति के लिए पहले से तैयार ज़बरदस्त इमोशनल अपील की। गले मिलाया। सारे गिले-शिकवे जाते रहे।
चाय-पानी, समोसा, जलेबी, पेस्ट्री, सेब, केला आदि पर हमारे ज़रूर हज़ार रूपए खर्च हो गए।

मेमसाब ने एक सांस में कई प्रश्न उठाये - ये सब करने की क्या ज़रूरत थी? झगड़ा करें वो और वो भी कुत्ते के नाम पर। पैसा खर्च हो हमारा। रिश्तेदारी है क्या?
इससे पहले कि हमारे घर में महाभारत की शुरुआत होती, हम मेमसाब के आवर्ती जमा योजना खाते में किश्त जमा करने के बहाने घर से बाहर निकल लिये।
नोट - समस्त कुत्ता पालकों से क्षमा याचना सहित। इरादा किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है। हम कभी कुत्ता पालक नहीं रहे। लेकिन अड़ोस-पड़ोस का हाल तो खूब देखा है।
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26-08-2015 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar 
Lucknow - 226016

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