Tuesday, July 21, 2015

चूहे के साथ फंसे हम!

-वीर विनोद छाबड़ा
कई साल पहले की बात है। हम अधिकारी के पद पर नए नए प्रमोट हुये थे ।
पद की गरिमा को मेन्टेन करने के लिए कई तरह के प्रोटोकॉल अपनाने पड़े। जैसे, नमस्ते का जवाब बोल कर या हंस कर नहीं देना बल्कि सर हिला कर दो। और अगर नमस्ते करने वाली महिला हो तो बा-अदब हलकी सी मुस्कान भी साथ में छोड़ो।

घर में इसका कोई लाभ नहीं मिला जब मेमसाब को पता चला कि पगार एक इन्क्रीमेंट के बराबर बढ़ी। 
रोज़मर्रा की समस्त क्रियाएं पूर्वरत जारी रहीं।
इसी क्रम में एक दिन सुबह-सुबह हम चूहेदानी में फंसा चूहे को दूर एक नाले में छोड़ने जा रहे थे।
रास्ते में कई लोग मिले। आमतौर पर जैसा कि होता है। गुप्ता जी ने झांक के देखा, छोटा है या बड़ा। श्रीवास्तव जी ने पूछा - चूहा फंसा है?
हमने कहा -  चूहेदानी में चूहा ही फंसता है या छछूंदर, हाथी नहीं।
त्रिवेदी जी ने छींटा मारा - अब चूहे के साथ आप भी फंसे। वर्माजी ने तो हमारी गैरत को ललकारा  -वाह! तो डिप्टी जनरल मैनेजर साहब चूहा छोड़ने जा रहे हैं। बिग न्यूज़।
यों भी हाथ में चूहेदानी देखकर लोग जाने क्यों मुस्कुराते हैं। जैसे खुद कभी चूहेदानी छुई ही न हो।
बहरहाल, हम दफ़्तर पहुंचे। शाम तक हमारी नाक में दम हो गया।
दरअसल हुआ यह था कि सुबह किसी दिलजले बाबू ने हमें चूहेदानी के साथ देख लिया था। हर पांच मिनट पर किसी न किसी का फ़ोन आता या कोई मिलने चला आता। सबकी ज़बान पर एक ही प्रशन था - सर, सुना है आप चूहा छोड़ने जा रहे थे।
किस-किस को जवाब देता - भई, चूहा छोड़ना कोई गुनाह तो नहीं! किसी प्रोटोकॉल में तो लिखा नहीं कि अफ़सर बनने के बाद चूहे को रिहा करना मना है। 
यह चूहा छोड़ने का प्रकरण कई दिनों तक हमारे दिलो-दिमाग पर छाया रहा, भूत बन कर मेरा पीछा करता रहा। लगता कि कई खामोश निगाहें हमें घूरते हुए  चूहे के बारे में ही तरह-तरह के सवाल पूछ रही हैं।
एक दिन से तय कर लिया कि चूहेदानी में फंसा चूहा छोड़ने हम नहीं जाएंगे। चाहे कुछ भी हो जाए।
लेकिन प्रेतात्माएं आसानी से पीछा नहीं छोड़ती हैं। पत्नी ने साफ कहा - आप नहीं तो और कौन जायेगा? मैं जाती हुई अच्छी लगूंगी? बच्चों के पढाई-लिखाई के दिन हैं। उन्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं।
बात तो ठीक थी। मगर जहां चाह, वहां राह। दूसरा तरीका मिल गया।

सुबह मुंह अंधरे उठे। मुंह पर रूमाल लपेटा और चल दिए चूहेदानी लेकर।
ज़िंदगी फिर आराम से गुज़रने लगी।
रिटायर हुए। अब किसका डर! कोई देखे या न देखे।
लेकिन, मिल ही गए दुश्मन और दिलजले। फ़रीद भाई ने जुमला फेंका - रिटायर होने के बाद बड़े से बड़ा अफ़सर औकात पर आ जाता है।

पुत्तन भाई भीने से मुस्काये - रिटायर होने के बाद चूहा छोड़ने का का काम मिल गया है। अच्छा है। एक काम करो पूरे मोहल्ले का ठेका ले लो। हा.हा.हा.
लगता है ये चूहेदानी और चूहे से कभी निजात नहीं मिलेगी। गणेश जी की सवारी है। ज़हर देकर मारना तो गुनाह है। बिल्ली के सामने भी इनको डालना ना ना। जीव हत्या है ये। बिल्ली का प्रवेश बरसों से वर्जित है हमारे घर में।    
अपने मित्र चतुर्वेदी जी से डिस्कस किया। वो बोले - ओखली में सर दिया है तो मूसल से क्या डरना। जब तक धरती पर इंसान है तब तक चूहा भी है। हंस कर  निभा लो।
मित्रों कोई उपाय हो तो बताओ। हां, चूहे की हत्या न हो। मुल्क में खून-खराबे की वैसे भी इफ़रात है।

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22-07-2015 Mob 7505663626
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