Monday, June 8, 2015

आशा में आशा राजखोसला ने तलाशी।

-वीर विनोद छाबड़ा
मन जब अतीत में जाने फड़कता है तो पुराने गाने सुनता/देखता हूं।
एक म्यूजिक चैनल पर गाना चल रहा है - 'मैं तुलसी तेरे आँगन की, कोई नहीं मैं तेरे साजन की.....' आशा पारेख अंसुअन की धारा बहा रही थी। मैं यादों खो जाता हूं।

यह गाना प्रोड्यूसर-डायरेक्टर राजखोसला की ये १९७८ में रिलीज़ सुपर हिट फिल्म 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' से है। इसने उस साल का श्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर अवार्ड भी जीता। तफ़ायफ़ तुलसी की भूमिका में आशा पारेख प्रेम में सब कुछ हार गई। सब छोड़ कर अपने देवता के पड़ोस में आ बसी। त्रासदी, त्याग और दया की मूर्ति बन कर। मगर फिल्म के हर हिस्से में छाये रहने बावजूद भी श्रेष्ठ अभिनेत्री का ईनाम नूतन के हिस्से गया। आशा को महज़ श्रेष्ठ सह-अभिनेत्री के नॉमिनेशन से ही संतुष्ट रहना पड़ा। बड़ी कंट्रोवर्सी हुई कि ऐसा क्यों हुआ? आशा पारेख की परफॉरमेंस नूतन से हर सूरत में कहीं ज्यादा पावरफुल थी। क्या आशा का कसूर सिर्फ़ इतना था कि वो दूसरी औरत का किरदार कर रही थी। समाज पर कोई पहाड़ टूट पड़ता अगर दूसरी औरत के किरदार की अदाकारा को एक नंबर का अवार्ड मिलता! कुछ भी हो दर्शकों के दिल में श्रेष्ठ अभिनेत्री आशा पारेख ही रही। और यही सबसे बड़ा अवार्ड था।  
आशा और राजखोसला का एसोसिएशन १९६५ में शुरू हुआ था। तब तक नासिर हुसैन की खोज आशा पारेख की इमेज एक नकचढ़ी और चुलबुली अभिनेत्री की थी। राजखोसला ने उसमें टैलेंट का ज़बरदस्त पोटेंशियल देखा और 'दो बदन' में कास्ट किया। ये एक ट्रैजिक रोल था। हालांकि शानदार अभिनय के बावजूद आशा को कोई अवार्ड नहीं मिला। लेकिन दर्शकों के दिल उसने जीत लिए। और आशा यह स्थापित करने में कामयाब रही कि वो सिर्फ़ ग्लैमर गर्ल नहीं है एक कुशल अभिनेत्री भी है।

राजखोसला ने १९६९ ने आशा को 'चिराग़' दी। इस बार आशा ने 'दो बदन' से भी बेहतर परफॉरमेंस दी। लेकिन बड़ी हिट के बावजूद आशा को बेस्ट अभिनेत्री के नॉमिनेशन के सिवा कुछ न मिला। 
१९७१ में आशा-राजखोसला का साथ एक बार फिर बड़ी हिट 'मेरा गावं मेरा देश' में हुआ। लेकिन आज तक समझ नहीं आया कि आशा के पास इसमें करने को कुछ था भी? सारी तालियां तो सहनायिका लक्ष्मी छाया ले गई।
इस बीच शक्ति सामंत ने 'कटी पतंग' ने श्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवार्ड आशा की झोली में डाल दिया। आशा की बरसों की चाह पूरी हुई।
लेकिन राजखोसला अपना वादा नहीं भूले और आशा में एक बहुत ही अच्छी आशा के दर्शन दुनिया को कराते रहे। मगर अफ़सोस 'मैं तुलसी … ' में फिर नॉमिनेशन से संतोष करना पड़ा।
आशा पारेख जब भी अपनी श्रेष्ठ फिल्मों का ज़िक्र करती है तो उसमें राज खोसला के साथ की गई दो बदन, चिराग़ और मैं तुलसी तेरे आंगन का नाम ज़रूर आता है।
-वीर विनोद छाबड़ा ०८-०६-२०१५  मो.७५०५६६३६२६

डी-२२९० इंदिरा नगर लखनऊ - २२६०१६

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