Tuesday, May 26, 2015

पंडित नेहरू - डरो नहीं, नफ़रत मत करो।

प्रस्तुति - वीर विनोद छाबड़ा 
आज देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्य तिथि है। मेरा उन्हें नमन।
कोई कुछ भी कह ले, नेहरू जी की हस्ती मिट नहीं सकती। बल्कि उन्हें मिटाने वाले ही मिट गए। जो ऐसी कोशिश करेगा वो देश विदेश में अपनी छवि ही ख़राब करेगा। वो सिर्फ़ भारत के प्रधानमंत्री ही नहीं थे। उनकी गिनती विश्व स्टेट्समैन में थी और आज भी है। 
नेहरू जी की स्पष्टता और दृढ़ता और हाज़िर जवाबी के कायल बड़े-बड़े विश्व नेता भीथे।

उनके इन्हें गुणों से संबंधित एक प्रसंग प्रस्तुत है।
आज़ादी के बाद नेहरू जी इंग्लैंड गए। बतौर प्रधानमंत्री यह उनका पहला इंग्लैंड दौरा था। ज़बरदस्त स्वागत हुए उनका।
विंस्टन चर्चिल इंग्लैंड के प्रधानमंत्री होते थे उन दिनों।

नेहरू और चर्चिल की मुलाक़ात हुई। गर्मजोशी और सौहार्द्र का माहौल। कल तक जो हम पर शासन करते थे वो आज पलक-पावड़े बिछाये बैठे थे।
बातचीत हुई। भारत की वर्तमान और भविष्य की विकास योजनाओं पर दिलचस्पी ली गयी। अंग्रेज़ों द्वारा भारत में छोड़े मौजदा इंफ्रास्ट्रक्चर को जन-जन तक फैलाने पर बात हुई। हर संभव आर्थिक और तकनीकी सहयोग का वादा किया इंग्लैंड ने।
उसके बाद नेहरू और चर्चिल के बीच अनौपचौरिक बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। पुरानी बातें ताज़ा हुई।
चर्चिल ने कुछ शर्मिंदा होते हुए और कौतुहल से पूछा - मेरे मन में एक जिज्ञासा है। आप हमारी जेलों में महीनों बंद रहे। आपको यातना भी दी गई और अभद्र तरीके से हमारे अधिकारी पेश आये। ज़ाहिर है कि इससे आपको काफी तकलीफ़ भी हुई होगी। आपके मन में हमारे प्रति कोई नफरत का भाव नहीं है क्या?
नेहरू जी ने जवाब देने के लिए कतई देर नहीं की - मैं ही नहीं, आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे हमारे अनेक नेता आपकी जेलों में बंद रहे। बड़ी-बड़ी तकलीफ़ें उठाई उन्होंने। लेकिन अब यह बातें बहुत पीछे छूट गयीं। अब ये मुद्दे ही नहीं रहे। और हां, असल बात तो आपको मालूम ही नहीं। हम तो महात्मा गांधी की लीडरशिप में संघर्ष कर रहे थे। गांधी जी हमें दो मंत्र दिए थे। पहला किसी से डरो नहीं और दूसरा, किसी से नफ़रत नहीं करो। इन मूल मंत्रों को लेकर ही हम आगे बढ़े। हम निडर होकर लड़े आपकी साम्राज्यवादी नीतियों के विरुद्ध, ज़ुल्मों के विरुद्ध। अपनी आज़ादी के लिए लड़े। किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्ध नहीं। इसलिए हमें किसी से नफ़रत भी नही थी। अब हम आज़ाद हैं। हम इन दो मूल मंत्रो पर अब भी कायम हैं। अपने इन मूल मंत्रो के बूते पर, अपनी ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं।
नेहरू की बातों को ध्यान से सुन रहे चर्चिल चित्त हो गए।
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२७ मई, २०१५   

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