Saturday, April 18, 2015

अथ: श्री सावित्री-सत्यवान कथा!

-वीर विनोद छाबड़ा
बाज़ पौराणिक कथाएं बड़ी प्रेरणात्मक होती हैं।
अब यही सावित्री-सत्यवान की कथा को ले लीजिये। सावित्री के त्याग और जिद्द के दम पर ही यमराज को सारे कानून-कायदे ताक पर रख कर सत्यवान के प्राण छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था।
अब ये जानकारी नहीं है कि देवताओं के बोर्ड द्वारा बनाये कानून से इतर जाने पर यमराज जी के विरुद्ध क्या कार्यवाही हुई?
बहरहाल इससे साबित यही होता है कि पति-परमेश्वर के प्राण रक्षा की ज़िम्मेदारी पत्नी की है। इसके लिए वो कुछ भी करे।
पति धर्म का पालन कराने के लिए युग-युग से इसी कथा का उदाहरण दिया जाता है। इससे उलट कोई ऐसी कथा नहीं मिलती है कि पत्नी के जाते हुए प्राणों को रक्षा के लिए पति का क्या बनता है?
इस कथा से ये भी साबित होती है कि यदि पत्नी चाहे तो बिना दमड़ी खर्च किये पति के प्राण बचा सकती है। सावित्री ने क्या किया? यमराज जी को बातों के जाल में उलझाये रखा। और ज्ञानी-ध्यानी यमराम जी उसमें फंस गए। सावित्री को व्रत तक नही रखना पड़ा था।
दूसरी महत्वपूर्ण बात ये कि महिलाओं से यमराज तक हार जाते हैं। आदमी की क्या बिसात है! 
एक कथावाचक बता रहे थे कि ज़माना बदल चुका है। पौराणिक कथाएं भी अछूती नहीं रही हैं। सत्यवान-सावित्री की कथा में भी तनिक बदलाव आया है।लेकिन मर्दों की इस दुनिया में पति के प्राणों को वापस लाने की ज़िम्मेदारी पत्नी पर ही डाली गयी है और एंड नतीजा भी वही रहा है - यमराज की हार।
कथावाचक अपने भक्तगण को ये कथा यों सुना रहे थे -
बुकराती के मामले में आज भी हम पहले की भांति दुनिया में नंबर एक है। बहुत ही एडवांस। अब देखिये न। इसमें जेब से एक अधन्ना तक खर्च नही होता। न हींग लगी और न फिटकरी। और रंग चढ़े चोखा। यही काम सावित्री ने किया। अपने सत्यवान के प्राण बिना हींग-फिटकरी खर्च किये वापस ले आई।
हुआ ये कि एक कार एक्सीडेंट में सत्यवान काल का ग्रास बना। बड़े आदमी का मामला था। दूत भेजने की बजाए यमराज स्वयं आये। और हर युग में सावित्री बड़ी चालकी से सत्यवान को छुड़ा ले जाती थी इसलिए भी यमराज जी का स्वयं आना बनता था। दूतों पर भरोसा किया जाना मुनासिब नही था।
बहरहाल नियमानुसार यमराजजी सत्यवान के प्राण लेकर चले। और पीछे-पीछे सावित्री भी।
यमराज ने कहा - देख सावित्री, पिछली कई से बार तुम मुझे बातों-बातों में उलझा कर सत्यवान को वापस ले चुकी हो। मगर ये फाइनल समझो। इस बार ऐसा-वैसा कुछ नहीं होने वाला। मैं बहुत अलर्ट हूं।
सावित्री बोली - यमराज जी मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। मगर नियमानुसार तीन वरदान तो दीजिये।
यमराज जी बोले - मांगो। एक ही बार में मांग लो। मगर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सत्यवान के प्राण मांगने की कतई कोशिश नहीं करना।
सावित्री ने लिस्ट निकाली। सास-ससुर के लिए कोयला खदान का पट्टा, उड़ने वाले जहाज की कंपनी और एक स्टील प्लांट मांगा।
यमराज जी बोले - तथास्तु। यानी दिए। तीन हो गए। जा अब।
मगर सावित्री इतनी आसानी से कहां मानने वाली। पीछा जारी रखा। 
यमराज जी को गुस्सा आया - भद्रे अब क्या चाहती है? सत्यवान नही मिलेगा। कानून-कानून है। चाहो तो सुप्रीम कोर्ट में दावा ठोक दो। जीत मेरी ही होनी है। तुम्हारी अपील नाट एड्मिटेड होगी।
सावित्री ने अनुनय की - भगवन मुझे ऐसा कुछ भी नहीं करना है। बस आपसे एक विनती करनी है।
यमराज जी दहाड़े - जल्दी बोल। क्या कहना है? टाइम निकला जा रहा है। अब पांच बजे स्वर्ग-नरक का गेट बंद हो जाता है। रात किसी होटल में गुज़ारनी पड़ेगी और खर्चा भी नहीं मिलेगा।
सावित्री ने मुस्कुरा कर यमराज जी को देखा। थोड़ा शरमाई, सकुचाई और बोली - आई लव यू। 
ये सुनते ही यमराज जी पछाड़ खा कर गिरते-गिरते बचे। और अगले ही क्षण सत्यवान के प्राण छोड़ कर भाग खड़े हुए।
और सावित्री अपने सत्यवान को लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अपनी इनोवा गाड़ी में बैठ कर वापस अपने घर चली गयी।
दूसरे दिन डॉक्टरों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सारा क्रेडिट खुद ले लिया। 

-वीर विनोद छाबड़ा 
18-04-2015

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