Sunday, September 7, 2014

दो हंसों का जोड़ा बिछड़ गयो रे !

-vir vinod chhabra
कोई चार साल पहले की बात है। नौकरी का आखिरी साल था। एक दिन एक नव विवाहित, दिलकश और एक दूजे के लिए बना जोड़ा मेरे कमरे में आया। लगा सीधा मंडप से उठ कर आया है।

मैं सोचने और कयास लगाने लगा कि मेरे पास क्या करने आये हैं? कोई रिश्तेदार भी नहीं जिनका इधर ब्याह हुआ हो और आशीर्वाद लेने आये हों।

इन कुछ पलों में ही इसके अलावा भी नाना प्रकार के ख्याल आये। 

पता चला कि दोनों की अभी हफ्ता हुए शादी हुई है। हंस लखनऊ में तैनात है और हंसनी अनपरा तापीय परियोजना पर। कल छुट्टी ख़त्म हो जाएगी। दोनों अलग हो जायेंगे। उसके बाद तू छुपी है कहां, मैं तड़पता यहां।

दोनों ये सुन कर बड़ी उम्मीद लेकर आये थे कि मैं हंसों के जोड़ों को मिलाने का एक्सपर्ट हूं।

मैंने उन्हें बताया ये मेरे बाएं हाथ का खेल है। आपका काम हो जायेगा। इत्मीनान रखें।

इससे पहले मैं ऐसे कई बिछड़ों को मिलाने का काम कर चुका था। ऐसे केसेस इमोशनल कार्ड से निपटाये जाते हैं। बस केस की प्रस्तुति सही हो। 

चलने से पहले हंसजी बोले - सर इसके लिए क्या 'सेवा' करनी होगी? 

मुझे जैसे ४४० केवी वोल्ट का कर्रेंट लगा। बिजली विभाग के लोगों पर ऐसे शॉकिंग अवसरों पर हाई वाल्ट का करंट ही लगता है।  मैं तनिक रुष्ट हुआ-मिस्टर आप ग़लत जगह दस्तक दे रहे हैं। यहां किसी भी प्रकार की सेवा स्वीकार्य नहीं है। आप जायें। आपका काम हो जायेगा।

वो दोनों सॉरी बोल कर चले गए।


बहरहाल, उनका काम हफ्ते भर में हो गया। स्थानांतरण सत्र का अंत होने के कारण स्थानांतरित होने वालों की सूची लंबी थी। बस आदेश निर्गत भर होने थे। लेकिन अचानक आई एक एमर्जेन्सी के कारण मुझे दो दिन अवकाश पर रहना पड़ा।

लौट कर आया तो देखा फाइल मेरे दस्तखत के लिए टेबुल पर रखी है। अधीनस्थ अधिकारी को बुलाया और पूछा - पंडितजी सब देख लिया है न? ठीक है सब?

वो पूरे यकीन से बोले - हां, अच्छी तरह चेक कर लिया है। सिर्फ़ आपके हस्ताक्षर चाहिए।

पंडित जी के बयान पर यकीन कर मैंने दस्तखत कर दिए। तुरंत आदेश फैक्स हुए। निहायत ख़ुशी हुई कि हंसों का जोड़ा मिला दिया।

दूसरे ही दिन वो हंसों का जोड़ा मेरे सामने बैठा था। सोचा शुक्रिया अदा करने आये होंगे। लेकिन जब उनके चेहरे मुरझाये हुए देखे तो ताज्जुब हुआ।

पता चला कि हंसनी का अनपरा से लखनऊ ट्रांसफर तो हो गया है परंतु साथ में हंस का भी लखनऊ से अनपरा ट्रांसफर हुआ है। यानी वो इधर से उधर गयीं और वो उधर से इधर हो गए। हंस नहीं मिल पाये।
मैं हतप्रद। नामुमकिन! मैंने सिर्फ हंसनी के ट्रांसफर का केस फाइल में मूव किया था। हंस का नहीं।

लेकिन जब मैंने अपने ही हस्ताक्षर युक्त आदेश देखे तो मेरे होश उड़ गए। सचमुच ऐसा ही हुआ था। तुरंत पंडितजी को तलब किया - मुझे तो बोले थे कि अच्छी तरह चेक किया है तो ये किसकी शरारत है?
पंडित जी बोले - सर बिलकुल सही आदेश हुए हैं। ये देखिये फाइल। मैंने फाइल देखी। आदेश सही थे।

दरअसल हुआ ये था कि उन हंस महाशय को यकीन नहीं हो पा रहा था कि इस दरबार में  बिना 'सेवा' के ही 'मेवा' मिलता है। इसलिए वो किसी दलाल के जरिये मंत्री जी की अपने अनपरा स्थानांतरण की सिफारिश ले आये। चूंकि मामला मंत्री जी का था अतः सुपर बॉस ने  तुरंत अप्रूवल देते हुए उसका नाम आदेश निर्गत होने वाली सूची में डलवा दिया था। इसी सूची में उनकी पत्नी को अनपरा से लखनऊ लाया जा रहा था। ये तथ्य उन्हें नहीं बताया गया।

इधर पंडितजी ने मुझे भी कुछ नहीं बताया। लेकिन प्रथम गलती तो मेरी ही थी कि मैंने पंडितजी पर यकीन कर लिया। नौकरी में किसी पर भी आँख यकीन नहीं करना चाहिए। इस सच को मैंने इग्नोर किया था। बहरहाल पंडित जी के लिए डांट तो बनती ही थी।

अगला निशाना हंस देव थे - देखा यकीन न करने का नतीजा। अब चिड़िया खेत चुग गयी है। अगले साल स्थानांतरण की फसल फिर कटेगी तो आना दाना चुगने।

इस पर हंसनी भलभला कर रोने लगी - अंकल कुछ करिये प्लीज।

अब अंकल भी ठहरे इंसान। आंसू सच्चे थे। इसलिए मुझे पिघलना ही था। उनका केस पुनः मूव किया। लेकिन ३७ साल में ईमानदारी और मेहनत से कमाई गुड रेपुटेशन के कुछ हिस्से का क्षरण तो हो ही गया था न।

कुछ दिन बाद मैं रिटायर हो गया। मालूम नहीं वो हंसों का जोड़ा मिला कि नहीं।
-vir vinod chharba
D-2290 Indira Nagar,
Lucknow-226016
07-09-2014

Mob 7505663626

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