Monday, September 22, 2014

प्यार दीवाना होता है.…

- वीर विनोद छाबड़ा

सत्तर के दशक का शुरुआती दौर.…

मस्त ज़िंदगी। कोई दुःख नहीं, गम भी नहीं। हर शोक और फिक्र को धुंए में उडाते चले जाने वाले मोड का युग।
एक बार परेशां मित्र बड़ी आस लिए मिले। दिल खोल दिया।

अरे, ये तो प्रेमरोगी है। मामला एकतरफ़ा प्यार का है। दिल पसीज उठा। प्रेमरोगी को आश्वासन दिया। इस मामले में अंजाम पर रोना नहीं होगा। न दूर खड़े होकर गुब्बार देखना होगा। बहारों फूल बरसाओ में कन्वर्ट होगा।

प्रेमरोगी आश्वस्त हुआ। हम होंगे कामयाब एक दिन!

हम जुट गए। खून-ए-जिगर से लबरेज़ एक खत महबूब का महबूबा को। न पावती का नाम और न प्रेषक का। ताकि पकड़ाई पर मुकरने की गुंजाईश बनी रहे। चांद-तारे तोड़ कर महबूबा के नाम किये। खुदाई तक छोड़ने की क़सम। महबूब की शक्ल में क़ायनात दिखती है। जाने क्या-क्या लिखा।

गुलाबी रंग के एनवलप में इज़हार-ए-मोहब्बत खत को रखा। प्रेमरोगी को पकड़ाया - जा बेटा। पकड़ा दे महबूबा को। फिर देख कमाल। खिंची चली आएगी। एकतरफा प्रेम को दोतरफा होने से कोई नहीं रोक पायेगा, कोई तांत्रिक भी नहीं।   

अगले रोज़ चंदन-मंडन लगा और कायदे से इस्त्री किया शर्ट-पतलून पहन प्रेमरोगी कथित प्रेमिका के पीछे चल दिया। पीछे-पीछे हम भी।

प्रेमिका के साथ उसकी सहेली भी है। परंतु प्रेमरोगी प्रेमिका के करीब पहुंच कर इतना घबराये कि ख़त प्रेमिका को देने की बजाय उसकी सहेली को पकड़ा बैठे। और भाग खड़े हुए। साथ में हम भी।


हमें मालूम है उस सहेली के घर वाले दबंग हैं। अब तो हम सब गए काम से! हमारी हड्डी-पसली का क्या होगा?

उस सहेली ने वो खत अपने घर वालों के हवाले किया। उसके पिता और उसके चार पहलवान भाइयों ने पढ़ा। परंतु हैरत की बात। उन्होंने पिटाई वाला कोई एक्शन नहीं लिया। बल्कि सोचा कि जो लड़का खून-ए-जिगर से इतना खूबसूरत खत लिख सकता है वो उनकी बेटी से कितनी मोहब्बत करता है, और आगे भी खूब खुश रखेगा।

वे उस प्रेमी के माता-पिता से मिले। उनके लखते जिगर की करतूत से वाकिफ कराया। और शादी का दबाव बनाया। प्रेमी की हालत मत पूछिये। गए चौबे बनने, छब्बे बन लौटे।  

इधर लड़के वाले भी तैयार। पैसे वाला दबंग खानदान मिला है। लड़का ताउम्र सुखी रहेगा, घर जवाई बनके।
प्रेमरोगी ने हमें हज़ार-हज़ार लानतें भेजीं। पिटते-पिटते बचे..... 

हम वर्तमान में लौटे। तैंतालीस से ज्यादा बरस गुज़र चुके हैं। प्रेमी कथित प्रेमिका की सहेली के साथ बेहद सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 

परंतु अपने पहले प्यार को वो आज तक नहीं भूले हैं। हसरत लिए फिरते हैं, बस एक बार देख लूं। उसकी भी शादी हो चुकी है। उसके ससुराल की गली तक का पता लगा चुके हैं। उस गली का हफ्तावार चक्कर भी ज़रूर लगाते हैं।

एक दिन हमने समझाया। अब वहां क्या रखा है? वो भी तुम्हारी तरह बूढी हो चुकी होगी। न तुम उसे पहचान पाओगे और न वो तुम्हें। मियां खामख्वाह ही  बुढ़ापे में पिटने का इंतेज़ाम कर रहे हो।

लेकिन वो मानते नहीं। बोलते हैं - वो भले न पहचाने। मैं तो पहचान लूंगा। मेरे दिल में रहती है। वो जनाज़े में लिपटी होगी तब भी। बस एक बार दिखे तो। हम इंतेज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक।

वाकई प्यार दीवाना होता है!
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-वीर विनोद छाबड़ा २३-०९-२०१४ मो. ७५०५६६३६२६

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