Sunday, September 21, 2014

पुलिस की ख़बरें।

-वीर विनोद छाबड़ा

पागल कौन है? वर्दीधारी या वो जिसके बदन पे एक लुंगी के सिवा कुछ नहीं।

लखनऊ के हिंदुस्तान में १५ सितम्बर २०१४ को छपी इस तस्वीर में शहर की मित्र पुलिस अपनी कार्यगुज़ारी की दास्तां खुद ही पेश कर रही है।

भुक्तभोगी के बदन पे सिर्फ एक लुंगी है। उसकी काया बता रही है उसके पास इसके अलावा पहनने को कुछ दूसरा है ही नहीं। इसकी आंतें भी भूख से बिलबिला रही हैं। ये पहले से चोट खाया हुआ है। ज़माने ने इसे बेतरह दिल पे भी चोट दी है और जिस्म पे भी। रही सही कसर वर्दी की हनक ने पूरी कर दी है जो उसे पागल समझ रही है।


विचार करने का मुद्दा है ये इसमें पागल है कौन? वर्दीधारी या वो जिसके बदन पे एक लुंगी के सिवा कुछ नहीं। ज़िंदगी भर की कमाई भी यही है।

माना वो भी पागल है और वर्दीधारी भी। यकीनन इन दोनों को जीने का हक़ है। लिहाज़ा बेहतर है कि दोनों को पागलखाने में भर्ती किया जाए।

लुंगी वाले को भूख प्यास के कारण पागल होने के कारण और पुलिसवाले को वर्दी के अहंकार के कारण।
पेट में अन्न का दाना लगातार पेट में जायेगा और तन ढकने को पूरा कपड़ा मिलेगा तो उम्मीद है कि लुंगी वाला जल्दी निरोग होगा।

लेकिन वर्दी का अहंकार तो वर्दी उतरने के बाद भी जल्दी दूर नहीं होता। बरसों बाद भी नहीं। ये अहंकार नाम का फैक्टर है ही ऐसा। सिवाय बर्बादी के कुछ नहीं देता। 

माननीय मुख्यमंत्री जी कृपया ध्यान दें। निसंदेह आपने उत्तर प्रदेश की पुलिस की ऐसी दरिंदगी से लबरेज़ तस्वीर की कल्पना सपने में भी नहीं देखी होगी।

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शिकायतकर्ता का ही गिरेबान पकड़ा!

यूपी की पुलिस के पुलिस कमिश्नर बदलो या एसएसपी। ये सुधरने वाली नहीं, जब तक कि मातहत इंस्पेक्टरों और कांस्टेबल के व्यवहार को नहीं सुधारा जायेगा।


यों मातहतों की अपनी दिक्ततें हैं।

मसलन चौबीस घंटे की ड्यूटी। छुट्टी का न मिलना। रहने की नारकीय सुविधाएं वगैरह।

फिलहाल तो लखनऊ के दिनांक २०.०९.१४ के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित ये तस्वीर और ब्यौरा लखनऊ पुलिस की कार्यगुजारियों की कहानी बयां कर रही है। इस तस्वीर को देख कर आज छपी खबर के मुताबिक डीजीपी ने बयान दिया है ज़रूरी कार्यवाही होगी।

कब होगी, कब तक रिपोर्ट आएगी, उस पर अग्रेतर क्या कार्यवाही होगी और इस खबर का फॉलोअप भी छपेगा या नहीं। मालूम नहीं।

लेकिन ये उम्मीद ज़रूर है कि माननीय ध्यान देंगे। जनसाधारण और शिकायतकर्ता के साथ पुलिस के इस तरह के सलूक से कोई अच्छा संदेश जनता में नहीं जा रहा है।
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स्कूटी सवार लड़कियों का भी पुलिस का ख़ौफ़ नहीं!

लड़के नहीं मानते। और फिर उन्हें शरारत करने का हक़ भी है। उनसे गल्तियां भी कभी-कभी होती रहती हैं। ये तो पुरानी बात है। और ऐसा तो होता ही रहता है जी।

पर लड़कियों ने कौन सा कसूर किया है जी? हिमालय और चांद- सितारों तक से बात कर आई हैं। कौन कहता है लड़कों से पीछे हैं? चाहे स्कूटर ही क्यों न हो। चार-चार को बैठा कर चलाना कौन बड़ी बात है जी? चलाने दो। उनके भी खेलने कूदने के दिन हैं।


अरे हाथ पैर टूटेंगे न। अस्पताल काहे के लिए हैं? मरम्मत हो जायेंगे। आजकल तो हर चीज़ की मरम्मत होती है जी। मेडिकल में ज़माना बड़ी प्रगति कर गया है। दुर्लभ से दुर्लभ सर्जरी संभव है अब तो।

क्या कहा दो से ज्यादा सवारी बैठाने से कानून टूटेगा? कौन करता है यहां परवाह। यूपी है जी ये। और फिर लड़कों का जब कुछ नहीं बिगाड़ सके तो इन बेचारी भोली-भोली लड़कियों का क्या बिगाड़ लेंगे।

और फिर अपने विधायक जी किस दिन काम आएंगे? रिश्तेदारी है, दूर की सही। है तो। दो भतीजे भी बड़े अफसर हैं। एक सचिवालय में है और दूसरा बिजली बोर्ड में। बत्ती कटवानी है क्या पुलिस को?

और पुलिस बेचारी क्या करे। किस किस को सही करे। जिसकी दुम उठाओ, कोई मंत्री जी का दूरदराज़ का दामाद है तो कोई मौसी के चचिया ससुर के भाई के दामाद का भतीजा।

लड़कियों को चेक करना तो बर्र के छत्ते में हाथ डालने से कम नहीं। अंकल प्लीज़, प्लीज़ अंकल कहती हैं तो अपनी बेटियां याद आ जाती हैं। ज्यादा सख्ती करें तो उनके मां-बाप बीच में कूद पड़ते हैं। डर लगता है कहीं दफ़ा ३७६ का केस न बना दें।

लेकिन ये उम्मीद ज़रूर है कि माननीय ध्यान देंगे। पुलिस के इस तरह के सलूक से कोई अच्छा संदेश जनता में नहीं जा रहा है।


फिलहाल तो आप लखनऊ के दिनांक २०.०९.१४ के नवभारत टाइम्स  में छपी ये तस्वीर देखें जो एसएसपी आवास के आस पास की है। और खुद ही अंदाज़ा लगाएं कि यहां कानून का ख़ौफ़ दबंगई के सामने कितना बौना है?
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मौत आएगी तो मज़हब और पोस्ट नहीं पूछेगी !

एक इंस्पेक्टर साब छुट्टी पर घर आये हुए थे। कई पुराने दोस्त याद आये। सोचा,  मिल आएं चल कर। इसी बहाने थोड़ी मौज मस्ती हो जाएगी।

बस मोटर साइकिल उठाई और चल दिए।

नाका पर चेकिंग लगी थी।

इंस्पेक्टर बिना कागज़ और हेलमेट के धर लिए गए। साब सादी वर्दी में थे। कोई पहचान नहीं पाया।

इंस्पेक्टर ने अपना परिचय दिया। ड्यूटी पर तैनात इंस्पेक्टर ने एक न सुनी और चालान काटते हुए बोला - जब मौत आएगी तो ये पहले ये नहीं पूछेगी कि तुम कौन हो भाई? इंस्पेक्टर लगे हो या चीफ मिनिस्टर या कोई साहूकार।

सुना है कतिपय राज्यों में एक धरम विशेष की महिलाओं को हेलमेट पहनने से छूट दी गयी है और ये छूट संभवता प्रस्तावित नए मोटर व्हीकल एक्ट में भी शामिल होगी। 

आज कई साल पुरानी उक्त घटना याद आ गई। 

लिहाज़ा मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन करने वालों को उक्त घंटना की नज़ीर देते हुए गुजारिश करनी है कि जनाब, एक्सीडेंट ये पूछ कर नहीं होता कि आप कौन हैं और न मौत ये पूछती है कि पदनाम क्या है और आप का धरम, जाति, संप्रदाय और वर्ण और वर्ग से ताल्लुक़ रखते हैं?

एक सूचना और। ऊपर यमराज जी भी बख़्शने वालों में नहीं है उन कानून में छूट देने वालों को जिसके नतीजे मौत में निकलते हों।
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vir vinod chhabra dated 22.09.2014 mob 7505663626

 

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