Wednesday, September 17, 2014

हसरत जयपुरी --- मोहब्बत के पुजारी को सलाम !

-वीर विनोद छाबड़ा
आज १७ सितंबर को हरदिल अज़ीज़ शायर हसरत जयपुरी की पुण्यतिथि है। आज के दिन १९९९ को वो जन्नतनशीं हुए थे।

हसरत का असली नाम इक़बाल हुसैन था। १५ अप्रैल १९२२ को भारत की धरती पर वो जन्मे। शुरुआती तालीम अंग्रेजी में हुई। फिर उर्दू/पर्शियन की जानकारी हासिल की। शेरो-शायरी से ज़ुनून की हद लगाव देखकर उनके दादा फ़िदा हुसैन ने उनके इस फ़न को चमकाया और हवा दी।


जुनून और तकदीर ने हसरत को जयपुर से बंबई शिफ्ट होने पर मज़बूर किया। यहां ११ रूपए माहवार पे बस कंडक्टरी की। साथ ही मुशायरों में शिरकत करते रहे। उनकी मकबूलियत बढ़ती रही।

एक मुशायरे में जनाब पृथ्वीराज कपूर ने हसरत को सुना। बेहद मुतासिर हुए। बेटे राजकपूर से सिफारिश की। राज उन दिनों लव स्टोरी 'बरसात' बना रहे थे। शंकर जयकिशन को मौसिक़ी की ज़िम्मेदारी थी। हसरत की क़लम से पहला फ़िल्मी नगमा निकला - जिया बेक़रार है, छायी बहार है, आजा मेरे बालमा तेरा इंतज़ार है.…

उसके बाद हसरत ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। एक के बाद एक यादगार नगमे दिए। इनकी तादाद पांच सौ के करीब बताई जाती है।

कहते हैं हर शायर की कामयाबी के पीछे कोई कोई मोहतरमा ज़रूर होती है। हसरत की गिनती भी इनमें थी।  वो राधा नाम की एक लड़की से बेसाख्ता मुहब्बत करते थे। उनकी नज़र में मुहब्बत किसी भी किस्म की दीवार और सरहद को नहीं मानती, चाहे वो मज़हब ही क्यों हो। हसरत उससे कभी इज़हार नही कर पाये। उसे देने के लिए एक खत लिखा जो उनकी जेब में ही रह गया। इसे उन्होंने 'संगम' में इस्तेमाल किया - ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ के कि  तुम नाराज़ होना.

इसी तरह ये भी अपने इश्क़ को नज़र किया - तेरी प्यारी-प्यारी सूरत की किसी की नज़र लगे(ससुराल). पेरिस में एक हसीना को चमचमाते लिबास में देखा तो बर्दाश्त नहीं हुआ- बदन पे सितारे लपेटे हुए जाने तमन्ना कहां जा रही हो.…(प्रिंस).

फिल्मफेयर अवार्ड से उनके दो नग़मे नवाज़े गए - ) बहारों फूल बरसाओ कि मेरा महबूब आया है.…आज भी ये दुल्हन के द्वारे लगी बारात का फेवरिट गाना है। ) ज़िंदगी इक सफ़र है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना(अंदाज़) - ये नगमा ज़िंदगी को दर्शन की निगाह से देखने वालों को बेहद पसंद है।


अलावा इसके - पंख होत तो पिया उड़ आती रे.…(सेहरा) और - अहसान तेरा होगा मुझ पर.....(जंगली) भी बेहद मक़बूल हुए।

हसरत और शैलेंद्र दो जिस्म एक जान कहलाते थे। शैलेंद्र ने अपनी 'तीसरी क़सम' के लिए उन्हें न्यौता दिया। हसरत ने उन्हें निराश नहीं किया। बदलते हालात के मद्देनज़र उन्होंने अपनी पीड़ा यों दर्शाई - दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई, काहे को दुनिया बनाई 

हसरत और शैलेंद्र राजकपूर की पहली पसंद रहे। 'मेरा नाम जोकर' और फिर 'कल, आज और कल' की नाकामी ने राजकपूर का मज़बूर कर दिया कि उन्हें और संगीतकार शंकर जयकिशन को बदलें। लेकिन राज हसरत को नहीं भूले नहीं। 'राम तेरी गंगा मैली हो गयी' में उनको फिर बुलाया तो उन्होंने अपनी ख़ुशी यों ज़ाहिर की - सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन.…

लेकिन संगीतकार रवींद्र जैन से उनकी पटरी नहीं खाई। हसरत ने इलज़ाम लगाया कि रवींद्र ने उनके कई नग़मे चोरी किये और स्वरचित बताये।


हसरत की बेगम बहुत सयानी थीं। उन्होंने अपने ख़ाविंद की कमाई बड़े कायदे से इंवेस्ट की। यही वज़ह रही कि ख़राब दौर में उनकी ज़िंदगी बड़े मज़े से गुज़री।

राजकुमार(१९६४) में शम्मीकपूर-साधना पर फिल्माया उनका ये गाना  अपने ज़माने में बेहद मकबूल हुआ था। और मेरे ख्याल से आज भी मौज़ू है -

इस रंग बदलती दुनिया में
इंसान की नीयत ठीक नहीं
निकला करो तुम सजधज के
ईमान की नीयत ठीक नहीं
इस रंग बदलती दुनिया में……


ये दिल है बड़ा दीवाना
छेड़ा करो इस पागल को
तुमसे शरारत कर बैठे
नादान की नीयत ठीक नहीं
इस रंग बदलती दुनिया में……

कांधे से हटा लो सर अपना
ये प्यार मोहब्बत रहने दो
कश्ती से संभालो मौजों से
तूफ़ान की नीयत ठीक नहीं
इस रंग बदलती दुनिया में……

मैं कैसे खुदाहाफिज़ कह दूं
मुझको तो किसी का यकीन नहीं
छुप जाओ हमारी आंखों में
भगवान की नीयत ठीक नहीं।

मोहब्बत के पुजारी हसरत जयपुरी साहब को मेरा सलाम !
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-वीर विनोद छाबड़ा
17-09-2014

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