Wednesday, September 10, 2014

बहुत याद आते हैं जानी राजकुमार!

-वीर विनोद छाबड़ा

आज न तो 'जानी' राजकुमार की पुण्य तिथि है और न ही जन्मदिन। बस उनकी यूं ही याद आ गयी।

फिल्मों में उनके बोले हुए डायलॉग लोग-बाग सार्वजानिक जीवन में कॉपी करके गौरवान्वित होते थे।

अपने विरोधियों को पस्त करने के लिए अक्सर हमने भी 'वक़्त' के ये डॉयलॉग इस्तेमाल किये हैं - जानी, जिनके अपने घर शीशे के होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते.…ये चाकू है। बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं। फ़ेंक दो। लग जाये तो खून निकल आता है। समझे जानी.…

मिमिकरी वालों के लिए तो वो खास थे। उनकी नकल करके न जाने कितनी तालियां लूट ली उन्होंने। उनका 'जानी' बेहद लोकप्रिय हुआ था। दूसरों पर रुआब झाड़ने वाले अक्सर 'जानी' शब्द का इस्तेमाल करते थे। 

हम जिन एक्टर्स के दीवानावार फैन थे उनमें एक अपने 'जानी' राजकुमार भी थे। ०३ जुलाई १९९६ को उनके निधन की खबर से हम बेहद दुखी हुए। अश्रुपूर्ण मुद्रा में हमने एक लेख तैयार किया। 'स्वतंत्र भारत' में दिया। लेकिन छपा नहीं। 'स्वतंत्र भारत' के संपादकीय कार्यालय में बरसात का पानी भर गया। मेरा लेख भी उसी में कहीं डूब गया।

हाथ से लिखा हुआ था। मेटर प्रेस में जा रहा था सो जल्दी इतनी थी कि फोटो कॉपी भी नहीं कराया। बेहद दुःख हुआ था हमें। लेखक के लेख उसकी संतान समकक्ष होते हैं। लेकिन क्या कर सकते थे हम? कलेजे पर पत्थर रख लिया।
 

फिर कुछ समय बाद 'स्वतंत्र भारत' का ऑफिस और प्रेस विधान सभा मार्ग से जापलिंग रोड शिफ्ट हो गया। इसी शिफ्टिंग में मेरा वो पानी में डूबे माने गए लेख की कंप्यूटराइज्ड प्रति मिल गयी। ये तो संयोग से फीचर संपादक की नज़र मेरे उस पर पड़ गयी तो उनने इसे मेरे हवाले कर दिया। बड़ी जीर्ण शीर्ण अवस्था में थी। पानी में कई दिन तक डूबे रहने के कारण उसके कुछ हिस्से अपठनीय हो गए थे.
  

याद पड़ता है कि हमने उसे फिर लिखा। और वो छपा भी। उसकी क्लिपिंग वक़्त की धूल की मोटी परतें झाड़ने पर मिलेंगीं ज़रूर। जैसे उन फीचर संपादक जी को मिल गयी थीं।

फिलहाल १८ साल पहले के इस लेख में उल्लिखित 'जानी' के कुछ ऑफ स्क्रीन किस्से याद आ रहे हैं जिनमें से एक आपसे शेयर कर रहा हूं।

निर्माता-निर्देशक राम माहेश्वरी उन्हें अपनी अगली फिल्म में कास्ट करना चाहते थे। जानी बोले- भई, स्क्रिप्ट से बात समझ में नहीं आ रही है। ऐसा करो स्टोरी सेशन फिक्स कर लो। वहीं कहानी सुनेंगे। उसके बाद ही हम राजकुमार डिसाइड करेंगे कि तुम और तुम्हारी फिल्म हमारे काबिल है या नहीं। समझे जानी!

राम माहेश्वरी की 'नीलकमल' में राजकुमार काम कर चुके थे। उन्हें उनके नखरों का पूरी तरह इल्म था। एक फाइव स्टार होटल में सुईट बुक किया गया। स्टोरी डिपार्टमेंट की पूरी टीम जुटी। एक्शन के साथ स्टोरी सुनाने वाला तजुर्बेकार story teller यानी किस्सागो बुलाया गया। किस्सागो ने एक्शन सहित कहानी सुनानी शुरू की। राज कुमार बड़े ध्यान से सुन रहे थे।


कहानी सुनाते हुए किस्सागो ने बताया - …और हीरोइन ने हीरो को इतना बेइज़्ज़त किया कि गुस्से से लाल पीले होकर हीरो ने दरवाजा खोला और बाहर निकल गया। ये कहते हुए किस्सागो किस्से में जान डालने के चक्कर में कुछ ज्यादा ही जोश में आ गया। और बाकायदा दरवाज़ा खोल कर बाहर हो गया।

उसके बाहर निकलते ही पीछे से राजकुमार ने कमरे का दरवाज़ा बंद करके सिटकनी लगा दी।

राम माहेश्वरी ने हैरान परेशान हो कर पूछा  -जनाब, ये दरवाज़ा क्यों बंद कर दिया आपने?

राजकुमार बोले -  जानी, जिस सीन में हीरो यानी हमें ही गायब कर दिया गया हो, हम यानी राजकुमार उस फिल्म में काम नहीं करते। समझे जानी।

और राम माहेश्वरी एक हारे कप्तान की तरह सर झुकाये चुपचाप और निराश अपनी टीम के साथ कमरे से बाहर हो गए।
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-वीर विनोद छाबड़ा
डी - २२९० इंदिरा नगर
लखनऊ २२६००१
Dated 07.09.2014
Mobile 7505663626

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