Thursday, August 28, 2014

तीन दिलचस्प ख़बरें!

-वीर विनोद छाबड़ा

--- ननद-भौजाई के झगड़े में बुज़ुर्ग की मौत।

शादी के बाद अगर सास-बहु या ननद-भौजाई में पटरी नहीं खाती तो सबसे ज्यादा फज़ीहत पति की होती है।

किसका पक्ष ले? उस पत्नी का पक्ष ले जो उसके भरोसे अपने मां बाप भाई बहन को हमेशा के लिए छोड़ कर आई है या उनका पक्ष ले या उस मां का पक्ष ले जिसने उसे छाती का दूध ही नहीं पिलाया बल्कि जाने कितनी रातें जाग जाग कर लोरियां सुनाई हैं। उस बहन का पक्ष ले जिसके आंख मिचौली खेल कर बड़ा हुआ है।
किसी भी तरफ झुका नहीं कि शामत आई।
लेकिन हमारे शहर लखनऊ में कल ऐसा नहीं हुआ। नवभारत टाइम्स लखनऊ दिनांक २८ अगस्त २०१४ में छपी ख़बर के अनुसार ननद-भौजाई  के झगडे में पति भाग निकला कि कहीं दोनों मिल कर उसे न पीट दें।
बाकी सदस्यों को कर मुक्त मनोरंजन की सामग्री मिल रही थी। वो भला क्यों बीच में पड़ कर अपना सर फुड़वाते।
मगर पति के पिता से ये बर्दाश्त नहीं हुआ कि घर में झगड़ा हो और बाहर के लोग तमाशा देखें।
वो उन दोनों के बीच चल रही हाथापाई को छुड़ाने की गर्ज़ से बीच में कूद गया।
धक्का लगा। वो गिरा। ऐसा गिरा कि फिर नहीं उठा।

--- तेरहीं बदली जश्न में!

ज़िंदगी एक तमाशा है। आदमी कुछ सोचता है और ऊपर वाला कुछ और सोच कर ही बैठा होता है जिसे न कोई कोई जान पाता और न ही अंदाज़ा लगा पाता है।
इस सिलसिले में टाइम्स ऑफ़ इंडिया लखनऊ दिनांक २८ अगस्त २०१४ में दिलचस्प ख़बर छपी है 
अब देखिये न। श्यामले का शिद्दत से इंतज़ार था। नहीं आया। एक दिन गुज़रा। दूसरा भी और फिर
तीसरा भी। अंखियां थक गयीं। पुलिस में रपट लिखी गयी।
पुलिस श्यामले की तलाश करने निकली। वो न मिला। एक क्षत-विक्षप्त लाश देखी। पत्थर दिल पुलिस उठा लाई।
श्यामले के पिता ने तस्दीक की। हां, ये तो वही है अपना श्यामले। घरवाले दहाड़ें मार मार रोये। फिर थक गए। जाने वाला कभी वापस आया क्या?
पुलिस में रपट लिखाई गई श्यामले के ससुराल पक्ष के ख़िलाफ़। पुलिस ने दो बंदे पकड़ कर सलाखों के पीछे कर दिए।
इधर श्यामले का भारी मन से अंतिम संस्कार कर दिया गया।
तेरवीं की तैयारी थी उस दिन। मगर जाने कहां से श्यामले आ टपका। नहीं वो कोई भूत वूत नहीं था। जीता जागता बंदा अपना श्यामले ही था। अच्छी तरह छू कर टटोल कर तसल्ली कर ली गयी।
मातम की बजाय खुशियां मनाई गई। इस ख़ुशी में सब भूल गए कि वो लाश किसकी फूंकी गयी थी। जिसकी भी थी उसको सम्मान तो मिल गया। नहीं तो लावारिस घोषित करके बिना किसी विधि विधान के दफ़न हो जाता या नदी में बहा दिया जाता जहां उसे मछलियां नोच नोच कर खा जातीं। और वो नाहक बंद किये गए बंदे! उन्हें छोड़ दिया गया। 
इसी को कहते हैं दुनिया रंग रंगीली रे, बाबा दुनिया रंग रंगीली।

--- बहन से ठगी।

कैसे कैसे निकृष्ट लोग होते हैं।
बहन बहनोई को भी ठगने से बाज़ नहीं आते।
रकम भी छोटी मोटी नहीं है। पूरे तरह लाख है।
ऐसे भाई को तो छोड़ना ही नहीं चाहिए।
नवभारत टाइम्स लखनऊ दिनांक २८ अगस्त २०१४ के अंक में ये ख़बर पढ़ कर मज़ा आ गया कि बहन ने भाई के ख़िलाफ़ रपट लिखा दी है।
अब पुलिस को चाहिए कि उस नाशुक्रे भाई के ख़िलाफ़ जल्दी से तहकीकात करके कोर्ट में मुक़दमा दायर करे और ऐसी सख्त सजा दिलाये कि बाकी भाई लोगों को इबरत हासिल हो।  

--- वीर विनोद छाबड़ा 28-08-2014 mob.7505663626 


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