Sunday, May 4, 2014

नुक्कड़ वाले प्रभु की जय हो!

-वीर विनोद छाबड़ा

मौजूदा राजनीति में चल रहा तर्क-कुतर्क का दौर ईसा पूर्व सुकरात के यूनान की याद दिलाता है। जब सच्चे के लिये ज़हर का प्याला था और झूठे की मौजां ही मौजां थी। बड़के नेताजी बयान दिये हैं कि मुझे प्रभु ने आपकी सेवा के लिये चुना है। इस पर हमारी गली के नुक्कड़ के मकान वाले नामी-गिरामी शिवभक्त और प्रापर्टी एंड
रीयल स्टेट डीलर प्रभुजी बिगड़ गये। बोले- ‘‘प्रभु तो हम हैं, हमने तो उन्हें दूत नहीं बनाया। झूठ बोल रहे हैं  वो।’’ चेलों ने समझाया कि आसमान वाले प्रभु की बात हो रही है। इस पर हमारे प्रभुजी ज्यादा भड़क गये- ‘‘हम भी तो ऊपर वाले प्रभु के बंदे हैं, दूत हैं। बड़के नेता का क्या मतलब है, हम शैतान हैं, राक्षस हैं? कल को वो कहेंगे, मैं शिव हूं! गंगा नहाऊं तो गंगा पवित्र! नाश हो सारे पाखंडियों का।’’

हमारे प्रभुजी की तमतमाहट बढ़ती ही जा रही थी- ‘‘हमारी नकल करते हैं ये बड़का। हमें नहीं जानते। सीनीयर हम हैं। शिव स्वंय भेष बदल कर सिर्फ़ हमारे कीर्तन समारोहों में पधारते हैं। कापी राईट लिये हैं हम। बासठ साल हो गये हमें शिव भक्ति करते। उनके आशीर्वाद से करोड़ों कमाये और लाखों खर्च भी किये हैं। नुक्कड़ पर उनकी मूर्ति नगर निगम के खर्च पर हमीं तो लगाये हैं। रास्ता संकरा हो गया, पब्लिक को तकलीफ हुई। हमें गाली दिया कि हमने कराया। बिलकुल ठीक किया। पर इसी बहाने पब्लिक ने रुक कर तनिक उनका नाम तो लिया !’’

प्रभुजी की तमतमाहट प्रवचन में बदल जाती है- ‘‘सोचो, अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो प्रजा नास्तिक हो जायेगी। प्रलय जायेगी। प्रजा को बुरा ज़रूर लगता है जब कभी दो दर्जन पावरफुल भोंपू लगा के, खूब ढोल-मजीरा बजा के नीलकंठ के गुण चार दिन लगातार साल में दो बार सुनवाता हूं। यदि हम ऐसा करूं तो कभी किसी को सद्गति प्राप्त होगी भला! अरे भोले हमें इसीलिये धरती पर भेजे हैं कि साल में दो-चार दिन प्रजा के
कानों में शिव नाम का अमृत डालूं। आवाज़ हमारी बेसुरी है तो क्या हुआ। शिव के नाम से सब शुद्ध हो जाता है। प्रजा को शिकायत है कि हम पब्लिक प्लेस पर शिव की मूर्ति बैठा कर जागरण-भंडारा करता हूं। आने-जाने का रास्ता रोकता हूं। अरे पागल प्राणी, शास्त्रों में कहा गया है कि शिव तो कण-कण में है। मंदिरों में है। घर में हैं। फुटपाथ पर हैं। शिव को भला हम कौन हैं रोकने वाले, हटाने वाले। उनके सामने तो मेट्रो भी रुक जाये, रास्ता बदल ले। प्रजा को शिकायत है कि शिव की मूर्ति का साईज छोटा है और हमारा फोटो बैनर बड़ा। अरे भई, हम तो शिव भक्त हूं। हमें सपने में वो दर्शन दिये। बोले, तुम आयोजक हो, तुम्हारा फोटो भी बड़ा हो। यदि वो चाहेंगे तो अगली बार खूब बड़ा जागरण-भंडारा करेंगे। अपना पोस्टर भी बहुत बड़ा-बड़ा बनवा कर शहर भर में टांग देंगे। इत्ता बड़ा कि बड़के नेता भी उसके आगे फेल कर जायेंगे। देखते रहियेगा।’’


हमारे प्रभुजी कभी-कभी बंपर भी फेंकते हैं- ‘‘एक बार हमें हार्ट अटैक आया। साक्षात यमराज खड़े हो गये। मगर तभी भोले बाबा प्रकट हुये, यमराज को डांट लगाए कि भागो अभी हमारे भक्त का टाईम नहीं हुआ।’’ इतने में एक चेला फुसफुसाया-‘‘अरे आपको तो शिव बख्श गये मगर घरवाली को तो यमराज ले गये।’’ तभी एक और सुरसुराहट हुई- ‘‘अरे भई ऊपर कोटा भी तो पूरा करना था।’’ शुक्र है, प्रभुजी सुने नहीं। नहीं तो हड्डी-पसली एक कर देते।


उस दिन हमारे प्रभु जी ने आसमान की ओर सिर उठा कर चैलेंज फेंका- ^^हे भोले, हमारे शिव बनने के रास्ते में आने वाले इस बड़के नेता को रोको। अगर आपने दो दिन में ऐसा नहीं किया तो हम खुद ही अपने को शिव घोषित कर देंगे।’’ एक चेले ने भी चुपके से चुस्की ली- ‘‘हां इधर एक जगह खाली भी तो है। एक सच्चा भक्त सींखचों के पीछे है।’’ हमारे प्रभु जी बोले जा रहे थे- ‘‘ये कंपूटर का जमाना है। तुम देखना फेस बुक्स पर मिनटों में हजारों लाईक्स जायेंगी। इतने समय में इतनी घंटियां नहीं बजती होंगी, स्वर्ग-नरक में भी नहीं। वो बाबा हम ढूंढ़ लिये है जो हमें रजनीकांत और इस बड़के नेता से भी ज्यादा पावरफुल बना देंगे। तब हमें साक्षात शिव भी कंट्रोल नहीं कर पायेंगे। जोर से बोलो- हमारी जय हो!’’
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जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ/कानपुर/वाराणसी/गोरखपुर/इलाहाबाद/गाज़ियाबाद/मेरठ/देहरादून, दिनांक 02 मई 2014 में प्रकाशित                                                         
-वीर विनोद छाबड़ा
डी0 2290, इंदिरा नगर,
लखनऊ- 226016
मोबाईल नं0 7505663626
दिनांक 04.05.2014

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