Friday, April 25, 2014

अंधेर नगरी चौपट राजा!

-वीर विनोद छाबड़ा

बाबू से प्रमोट होकर अधिकारी बने मदन बाबू की आज सेवानिवृति है। सरकारी कायदा है यह कि अक़ल भले धेला भर हो मगर प्रोन्नति वरिष्ठता के आधार पर नंबर आने पर स्वतः हो जाती है। मदन बाबू की गिनती ऐसे ही निठल्लों में थी। मगर वो नंबर एक जुगाड़ू और चापलूस थे। ऊपर के तमाम अफसरों के मुश्किल प्राईवेट काम चुटकियों में कर डालते थे। जब तक बाबू रहे हाज़िरी रज़िस्टर पर हस्ताक्षर करने के अलावा कभी क़लम नहीं खोली थी। चूंकि उनमें सरकारी काम के लिये ज़रूरी अकल का नितांत अभाव था इसलिये जब अफसर बने तो फाईलों पर बेतुकी पूछ-ताछ करके मामले को लंबित रखना, दिल्ली से दौलताबाद और फिर उसी रूट से वापसी जैसे तुगलकी फरमान आये दिन जारी करना उनकी फितरत बन गयी।

बहरहाल, मातहत पुलकित थे कि एक निठल्ले और तुगलकी अफसर से पिंड छूट रहा है। विदाई की इस खुशी की बेला को मातहतों साथी अफसरों ने यादगार बनाने के लिये वृहद राजसी प्रबंध किये। एक-दूसरे की टांग- खिंचाई में वक़्त बरबाद करने में चतुर तमाम अधिकारी-कर्मचारी विभाग के इतिहास में पहली मर्तबा एकजुट दिखे। बिना काम किये शान से छत्तीस साल काटने वाले इस अद्भुत पुरूष की अंतिम झलक के लिये सब आतुर दिखे।

रस्म के मुताबिक तमाम वक्ताओं ने मदन बाबू को खुशमिजाज़ शख्सियत बताया। उनकी शान में भांति-भांति के कसीदे पढ़े गये। कायदे-कानून का सर्वकालीन ज्ञाता बताया गया। इनसाईक्लोपीडिया तक बता डाला। इंसानियत की जिंदा मिसाल बताया। फाईलों पर अंकित उनकी टिप्पणियों आदेशों में प्रयुक्त शब्दों को आने वाली नस्लों के लिये नज़़ीर बताया गया। नगमे सुनाये गये कि उनके जाने से विभाग एक बेहतरीन इंसान से वंचित होगा। शून्य उत्पन्न होगा जिसे भरने के लिये स्वंय मदन बाबू को ही पुनःर्जन्म लेना पड़ेगा। ये फर्ज़ीनामा सुन कर सबका हंसी के मारे बुरा हाल था।


समारोह के अंत में आशीष वचन हेतु संबोधन में विभाग के मुखिया जी मदन बाबू को अच्छा साथी बताते हुए भावुक होकर  बोले- ‘मुझे तो मदन जी के बारे में कुछ ऐसी-वैसी जानकारी थी। मगर आप लोगों का उनके प्रति स्नेह देखकर और अभी-अभी उनके गुणों की गाथा सुनकर मैं हतप्रद हूं, गदगद हूं। चूंकि मदन जी जैसा ज्ञाता गुणी पुनः नहीं जन्मेगा, अतः उनकी अमूल्य सेवाओं का लाभ उठाने के दृष्टिगत मैं उन्हें एक साल का सेवाविस्तार देने का फैसला करता हूं।

ऐसी घोषणाओं पर आमतौर पर अति प्रसन्नता व्यक्त की जाती है। गगनभेदी करतल ध्वनि होती है। परंत आज हरेक को सांप सूंघ गया था। चहूं ओर गहरी नीरवता व्याप्त थी। कुछेक पछाड़ खाकर मूर्छित होते-होते बचे। बंदे के बगल में खड़े निर्बल हृदय कर्मठ बाबू लकवाग्रस्त हो जाते यदि ससमय जेब में रखी जानबचाऊ गोली जीभ के नीचे रख ली होती। निकम्मे चापलूस अफसर से छुट्टी पाने की खुशी में मनाया जा रहा जश्न शायद मातम में तब्दील हो जाता यदि मौके की नज़ाकत को भांपकर सबसे समझदार आयोजक परशु जी
ने स्थिति संभाली होती- ‘अब ये जश्न मदन जी की विदाई के तौर पर नहीं अपितु उनको सेवा विस्तार मिलने की खुशी में आयोजित है। मदन जी सहमत हैं कि इसका सारा खर्चा वो वहन करेंगे।अब मूर्छा का झटका खाने की बारी मदन बाबू की थी। उनसे कोई सहमति ली ही नहीं गयी थी। परंतु चमड़ी जाये, दमड़ी बची रहेके सिद्धांत के अनुयायी मदन बाबू के सामने राजी होने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था।

बाद में मुखिया जी को वास्तविकता से जब अवगत कराया गया तो वो बोले- ‘मुझे सब मालूम था। जान-बूझ कर ऐसा किया है। वो नेता जी के दूर-दराज़ के बड़के साले का जुगाड़ ले आये। विभाग को भी ऐसे ही उल्लूओं की ज़रूरत है। फैसले नहीं लेने वाला नहीं, फैसले लेने वाला फंसता है। सूबे को रोशन करने वाले विभाग के मुखिया की इस नीयत को जानकर रिटायरमेंट की दहलीज़ पर खड़े तमाम निठल्ले बाबू-अफसर खुश हैं और कर्मठ बाबू-अफ़सर किंकर्तव्यविमूढ़ हताश।

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(जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ/कानपुर/इलाहाबाद/वाराणसी/गोरखपुर/मेरठ/गाज़ियाबाद/देहरादून दिनांक 22 अप्रेल 2014 में प्रकाशित।)

-वीर विनोद छाबड़ा
डी0 2290 इंदिरा नगर
लखनऊ- 226016
दिनांक 25/04/2014
मोबाईल 7505663626




  

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