Tuesday, April 1, 2014

राम भरोसे चलता सिस्टम!

&वीर विनोद छाबड़ा

हमारे शहर लखनऊ के इंदिरा नगर के एक क्षेत्र से सुधार विकास के ढेर सारे वादों पर पुनः निर्वाचित परम ईश भक्त सभासद से जनता को पूरी आशा थी कि इस बार ज़रूर गलियों की मुद्दत से उखड़ी सड़क बनेगी। बरसों से चोक सीवर खुलेंगे। आये दिन के जल भराव से निजात मिलेगी। खुशहाली के इंतज़ार में बूढे़ हो चले बदहाल पार्का के दिन बहुरेंगे और गंदा बदबूदार पानी उगल रहे नल से अविरल शुद्ध पानी प्रवाहित होगा।


आगे की कथा से पूर्व जरूरी है कि यह ख़बर पढ़ लें। भारत के एक माह के भ्रमण के बाद एक विदेशी ने ट्वीट किया- ’’घनघोर नास्तिक होने के नाते मैं ईश्वर के अस्तित्व पर कभी यकीन नहीं करता था। परंतु भारत में सारे सिस्टमों को राम भरोसे चलते देख कर मुझे भगवान के होनs  का पक्का यकीन हो गया है। हमारे सभासद महोदय भी राम भरोसे सिस्टम के घनघोर अनुयायी हैं। इसीलिये उन्होंने उस बदहाल उजाड़ पार्क की घास-फूस सरकारी तंत्र के माध्यम से कटवायी।  आस-पास की जनता की तमाम
आपत्तियों- अपीलों को दरकिनार करके उसे वहीं फूंकवाया। नतीजा ये हुआ कि आस-पास के इलाके में धूंए का भीषण प्रदूषण फैल गया। तमाम घरों में धूंआ घुस गया। इसके बुरे असर से कई लोग बुरी तरह खांसने लगे। वृद्धजनों का दम घुटते-घुटते बचा। अस्थमा पीड़ित दो जनों को अस्पताल की शरण लेनी पड़ी। जब सभासद महोदय से शिकायत की गयी तो बोले-’‘आप लोगों की गल्ती है। घर की खिड़कियां बंद कर लेनी चाहिए थीं।’’ हमारे मोहल्ले के स्वंयभू अध्यक्ष जी ने भी उनकी हां में हां मिलायी। फिर उन्होंने धर्म-कर्म का हवाला दिया- ’’मैं तो आप ही लोगों के भले के लिये एक धार्मिक आयोजन इस पार्क में कराने जा रहा हूं। अब भगवान के नाम का अपूर्व धन लूटने के लिये थोड़ा-बहुत कष्ट तो सहना ही पड़ेगा।’’ धर्म-कर्म जैसे बेमिसाल मिसाईल के सामने बड़े बड़े ढेर हो जाते हैं। ऐसे में बेचारे मोहल्ले के वो  चार-पांच शिकायतकर्ता मुंह लटकाने के सिवा और कर भी क्या सकते थे। 


बहरहाल संध्या में एक झमझमा भजन-कीर्तन आयोजित किया गया जिसमें परम पूज्य बजरंगबली की रूप-सज्जा वेष-भूषा में सुसज्जित एक कथित कलाकार फिल्मी भजनों की धुनों पर अत्यंत भोंडे ढंग से बेतरह नाचे। कौतुहलपूर्ण इस दृश्य से विभोर जनता भी खूब जमकर नाची। याद नहीं आता कि हमारे धर्मग्रथों और पुराणों में हनुमान जी के इस तरह मस्त होकर नृत्य करने का उल्लेख है। यदि होगा भी निसंदेह इतने भोंडे तरीके से नृत्य तो नहीं ही किया होगा। फिर गगनभेदी जयकारों के बाद जमकर स्वादिष्ट भंडारा डकारा गया। ये डकार इस तथ्य का प्रतीक थे कि बेचारी निहाल हुई जनता ने मान लिया है कि पांच वर्ष पूर्व बनी सड़क इस बार भी नहीं बनी तो कोई बात नहीं। अगर बनी भी तो, पूर्व की भांति कुल जमां पांच ही दिन तो चलनी है। बनना, बनना एक बराबर है। समझाने से वे समझ गये कि खराब सीवर लाईन की जगह नई डालने से अतिक्रमण करके बने गैराज, किचेन गार्डन, दुकानें, चबूतरे भी तो टूटेंगे। लिहाजा, भैया जैसा है, चलने दो।


फिर किसी ने डराया-’’पार्क में फूल-पत्ती और झूले आदि लग गये तो आये दिन बवाल खड़ा होना है। कभी कोई फूल तोड़ेगा तो कोई पौधे रौंदेगा। मानो झूला लगा तो समझ लो कि पहले झूलने की भारी मारा-मारी होगी। और कहीं किसी का झूले से गिर कर सिर-विर फट गया या हाथ-पैर टूट-फूट गये तो
कौन भुगतेगा? झूला लगवाने वाला ही तो धरा जायेगा ! सभासद जी का क्या घिसना है। उनके लिये तो बायें हाथ का खेल है। कहो तो लगवा दें झूला। फिर ये भी याद रखें कि पार्क में फूल-पत्ती की क्यारियां बनीं और झूले लगे तो समझिये पार्क गया हाथ से। नगर निगम के कब्जे में चला जायेगा।जनता-जनार्दन ने एकमत से फैसला दिया मारो गोली झूले और फूल-पत्तियों को।

मोहल्ला सुधार समिति के स्वंयभू अध्यक्ष जी ने भी दखल देते हुए बात को आगे बढ़ाया-’’शादी-ब्याह आदि समारोह, डिनर-पार्टियां नहीं हो पायेंगीं। और फिर बच्चे क्रिकेट कहां खेलेंगे? हमारे मोहल्ले के बच्चों का सचिन और विराट कोहली जैसे होनहार खिलाड़ी बनने का स्कोप भी खत्म हुआ समझिए। भैया, अच्छा यही है कि पार्क को ऐसे ही बदहाल पड़ा रहे। क्या फर्क पड़ता है! नल में शुद्ध पानी नहीं आने से भी कोई फर्क नहीं पडे़गा। एक्वागार्ड तो हर घर में है ही! bसलिये बेहतर है कि सब कुछ पहले जैसा चलने दो यानि राम भरोसे छोड़ दो। उनके लिये इतना बड़ा कथा-कीर्तन और भंडारा किया है। राम जी कुछ तो कृपा करेंगे।’’

रामजी की कृपा से भंडारे के भरपेट भोजन से धन्य जनता के स्वंयभू प्रतिनिधि के उक्त विचारों को जानकर प्रापर्टी डीलिंग और अवैध कब्जे के धंधां के प्रति पूर्णतया समर्पित सभासद जी अति प्रसन्न हुए। उनका पुराना मंत्र पुनः काम कर गया था। वो पूर्णतया आश्वस्त हो गये थे कि अब तो पांच वर्ष का वर्तमान कार्यकाल भी पूर्व की भांति बड़ी आसानी से गुज़्ार जायेगा। जनसेवा गई तेल लेने। उन्होंने उस स्वंयभू अध्यक्ष जी के कान में फुसफुसा कर धन्यवाद दिया। अध्यक्ष जी अत्यंत प्रसन्न तथा विभोर दिखे। शायद उन्हें अलग से उपकृत करने का आश्वासन मिला था। यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि इस बीच जनता को उनके जनसेवा संबंधी किये गये किसी वायदे या आश्वासन की याद आयेगी तो पुनः कीर्तन-भंडारे का झुनझुना बजा कर सबको फिर से निहाल कर देंगे।


सभासद जी के चेहरे पर दमकता अहंकार, होटों पर बिखरी कुटिल मुस्कान और आखों में रह-रह कर कौंधती शैतानी चमक साफ बयां कर रही थी-’’मेरे भाई, वादों से सिर्फ छवि बनती है। चुनाव नहीं जीते जाते। जीतने का मंत्र तो सिर्फ़ धर्म, जाति, संप्रदाय, व्यक्तिगत संबंध, मौकापरस्ती, दबंगई, लालच वगैरह है, जो कभी फेल नहीं होता। अगर हम नहीं रहे तो जो दूसरा आयेगा। वो भी यही करेगा। क्या फर्क पड़ेगा? सिस्टम तो वही रहेगा न। भ्रष्टाचार से लबालब। हम बुरे हैं क्या? आपकी पहचान के हैं। फिर हम रहते भी तो पड़ोस में हैं। जब चाहो चले आओ।

सभासद भाई जी ठीक ही तो कहते हैं। वाकई नेताओं के बदलने से फ़र्क़ नहीं आयेगा। बदलना है तो
सिस्टम बदलो। लेकिन इससे पहले इंसान की नीयत तो बदले। इससे संसार में बदलाव आएगा। शायद सिस्टम बदलने की जरूरत ही पड़े। लेकिन जहां डीएनए में ही बदनीयती घुसी हो वहां फिलहाल तो कुछ नहीं हो सकता। राम भरोसे ही सब कुछ चलना है और नास्तिकों को यकीन भी दिलाते चलना है कि भैया भगवान है। अगर होता तो इतना बड़ा मुल्क ऐसे ही थोड़े चल रहा है!
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-वीर विनोद छाबड़ा
डी0 2290, इंदिरा नगर,
लखनऊ-226016
मोबाईल नं0 7505663626
दिनांक /01.04.2014

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