Thursday, January 9, 2014

बिजली वाले की व्यथाकथा

वीर विनोद छाबड़ा

उस दिन भोर में बंदे के घर में ही नहीं आस-पड़ोस में भी हाहाकार मचा था। वजह-बिजली नहीं थी। अरे भाई, इतने परेशान क्यों हो? कोई नयी बात है क्या? ऐसा तो अक्सर होता है। एक-आध घंटे में आ जाएगी। तभी पड़ोसी पांडे जी ने गेट पीटते हुए बंदे को ललकारा-‘‘बाहर निकलिए। सो रहे हैं? मालूम है, ट्रांसफारमर दग गया है। अभी बम फूटने जैसी भयंकर आवाज़ हुई है। सुने नहीं? चैबीस घंटे लगेंगे। नहाना तो दूर पीने तक के लिए पानी नहीं है। नाश्ता-पानी भी नहीं बना है। बच्चे स्कूल नहीं जा पाए है। नहाएंगे नहीं तो हम दफ़्तर कैसे जाएंगे? बताईए। हमारे तो इंनवर्टर की बैटरी भी लो है। बस टा-टा होने ही वाला है। आपका क्या? आप तो ठहरे रिटायर्ड बिजली बाबू। पावरफुल इंनवर्टर है आपके पास।’’ पांडे जी एक सांस में दिल की सारी भड़ास बंदे पर उड़ेल गए। बंदा पांडे जी को कुछ सांत्वना देता कि इस बीच पांच-छह पड़ोसी और आ गए। उनके तेवर देखकर बंदे को डर लगा कि कहीं पिट ना जाऊॅ!

भयाक्रांत बंदे ने ढांढ़स बंधाने की कोशिश की-‘‘भैया, मैंने ख़बर कर दी है सब-स्टेशन पर। एस0डी0ओ0 साहब से भी बात हो गयी है। वो ट्रांसफारमर का बंदोबस्त कर रहे हैं। चार-पांच घंटे में सब नार्मल हो जाएगा। और फिर देखिए, गर्मी भी कितनी भीषण है! घर घर में एसी-कूलर चैबीसों घंटे चलते हैं। ज्यादा लोड बर्दाश्त नहीं कर पाया होगा बेचारा ट्रांसफारमर।’’ वहां जमा हो चुकी छोटी सी भीड़ बंदे के स्पष्टीकरण से कतई संतुष्ट नहीं होती है। बंदे को बेतरह घूरा और बिजली विभाग के लिए चुनींदा अभद्र शब्दों का उवाच करते हुए विसर्जित हो गयी। बंदे के दिल पर साथ ही छुरी भी चली। बंदे के परिवारजन ने भी भीड़ के सुर में सुर मिलाया और बंदे को निशाना बनाते हुए बिजली वालों को जी भर कर कोसा।


बंदा ऐसे दृश्यों का सामना अक्सर करता है। उसके परिवार सहित तमाम मोहल्लेवालों को यकीन है कि बिजली की समस्या बिजलीवालों के नक्कारेपन की वजह से है। बंदा उनसे कई बार विनम्र निवेदन कर चुका है कि... ये नकारात्मक सोच है। सर्वविदित है कि सूबे में बिजली की भयंकर किल्लत है। लखनऊ के बाशिंदे तो भाग्यशाली हैं कि उन्हें चैबीस घंटे बिजली मिलती है। देखिए, बिजली विभाग की भी अपनी समस्याएं हैं। प्रचुर स्टाफ़ नहीं है, सामान नहीं है। खरीद और मेंटीनेंस के लिए धन नहीं है। कर्मचारियों को जैसे-तैसे पगार मिल पाती है। पेंशनरों को भी पेंशन महीनों लेट मिल रही है। बिजली चोरी रोकने का फूलप्रूफ सिस्टम नहीं। बड़े-बड़े राजनेता और बाहुबली खुले आम बिजली चोरी करते हैं। उनमें हाथ डालने की ऊपर से मनाही है। फिर भी जाड़ा-गर्मी, आंधी-तूफान, बरसात आदि की परवाह किए बगैर बेचारे बिजली वाले जल्द से जल्द बिजली आपूर्ति की बहाली की कोशिश करते है... मगर हर बार बंदे की सफाई नक्कारखाने में तूती की आवाज़ साबित होती है। जनता निर्बाध बिजली आपूर्ति से कम पर राजी नहीं है, आखिर पूरा दाम चुकाती है। वो पूरे हक़ से जानना चाहती है कि मंत्रियों, दबंगों-रसूखदारों, बड़े सरकारी अफ़सरों के आलीशान आवासों में अंधेरा क्यों नहीं होता? ट्रांसफारमर क्यों नहीं दगता? तार क्यों नहीं टूटता? बंदा तब भी निरूत्तर होता है जब कोई इंगित करता है कि अखबार में एक दिन पूर्व सूचना प्रकाशित क्यों नहीं होती कि अनुरक्षण कार्यवश फलां क्षेत्र की विद्युत आपूर्ति अमूक समय से अमूक समय तक बाधित रहेगी ताकि हम सम्मानित बिजली उपभोक्ताओं को ज़रूरत भर का पानी तो एडवांस में स्टोर करने का मौका मिल सके।

बहरहाल, जनता की बिजली वालों के प्रति रोष की भावना की कद्र करते हुए बंदा ट्रांसफारमर दगने की घटना से मन ही मन पुलकित भी होता है। दरअसल, ट्रांसफारमर बदलने की जटिल प्रक्रिया देखने का आनंद भी निराला है। बंदे को ये शौक बचपन से है और गर्मियों में तो बंदे का ये शौक भरपूर पूरा होता है क्योंकिं इस मौसम में ट्रांसफारमर खूब दगते हैं... बचपन से जवानी तक बंदे ने जले-फूंके ट्रांसफारमरों की तलाश में शहर के तमाम मोहल्लों का खूब ख़ाक़ छानी है। भाग्यवश बंदे को बिजली विभाग में ही मुलाज़मत मिली जहां उसे अनेक विशालकाय बिजलीघरों व ट्रासफारमरों के दर्शन हुए... बहरहाल, वर्तमान में लौटते हुए बंदा वहां पहुंचता है जहां जला हुआ ट्रांसफारमर हटा कर नया लगना है। वहां बिजली के अचानक चले जाने की वजह से वक्त पर नाश्ता-खाना न मिलने और नहाने से वंचित स्कूल नहीं जा पाए मोहल्ले के तमाम बच्चों सहित मेरे जैसे कई रिटायर्ड बंदे वक्त काटने के लिए वहां पहले से मौजूद थे।
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दिनांक 08.01.2014 हिन्दुस्तान, लखनऊ, दिनांक 26.04.2013 के ’मेरे शहर में’ स्तंभ में प्रकाशित।


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